लैंसडाउन: छावनी भूमि अधिनियम बना विकास में बाधा
★छावनी भूमि अधिनियम बना नगर विकास में बाधक ★
★छावनी परिषद से अलग होने की छटपटाहट बढ़ी★
*कुलदीप खंडेलवाल*
लैंसडौन।

गढ़वाल जनपद की लैंसडौन तहसील छावनी इलाका होने से अपने विकास के लिए लगातार छटपटा रहा है। ये तहसील जिले में विकास के नाम पर लगातार पिछड़ती जा रही है।
लैंसडौन छावनी भूमि अधिनियम नगर विकास में रोड़ा बना हुआ है। पूरे देश में पर्यटन नगरी के नाम से पहचान बनाने वाला शहर अपने ही विकास के लिए अपने ही राज्य में तरस रहा है।छावनी अधिनियम के चलते नगर विकास की तमाम योजनाएं छावनी अधिनियम की भेंट चढ़ गई है।
छावनी अधिनियम में संशोधन की मांग वर्षों पुरानी है। वर्ष 2006 में नया छावनी अधिनियम वजूद में आया, लेकिन इसमें भूमि सम्बन्धी रियायतें नहीं थी। भूमि स्वामियों को इस अधिनियम से नक्शा पास कराने, म्यूटेशन के लिए खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस अधिनियम का देश भर की 61 छावनियों में विरोध होने पर वर्ष 2017 में छावनी अधिनियम में सुधार की कवायद फिर से शुरू हुई। स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रक्षा मंत्री राजनाथ से दो बार मुलाकात कर लैंसडौन छावनी बोर्ड की व्यवस्था समाप्त कर इसे पूर्ण रूप से सिविल क्षेत्र का दर्जा देने की वकालत कर चुके हैं। सेना और रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की मनमानियों के चलते भूमि अधिनियम में बदलाव
का मामला अधर में लटका हुआ है।
लैंसडौन के विकास की योजनाओं की जानकारी लेने पहुंचे सैनिक कल्याण सचिव दीपेंद्र चौधरी ने जनता के साथ संवाद किया तो लोगों ने एक सुर में उन्हें अपनी पीड़ा बताते हुए लैंसडौन के सिविल इलाकों को स्थानीय निकाय में शामिल करने की मांग उनके सामने रखी थी।
राज्य सरकार द्वारा राज्य की 9 छावनियों के छावनी बोर्ड की व्यवस्था समाप्त कर इन्हें स्थानीय निकाय में शामिल करने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजे हुए 2 वर्ष हो गए हैं लेकिन यह मामला केंद्र सरकार व रक्षा मंत्रालय में लंबित पड़ा है।
वर्ष 1887 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित लैंसडौन में पानी की किल्लत निरंतर बनी हुई है। एमईएस विभाग से पानी किराये पर लेकर लैंसडौन की सिविल आबादी को छावनी परिषद पानी की आपूर्ति करता है। 138 साल में छावनी परिषद अपनी पानी की व्यवस्था नहीं बना सका। कुछ वर्ष पूर्व सिविल व सैन्य क्षेत्र की आबादी को पानी उपलब्ध कराने को बनी भैरवगढ़ी पंपिंग योजना का समुचित लाभ सिविल आबादी को नहीं मिल पा रहा है। ग्रीष्मकाल में लोग बूंद बूंद पानी को तरसते रहते हैं।
व्यापार मंडल के संरक्षक गंभीर रावत बताते हैं कि भूमि न मिलने से लैंसडौन में स्टेडियम, पार्किंग प्रेक्षाग्रह, ऑडिटोरियम नहीं बन सका। राज्य सरकार द्वारा इन योजनाओं को मंजूरी मिल चुकी थी।
दरअसल लैंसडौन की भूमि रक्षा मंत्रालय के अधीन आती है। लैंड यूज की अनुमति न मिलने से नगर के विकास की तमाम योजनाएं फाइलों में ही दम तोड़ रही हैं। ब्रिटिश सेना ने लैंसडौन में रहने को 284 सिविलियनों को लीज में भूमि दी थी। केंद्र सरकार ने सिविल इलाकों की आबादी को राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ देने की मंशा से छावनी बोर्ड की व्यवस्था समाप्त करने की पहल की थी, ताकि इन क्षेत्रों को स्थानीय निकाय में शामिल कर छावनी क्षेत्रों के लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकें, लेकिन मामला कुछ समय बाद ही टांय टांय फिस्स हो गया।
पूर्व छावनी परिषद उपाध्यक्ष डॉ. एस. पी नैथानी, दिनेश रावत व व्यापार मंडल के संरक्षक गंभीर रावत कहते हैं कि लोगों की लीज भूमि का लीज रेंट हजारों गुना बढ़ा दिया गया है इस कारण लीज धारक परेशान हैं। वर्ष 2019 में बोर्ड गठन के लिए चुनाव होने थे तब से छावनी बोर्ड का गठन नहीं हो सका ओर न ही स्थानीय निकाय में सिविल क्षेत्रों के विलय की प्रक्रिया शुरू हो सकी है। जिसके चलते छावनी वाशिंदे अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
छावनी क्षेत्र में लीज भूमि होने से लोगों को होम स्टे निर्माण में बैंक ऋण में सब्सिडी का लाभ नहीं मिल पा रहा है। छावनी क्षेत्र में कई पीढ़ीयों से बसे लोगों व लीजधारकों को राज्य में कृषि भूमि खरीद की अनुमति नहीं मिल पा रही है। उन्हें तकनीकी रूप से भू स्वामी नहीं माना गया है। छावनी अधिनियम के चलते न तो नागरिकों ओर न ही नगर विकास हो पा रहा है, इससे लोगों में छावनी क्षेत्र से अलग होने की छटपटाहट तेज होती जा रही है।
उपजिलाधिकारी शालिनी मौर्य का कहना है कि छावनी के सिविल क्षेत्र को स्थानीय निकाय में शामिल करने का प्रस्ताव ढाई साल पहले रक्षा मंत्रालय को भेजा जा चुका है। मामला रक्षा मंत्रालय में लंबित पड़ा है।
मोहम्मद साकिब आलम मुख्य अधिशासी अधिकारी छावनी परिषद – छावनी क्षेत्र के सिविल इलाकों को स्थानीय निकाय में शामिल करने, छावनी बोर्ड गठन, लीज रेंट में बढ़ोत्तरी आदि मामले आज भी रक्षा मंत्रालय के पास पड़े है उन पर आज तक निर्णय नहीं हो पाया हैं।





