अनियन्त्रित हैली सेवाओं के संचालन से खतरे में केदारघाटी, आलेख: बिमल नेगी

“बिमल नेगी वरिष्ठ पत्रकार”
पौड़ी।
पर्यावरणीय चिन्ताओं को दरकिनार कर जब आस्था पथ को घनघोर व्यवसायिकता का जामा पहनाया जायेगा तो इसके परिणाम भुगतने के लिए भी हमें तैयार रहना पड़ेगा। केदारनाथ धाम हेतु संचालित हो रही हेली सेवाओं का समय-समय पर दुर्घटनाग्रस्त होना हम सभी के लिए अत्यधिक दुःखद है। दुर्घटना होने पर सरकार व अन्य सभी सम्बन्धित ऐजेन्सीज व हितधारकों का ध्यान इस ओर जाता है लेकिन अधिकाधिक व्यवसायिक लाभ कमाने के मोह में पर्यावरणीय चिन्ताओं से मुँह मोड़ दिया जाता है। कल दिनांक 15 जून को केदारनाथ घाटी में हैलीकाॅप्टर दुर्घटनागस्त होने की यह इस वर्ष की चैथी घटना है। इसमें 7 तीर्थयात्रियों की दुःखद मृत्यु का समाचार है।
पिछले दो-तीन सालों में केदारनाथ धाम में यात्रियों की संख्या में इतनी रिकाॅर्ड तोड़ वृद्धि हुई है कि यात्रा के पिछले सारे रिकाॅर्ड ध्वस्त हो गये हैं। सरकार भी यही चाहती है कि यहाँ सीजन में रिकाॅर्ड यात्री बाबा के दर्शन के लिए पहुँचें। मंसा यही है कि पर्यटन कारोबार जितना बढ़ेगा उतना सरकार और स्थानीय लोगों को फायदा होगा। यह भी ठीक है कि यात्रा में आम लोगों की सुविधा का ध्यान भी सरकार और स्थानीय लोगों को ही रखना है। अब जब आप स्वयं ही चारधाम यात्रा का प्रचार-प्रसार कर लोगों को आमन्त्रित करते हैं तो यहाँ आस्था के नाम पर घूमने और सैरसपाटा करने वाले सैलानियों को आप रोक नहीं सकते। परन्तु आप दो काम जरूर कर सकते है। एक यात्रा की पवित्रता और मर्यादा बनाये रखने के लि कुछ कायदे अपना सकते हैं जिससे आपका धार्मिक पर्यावरण खराब न हो। दूसरा आप पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसे नियम कानून बना सकते हो कि इन क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों से इन क्षेत्रों की जैव-विविधता, भू-संरचना और आम जन-जीवन को कोई क्षति न पहुँचे। इसके लिए सरकार यात्रियों की संख्या को तो नियन्त्रित नहीं कर सकती परन्तु विशेषज्ञों की मदद से पर्यावरणीय (चाहे वह धार्मिक हो या भौतिक) क्षति को रोकने या कम करने के उपाय कर सकती है। दुर्भाग्य से सरकार का ध्यान अभी यात्रियों की संख्या बढ़ाये जाने पर तो है लेकिन पर्यावरणीय क्षति को कम करने के ऐसे अधिकाधिक उपाय खोजने पर कम है।
केदारनाथ घाटी ही नहीं पहाड़ में तमाम ऐसे क्षेत्र जहाँ सघन वनों की वजह से जैव-विविधता संरक्षित होती है, हैली सेवाओं के लगातार संचालन के लिए अत्यधिक संवेदनशील हैं। उत्तराखण्ड में 71 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर होने के कारण ये केदारनाथ घाटी को अत्यधिक नाजुक और संवेदनशील बनाते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट आॅफ इण्डिया भी केदारनाथ घाटी में हैली सेवाओं के बढ़ते शोर के कारण जानवरों के बदलते व्यवहार पर चिन्ता जता चुका है। वह मानता है कि हैली सेवाओं से इस क्षेत्र में लगातार हो रहा शोर जैव विविधता और पर्यावरण के लिए खतरनाक है।
