गैरसैण क्षेत्र की मजबूत सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है पांडव लीला
गैरसैण से जितेंद्र बिष्ट,( हिमतुंग वाणी)
चमोली जनपद के सीमांत गांवों के ग्रामीण इन दिनों पांडव लीला के मंचन के साथ पांडव नृत्य में झूम रहे हैं। इस क्षेत्र के ग्रामीण अपनी इस परंपरा को अपनी संस्कृति को अक्षुण्ण बना बचाये रखे हैं।
उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण व इससे लगे कुमाऊं के गांवों में आज भी पुरानी परंपराएं अपने स्वरूप के साथ जीवंत हैं।
महाभारत के पात्र पांडवों के जीवन वृत पर आधारित लीलाएं गांव गांव में आयोजित हो रही हैं। इन लीलाओं में पांडवों के चरित्र को निभाते हुए गांव के युवा बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
रात भर चलने वाली इन लीलाओं में स्त्री व पुरुषों द्वारा महाभारत के पात्रों में डूब कर स्वांग रचे जाते हैं। लीला को देखने उमड़े ग्रामीण इन स्वांग के जरिये जहां महाभारत की कथा के मर्म को समझते हैं वहीं मनोरंजन भी होता है।
इन आयोजनों में बड़ी तादात में प्रवासी लोग भी गांव आकर अपनी परंपराओं से जुड़ते हैं। इन लीलाओं के जरिये न केवल लोग अपनी जड़ों से जुड़ते हैं बल्कि पहाड़ से उनका जुड़ाव लगातार बना रहता है।
इन मौकों पर होने वाले पांडव नृत्य भी काफी आकर्षक होते हैं, जिनमे बच्चे बूढ़े जवान व महिलाएं समान रूप से भाग लेते हैं।
पांडव लीला मनाने की यह परंपरा समूचे गैरसैण व सीमांत क्षेत्र की मजबूत संस्कृति व सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान बताती है।