..तो क्या प्रशासक नियुक्ति का पेंच वित्त विभाग के नियमों में उलझेगा…!

देहरादून॥
सूत्रों की माने तो त्रिस्तरीय पंचायतों के कार्यकाल ख़त्म होने और समय पर चुनाव न करवाये जाने के बाद राज्य सरकार ने निवर्तमानो को ही प्रशासक नियुक्त किये जाने के अजीबो गरीब फैसले का मामला अब वित्त विभाग में फ़स गया है। सूबे के वित्त विभाग ने इस पर अपनी जबरदस्त आपत्ति जता दी है। राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत के चुनाव में अभी 6 माह से अधिक का समय लग सकता है,ऐसे में वित्त विभाग ने निवर्तमान को वित्तीय अधिकार देने पर राज्य के वित्त विभाग ने एतराज़ जता दिया है।जिला पंचायतों के निवर्तमान अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख और प्रधानों को ही राज्य सरकार द्वारा प्रसाशक नियुक्त कर दिया गया था। वित्त विभाग का मानना है कि किसी भी पंचयात प्रमुख को अधिकार तभी मिल सकते है जब वो अपने बोर्ड से निर्वाचित हो और बोर्ड की अनुसंशा पर ही वित्तीय लेन देन संभव है ऐसे में जब सदन ही भंग हो तो उसके अध्यक्ष या प्रमुख को वित्तीय अधिकार देने वित्तीय उल्लघन माना जायेगा। किसी भी सलेक्टेड ब्यक्ति को वित्तीय अधिकार देना नियमों का उल्लंघन होगा ऐसे में निवर्तमानो को ही प्रसाशक बना देना अब सरकार के लिए सरदर्द हो गया है। उधर इसी मामले में एक याचिका उत्तराखंड उच्च न्यायालय में लंबित है जिस पर मंगलवार को सुनवाई होनी है। सरकार के इस अनोखे निर्णय के बारे में देश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी का कहना था कि इस तरह का निर्णय अपने आप में अजीबोगरीब है जो पूरी तरह से पंचायती राज एक्ट के ख़िलाफ़ है।
वहीं इस मामले को हाई कोर्ट में चुनौती देने वाली एक याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है, देखना है इस मसले पर माननीय न्यायालय का क्या रुख होता है।