अनिल बलूनी को पहचान का संकट, तो गोदियाल को संगठन का टोटा
★गढ़वाल सीट पर दोनों लोकसभा प्रत्याशी जूझ रहे है अपनी ही कमियों से★
*अनिल बहुगुणा अनिल*
गढ़़वाल संसदीय सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही आमने सामने का मुकाबला होना तय है, लेकिन भाजपा प्रत्याशी अपनी पहचान और कांग्रेस प्रत्याशी पार्टी के लचर सांगठनिक ढांचे से जूझ रहा है। लोकसभा की इस सीट पर दोनों ही प्रत्याशी पहली बार सांसद के चुनावी जंग में है। गणेश गोदियाल को विधानसभा चुनाव लड़ने का अनुभव है तो भाजपा के प्रत्याशी पहली बार सक्रिय राजनीति में अपना भाग्य आजमा रहे है। हालांकि अनिल बलूनी देश के उच्च सदन में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व 6 वर्ष तक कर चुके है। उच्च सदन में रहने के अपने कार्यकाल में वे उत्तराखंड की आम जनता से सीधे संवाद बनाने में पूरी तरह से चुके रहे, हालांकि बलूनी के इस कार्यकाल का एक बड़ा समय उनकी ख़तरनाक बीमारी से जूझते निकल गया था। अनिल बलूनी भाजपा के आलाकमान के किचन कैबीनेट के सदस्यों में गिने जाते है लेकिन वे कभी भी पहाड़ के आवाम से सीधे नहीं जुड़ पाये।
गढ़वाल संसदीय सीट के शहरी मतदाताओं को अगर छोड़ दिया जाय तो 14 लाख से अधिक के मतदाताओं वाली इस संसदीय सीट के ग्रामीण और दूरदराज के मतदाता अनिल बलूनी के नाम से बहुत ज्यादा वाकिफ़ नहीं है। प्रचार में बलूनी को भाजपा और मोदी के सहारे अपने आपको वोटरों के बीच प्रस्तुत करना पड़ रहा है और मोदी के नाम के सहारे ही अपनी चुनावी कसरत पूरी करनी पड़ रही है। उनका पार्टी कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद भी नहीं रहा। बलूनी ने स्थानीय स्तर पर अपने राज्यसभा कार्यकाल में जो भी विशालकाय प्रोजेक्ट पौडी गढ़वाल जिले को दिए वे ग्रामीण मतदाताओं के बीच बहुत असरकारी नहीं है।
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल श्रीनगर विधानसभा सीट से विद्यायक रहने के साथ ही बद्री केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष भी रख चुके है। वे कांग्रेस के प्रदेश प्रमुख भी रहे है। पूर्व विद्यायक, प्रदेश अध्यक्ष और बद्री केदार मंदिर समिति का अध्यक्ष रहने की वजह से गोदियाल के नाम से मतदाता तरीक़े से वाकिफ़ है। इसी वज़ह से उन्हें वोटरों के बीच पहुँचने में आसानी तो है लेकिन कांग्रेस के बूथ स्तर पर संगठन के न होने से कांग्रेस प्रत्याशी गोदियाल पीछे छूटते जा रहे है।
जबकि भाजपा के अनिल बलूनी इस मामले में बहुत आगे निकल चुके है। पन्ना प्रमुख से ले कर जिला अध्यक्ष तक के पदाधिकारी भाजपा को आगे रखने में सफल हो रहे है। जैसे जैसे वोटिंग का समय नज़दीक आ रहा है दोनों ही नेताओं ने अपना प्रचार- प्रसार भी पूरी तरह से चरम पर पहुंचा दिया है। अनिल बलूनी ने जिस तेजी से कॉग्रेस से नेताओं को ढूंढ ढूंढ का भाजपा में जमा क
रवा उससे भी भाजपा को फ़ायदा कम और नुक़सान अधिक होने की आशंका हो गई है। भाजपा में कांग्रेस से आ कर शामिल होने वाले नेताओं के कारण पुराने भाजपा कार्यकर्ता अपने राजनीतिक भविष्य के प्रति अब आशंकित होता जा रहा है जो हालिया चुनाव में दिक्कत पैदा कर सकता है। भाजपा को अपने चुनाव प्रचार के साथ ही अपने पुराने और वफ़ादार कार्यकर्ताओं को भी साथ ले कर चलने की मेहनत और करनी पड़ रही है क्योंकि जिस तरह से पुराने भाजपा कार्यकर्ता नये बने भाजपाईयों से आशंकित है वो भी नाराजगी दिखा सकते है।