तो क्या कैबिनेट रीशफलिंग के बहाने प्रेमचंद प्रकरण का होगा पटाक्षेप.!

“अनिल बहुगुणा ‘अनिल'”
कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के विस् में दिए गए भाषण में शामिल एक शब्द से उपजा आक्रोश और फैल रहा है। इस बबाल की आग में ऋतु खंडूरी द्वारा सदन में बद्रीनाथ के विधायक लखपत सिंह बुटोला को लताड़ने व कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के ऋषिकेश मेयर चुनाव प्रचार के दौरान दिए भाषण ने घी का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा सदन में हुए शब्दबाज़ी से खासे नाराज हुये और उन्होंने मीडिया के सामने इस आपत्ति भी जता दी इसको भी भाजपा आलाकमान ने गंभीरता से लिया।वहीं कृषि मंत्री गणेश जोशी की भरे सदन में प्रश्नोत्तरी के दौरान फ़ज़ीहत के प्रकरण से सरकार जबरदस्त दबाव में है। कुल मिलाकर प्रेमचंद के बयान से शुरू हुआ यह मामला नियंत्रण में नहीं आ पा रहा है।
इस बीच चर्चा है कि प्रदेश में मचे इस बबाल और पहाड़ी समाज में व्याप्त आक्रोश को देखते हुए भाजपा हाई कमान इस मामले का यथाशीघ्र पटाक्षेप करने जा रहा है। किंतु यदि सिर्फ प्रेमचन्द अग्रवाल को कैबिनेट से अलग किया जाता है तो वैश्य समाज के साथ मैदानी लोगों के मध्य भी असंतोष की संभावना है। सरकार इन सब से बचने के उपाय में लगी है। सूत्रों का मानना है कि भविष्य में उठने वाले सवालों को देखते हुए पार्टी हाई कमान एक फूल प्रूफ प्लान तैयार कर रहा है। जिसके तहत मंत्रिमंडल की रीशफलिंग के विकल्प पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इस रीशफलिंग की जद में केवल प्रेमचंद अग्रवाल नहीं आएंगे, बल्कि दो अथवा तीन अन्य मंत्रियों को भी कैबिनेट से मुक्त कर अन्य दायित्व दिए जा सकते हैं। कैबिनेट के पुनर्गठन व विस्तार के बाबत मुख्यमंत्री धामी और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट भी अनेक बार बयान दे चुके हैं। अतः यदि मंत्रिमंडल का पुनर्गठन व विस्तार होता है तो यह एक सामान्य प्रक्रिया होगी, जिससे किसी वर्ग विशेष के संभावित असंतोष की संभावनाएं भी बेहद कम हो जाएंगी। साथ ही मौजूदा बबाल पर किसी हद तक रोक लगाने में भी सरकार व भाजपा कामियाब हो सकते हैं। हालांकि मन्त्रिमण्डल के पुनर्गठन व विस्तार उत्तराखंड में एक बड़ा जटिल विषय होता है इसमें सर्वमान्य फॉर्मूला निकलना बड़ी मशक्कत का काम है। हालांकि इस फार्मूले के लिए महेंद्र भट्ट, दुष्यंत गौतम और अजय की दिल्ली में वार्ता हो चुकी है और इस पर हुई सहमति से आलाकमान को भी अवगत करा दिया गया है। यदि संभावित रीशफलिंग होती है तो पार्टी हाई कमान व सीएम धामी किस कुशलता से इसे अंजाम दे सकते हैं और यह भी देखना होगा कि यदि पार्टी यह कदम उठाती है तो क्या “सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे” का यह भाजपा का फार्मूला इस मौजूदा आक्रोश को किस हद तक कम कर सकता है।