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हरिद्वार: मैदानवाद की लहरों के बावजूद त्रिवेंद्र की नैया पार होने की उम्मीद

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अजय रावत अजेय

गंगा के ‘मैदानी प्रवेशद्वार’ हरिद्वार में भले ही मैदानवाद की हवा की सरसराहट सुनाई दे रही हो, लेकिन बावजूद इसके भाजपा की किश्ती में सवार त्रिवेंद्र सिंह रावत आंतरिक असंतोष, मैदानवाद आदि लहरों से पार पाते हुए अपनी नैय्या को पार करते हुए दिखाई दे रहे हैं। बसपा से मुस्लिम प्रत्याशी के मैदान में आने व निर्दलीय उमेश कुमार की मजबूत उपस्थिति के बाद गैर-भाजपाई वोट बैंक में बिखराव ही त्रिवेंद्र की राह आसान करता नजर आ रहा है।

■मैदानवाद की दलील में नहीं है ज्यादा दम■

दरअसल आजाद उम्मीदवार उमेश कुमार व उनके समर्थकों की दलील है कि उत्तराखंड की सरकार में मैदानी जनपद हरिद्वार की जबरदस्त उपेक्षा की गई है। उनका तर्क है कि हरिद्वार जिले में 11 विधायक होने के बावजूद मन्त्रिमण्डल में हरिद्वार का प्रतिनिधित्व सिफ़र है। जबकि आंकड़े इस दलील को जस्टिफाई करते नजर नहीं आते। दरअसल हरिद्वार जनपद की 11 विस् सीटों में से मात्र 3 पर भाजपा विधायक विराजमान हैं, जबकि पहाड़ी जनपदों में यह आंकड़ा इसके उलट है। ज़ाहिर है भाजपा नीत सरकार में महज़ 3 भाजपा विधायकों वाले जिले को प्रतिनिधित्व देना सियासी दृष्टि से आसान नहीं होता। इस दलील के साथ मैदानवाद के नारे का ज्यादा असरकारी होना सम्भव नहीं है।

■क्रिया के जवाब में प्रतिक्रिया से भी इंकार नहीं■

दुर्भाग्य से यदि मैदानवाद सरीखा विघटनकारी नारा कुछ प्रभावी होता है तो जाहिर है धर्मपुर, डोईवाला व ऋषिकेश में प्रतिक्रिया होगी, जिसका बड़ा लाभ भाजपा प्रत्याशी को मिल सकता है। वहीं हरिद्वार, रुड़की व बीएचईएल-रानीपुर में भी पहाड़ी समाज की दमदार उपस्थिति है, जो अन्ततोगत्व भाजपा को ही राहत देगी। हालांकि वीरेंद्र भी पहाड़ी वोट के हकदार होंगे किन्तु क्षेत्र में एंट्री के मामले में वह त्रिवेंद्र से काफी पीछे हैं।

■हरीश के वीटो से त्रिवेंद्र का पक्ष हुआ मजबूत■

सूत्रों की माने तो उमेश कुमार की कांग्रेस में एंट्री तकरीबन फाइनल हो चुकी थी, लेकिन हरीश रावत के वीटो के कारण उमेश कुमार कांग्रेस की दहलीज से बैरंग वापस लौटने को मजबूर हो गए। यदि उमेश कुमार बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में होते तो निश्चित रूप से पार्टी का वोट बैंक और उस पर मैदानवाद का तड़का त्रिवेंद्र की दाल आसानी से नहीं गलने देता। हरीश रावत ने त्रिवेंद्र को तब और राहत दे दी जब उन्होंने स्वयं रणछोड़ हो अपने पुत्र वीरेंद्र को मैदान-ए-जंग में उतार दिया।

