ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट: आगाज़ तो बुलंद, अब अंजाम की बारी
■ढाई लाख करोड़ के लक्ष्य के मुकाबले 3.52 लाख करोड़ के करार
■44 हज़ार करोड़ की ग्राउंडिंग मौके पर ही
■पहाड़ और मैदान की कसौटी एक चुनौती
■स्थानीय स्तर पर स्तरीय रोजगार सृजन भी अन्य चुनौती
अजय रावत अजेय, हिम् तुंग वाणी
इसमें दो राय नहीं कि ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 का आगाज़ बेहतरीन रहा, सरकार द्वारा प्रचारित किया जा रहा था कि इस दौरान ढाई लाख करोड़ के इन्वेस्टमेंट एमओयू साइन किये जायेंगे किन्तु इसके विपरीत 3 लाख 52 हज़ार के करार पर दस्तखत होना इस जलसे की पहली बड़ी कामयाबी है, मौके पर ही 44 हज़ार करोड़ की ग्राउंडिंग होना पहली असल सफलता इस 2 दिनी मेगा आयोजन की रही है।
एमओयू की अमाउंट का अपेक्षित साइज से 1 लाख 2 हज़ार करोड़ अधिक होना इस बात की तस्दीक करता है कि सरकार द्वारा इस इवेंट के लिए इन्वेस्टर्स को आमंत्रित करने में जो एक्सरसाइज़ की गई थी, वह काफी गंभीर व असरकारी थी।
इस दौरान 44 हज़ार करोड़ के निवेश की ग्राउंडिंग के दस्तावेजों पर दस्तखत होना पहली जमीनी सफलता है, क्योंकि 2018 में आयोजित हुए फर्स्ट ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी डेढ़ लाख करोड़ के करार होने की बात प्रचारित हुई थी जबकि धरातल पर हकीकत कुछ इतर थी।
चुनौती एक:
आमतौर पर देखा गया है कि निवेशक पहाड़ चढ़ने को लेकर उत्सुक नहीं होते। पहाड़ की जॉग्राफिकल और लॉजिस्टिक कंडिशन्स मुफीद न होने के कारण बड़े इन्वेस्टर्स पहाड़ से किनाराकशी कर तराई व मैदान में इन्वेस्ट करने को श्रेयस्कर समझते हैं। इस बार हुए करार में निर्माण व एनर्जी सेक्टर के साथ सर्विस सेक्टर में भी बड़े एमओयू साइन हुए हैं। मैनुफैक्चरिंग सेक्टर के तहत निश्चित रूप से पहाड़ में यूनिट एस्टेब्लिश करना कठिन है किंतु सौर ऊर्जा के साथ सर्विस सेक्टर के एजुकेशन व हेल्थ क्षेत्र में पहाड़ में पैसा इन्वेस्ट हो तो मैदान के साथ पहाड़ को भी इस समिट का कुछ फायदा मिल सकता है।
चुनौती 2:
किसी भी इंवेस्टिमेन्ट का असल लाभ तभी मिल सकता है
जब टैक्स के रूप में मिलने वाले रेवेन्यू के साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार भी सृजित हो सके। एनडी तिवारी के शासन काल के दौरान तराई में लगी अनेक आद्योगिक इकाइयों से सृजित हुए रोजगार का लाभ निकटवर्ती उप्र के जिलों के लोगों को ही हुआ। इन इकाइयों में अधिकांश कामगार सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, रामपुर, मोरादाबाद, बरेली,पीलीभीत जैसे जिलों के श्रमिकों को ही हुआ। यदि हालिया एमओयू की ग्राउंडिंग के दौरान रोजगार सृजन के पहलू को गंभीरता से शामिल किया गया तो यह समिट निश्चित रूप से उत्तराखंड की तस्वीर बदलने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।