यह सर्वविदित है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में केदारनाथ धाम ग्लेशियरों के बीच स्थित है। इसलिए विशेषज्ञों की यह चिन्ता कि हैली सेवाओं के शोर से घाटी के दरकने व धुएं से अधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लेशियरों के पिछलने से यह क्षेत्र गम्भीर खतरे की जद में है। आंकड़े बताते हैं कि सन् 1997-98 तक हैली सेवाओं के लिए केवल एक हैलीपैड था जो अब बढ़कर एक दर्जन तक पहुँच चुके हैं। इसी प्रकार 10 वर्ष पूर्व तक केदारघाटी में हैली सेवाओं की केवल 10-15 उड़ाने थी जो अब बढ़कर 250 से अधिक पहुँच चुकी हैं। सुबह 6 बजे से शांय 6 बजे तक लगभग हर पांच मिनट से भी कम समय में केदारनाथ धाम में एक हैली सेवा का आना-जाना लगा है। हालात यह हैं कि इस घाटी में हर समय हैलीकाॅप्टरों की गड़गड़ाहट से होने वाला शोर पहले से कई गुना बढ़ गया है। तय मानक है कि हैलीकाॅप्टर की शोर की आवाजें 50 डेसिबल होनी चाहिए परन्तु आज यह दुगने से भी अधिक खतरनाक स्थिति तक पहुँच गया है। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मानक तय किया था कि हैली सेवाओं की ऊंचाई 600 मी0 होनी चाहिए परन्तु आरोप हैं कि जल्दी पहुँचने के चक्कर में घाटी में 250 मी0 तक भी उड़ाने संचालित की जा रही हैं।
केदारनाथ घाटी में अत्यधिक कम ऊंचाई पर उड़ते हैलीकाॅप्टरों के शोर ने इस क्षेत्र की जैव-विविधता को अत्यधिक प्रभावित किया है। इससे कई जीवों की दुर्लभ प्रजातियाँ खतरे में हैं। इनका ब्रीडिंग साइकिल भी गड़बड़ा गया है। जानकार बताते हैं कि प्रदेश का राज्य पक्षी मोनाल अर राज्य पशु कस्तूरी मृग अब इस घाटी से लगभग पलायन कर चुके हैं। बताते हैं कि स्नो लेपर्ड, ब्राउन बीयर्स और हिमालयन थार आदि भी खतरे की जद में हैं। तितलियों की अनेक प्रजातियां तो लगभग गायब ही हो चुकी हैं। वाडिया इन्स्टीट्यूट देहरादून के भू-वैज्ञानिक पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुके हैं कि हैली सेवाओं को अत्यधिक बढ़ावा देने से मन्दिर व इस घाटी को खतरा हो सकता है।
अब सवाल यह उठता है कि लगातार हो रही दुर्घटनाओं के बावजूद सरकार और डीजीसीए इससे सबक क्यों नहीं ले रहा है। दुर्घटनाओं के तत्काल बाद सरकार इनकी रोकथाम की कई घोषणाएं करती है। इस बार भी सख्त एसओपी बनाये जाने की बात हो रही है। कभी-कभार हैली सेवाओं पर कुछ समय के लिए रोक भी लगती है। लेकिन अगली दुर्घटना तक सब पुराने ढर्रे पर चलने लगता है। इसका कारण व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा और अत्यधिक मुनाफा कमाना ही हो सकता है। केदारनाथ धाम और इस घाटी में वर्ष-2013 में हुई भीषण जल प्रलय से भी सरकार अभी तक सबक नहीं ले पायी है।
हालात जब खतरनाक स्थिति तक पहुँच चुके हैं तो सरकार को अब कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। यदि अभी भी नहीं संभले तो बहुत देर हो जायेगी। सरकार को विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति से इस खतरे का आकलन कराते हुए उनकी सिफारिशों पर गौर करना चाहिए। केदारनाथ धाम जैसा जल प्रलय और बार-बार हो रही हैली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने जरूरी हैं। सनातनी अस्था को घनघोर व्यवसाय में तब्दील न किया जाय और धार्मिक स्थलों को सुचिता, मर्यादा और परम्पराओं से खिलवाड़ न किया जाय, यही हम सब के लिए बेहतर होगा।