■आंकड़ों की कसौटी पर भाजपा की उम्मीदें उतर रही खरी■

यदि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर फेरें तो उस चुनाव में भाजपा के निशंक ने कांग्रेस के अम्बरीष को 2 लाख 58 हज़ार मतों से शिकस्त दी थी। 2019 में निशंक ने 52.5 फीसद मत बटोरते हुए 6 लाख 65 हज़ार का आंकड़ा छुआ था। जबकि निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अम्बरीष कुमार 4 लाख 6 हज़ार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे। बसपा के अंतरिक्ष सैनी ने भी दमखम दिखाते हुए करीब पौने दो लाख मतों पर कब्ज़ा किया था। महत्वपूर्ण यह है कि 2019 के चुनाव में 52 फीसद वोट भगवा थैले में गए थे, जबकि बाकी 48 प्रतिशत मुख्यरुप से कांग्रेस व बसपा में बंटे थे। यदि 2019 के आंकड़ों की कसौटी पर 2024 के अनुमानित नतीजों को कसा जाए तो स्पष्ट है 2019 में गैर भाजपा दलों को मिलने वाले कुल मत यानी 48 प्रतिशत सिर्फ कांग्रेस और बसपा में बंटा था, जबकि इस मर्तबा उमेश कुमार की दमदार उपस्थिति के चले गैर भाजपाई वोट का तीन हिस्सों में बंटना तय है, जो भाजपा के लिए राहत भरा समीकरण हो सकता है। वहीं बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद मुस्लिम वोट का भी तीन दिशाओं में विभाजन तय है। मुस्लिम वोट बैंक ट्रेडिशनल रूप से कांग्रेस के करीब रहा है, वहीं बसपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने व उमेश कुमार की निजी पैंठ के चलते इस वोट बैंक का ट्राईफरकेशन होना तय है, जो भाजपा के लिए शुकून भरा होगा।

●विधान सभा के आंकड़े दे रहे त्रिवेंद्र को तकलीफ●

हरिद्वार लोकसभा सीट के तहत आने वाली 14 विधानसभाओं में से महज 6 पर ही भाजपा काबिज है। 5 सीटें कांग्रेस के पास हैं, जबकि एक पर बसपा व एक निर्दलीय के खाते में है। वहीं एक सीट रिक्त है। यदि उमेश हरिद्वार में कांग्रेस के साथ भाजपा के वोट बैंक पर सेंधमारी में सफल होते हैं तो वह निश्चित रूप से त्रिवेंद्र को तकलीफ देने की स्थिति में पंहुच सकते हैं। वहीं, यदि वीरेंद्र मुस्लिम वोट बैंक के साथ ऋषिकेश, डोईवाला व धर्मपुर में त्रिवेंद्र के वोट बैंक पर ठीकठाक सेंधमारी में कामयाब होते हैं तो हरीश रावत का पुत्रमोह सुफल भी हो सकता है। किंतु यह दो संभावनाएं असंभव न सही लेकिन मुश्किल अवश्य हैं।

◆भाजपा में असंतोष लेकिन बिखरा हुआ◆

ऐसा नहीं कि त्रिवेंद्र को लेकर हरिद्वार जनपद के बड़े भाजपाई क्षत्रपों में असंतोष नहीं है। अनेक बड़े नेता त्रिवेंद्र को लेकर अधिक उत्साहित नहीं हैं। किंतु इन क्षत्रपों की आपसी खींचतान भी जगज़ाहिर है। त्रिवेंद्र के खिलाफ हरिद्वार भाजपा का असंतोष स्वयं ही संगठित नहीं है। ऐसे में किसी ऐसे संघठित भितरघात की संभावनाएं नहीं हैं जो भाजपा को बड़ा नुकसान पंहुचा सके। हालांकि जिस तरह से अनेक क्षत्रपों के उदासीन होने की सूचनाएं है लेकिन इन असंतुष्ट लीडरों के दरमियान ही सामंजस्य नहीं है। ऐसे में अन्ततोगत्व भाजपा का संगठन व कार्यकर्ताओं के समर्पण व निष्ठा के फलस्वरूप भाजपा के अधिक डैमेज होने की आशंका बेहद कम है।

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