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चिंतनीय: विभागीय आंकड़ों से कहीं अधिक है उत्तराखंड में दावानल की विक्रालता

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हिम् तुंग वाणी

मौजूदा साल में जंगलों की आग ने अनेक रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। हालांकि शुक्रवार तक वन महकमें के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 575 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं जिसमे 690 हेक्टेयर वनों के खाक होने का आंकड़ा विभाग ने जारी किया है। इसमें गढ़वाल रीज़न में 211 घटनाओं में 234 हेक्टेयर व कुमाऊं में 313 घटनाओं में 395 हेक्टेयर जंगलों के जलने का अनुमान है। किंतु इन दिनों पहाड़ के सभी गांवों व उनसे सटे सिविल वन एवं वन पंचायत के जंगल धुंए व आग की लपटों से घिरे हुए हैं। ऐसे में वन विभाग द्वारा जारी किए जा रहे आंकड़े हास्यास्पद नजर आ रहे हैं।
दरअसल विभाग के पास आरक्षित वनों व कतिपय सिविल वनों का सटीक आंकड़ा अवश्य हो सकता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद पंचायती व छितरे हुए छोटे जंगलों के बाबत विभाग की जानकारियां अधूरी लगती हैं। हज़ारों की तादाद में ऐसे कम क्षेत्रफल वाले जंगल भी हैं जिनपर वन विभाग का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है। ऐसे वनों में लगने वाली आग की सूचना भी विभाग के पास नहीं होती है।

घास , गुलदार आदि के चलते आग लगा रहे ग्रामीण
यह भी सत्य है कि गांवों के निकट स्थित वनों में अनेक मामलों में ग्रामीण स्वयं आग लगा रहे हैं। दरअसल आग लगने के बाद होने वाली बरसात में आग लगे हुए स्थान पर प्रचुर मात्रा में पशु चारे वाली घास उग आती है। इस लालच में भी अनेक गांवों में ग्रामीण जानबूझकर वनों

नूतन विशेषांक: व्यंग

को आग के हवाले कर देते हैं। वहीं गुलदार के भय से चिंतित ग्रामीणों की सोच है कि गांवों के निकट के जंगल ही गुलदार का ठिकाना होता है, इसे देखते हुए वह जंगल मे आग लगाने का प्रयास करते हैं। जबकि यह दांव उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि जंगल मे आग लगने के बाद गुलदार स्वाभाविक रूप से बस्तियों का रुख करते हैं।

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