पौड़ी: बागियों से जूझेगी भाजपा, कांग्रेस को इस मोर्चे पर राहत, निर्दलीय कर सकते चमत्कार
अजय रावत अजेय
गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौड़ी की नगर पालिका अध्यक्ष पद की जंग में जहां सत्ताधारी भाजपा को बागियों के चलते असहज स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, वहीं एक-दो नेत्रियों के पार्टी से अलविदा कहने के बावजूद कांग्रेस में सीधी बगावत नजर नहीं आ रही है। पहली मर्तबा महिला के लिए आरक्षित होने के चलते भाजपा की उत्साहित महिला नेत्रियों की हसरतें उड़ान भरने लगी हैं, नतीजतन पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी सुषमा रावत के सामने रणभूमि में बागियों से निपटने की अतिरिक्त चुनौती भी खड़ी हो गयी है।
भाजपा ने वरिष्ठ नेत्री व निवर्तमान पौड़ी जिला इकाई की अध्यक्ष सुषमा रावत पर विश्वास जताते हुए उन्हें अधिकृत उम्मीदवार क्या बनाया कि टिकट की हसरत पाल रही अन्य आधा दर्जन से अधिक महिला कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर बर्फ जम गई। ऐसे में कुसुम चमोली, वीरा भंडारी, प्रियंका थपलियाल व हिमानी नेगी ने बतौर बागी उम्मीदवार मैदान में उतरने का फैसला कर दिया। हालांकि सुषमा रावत राज्य आंदोलनकारी होने के साथ जिले में भाजपा की एक वरिष्ठ कार्यकर्ता रहीं हैं, साथ ही प्रत्याशी घोषित होने से पूर्व वह भाजपा के पौड़ी सांगठनिक जिले की अध्यक्ष का दायित्व भी निभा रही थीं। उनके इस तज़ुर्बे और बड़े बबाल से निपटने को भाजपा के समक्ष सुषमा रावत ही सबसे सहज विकल्प था। किंतु कुसुम चमोली भी लगातार नपा अध्यक्ष के चुनावी समर में उतरने को बीते कई वर्षों से तैयारियां कर रही थीं, वह पिछली बार भी बतौर निर्दल उम्मीदवार अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ी थीं, लिहाजा उनका मैदान में डटे रहना हैरान नहीं करता। वहीं राज्य आंदोलनकारी व शहर में लगातार सक्रिय रहने वाली वीरा भंडारी भी लगातार जिस प्रकार से पौड़ी शहर की समस्याओं के बाबत मुखर दिखाई दे रही थीं, उससे साफ था कि महिला आरक्षण की स्थिति में वीरा भंडारी भी किस्मत आजमाने से नहीं चूकेंगी। प्रियंका थपलियाल भी लगातार पौड़ी नगर की समस्याओं को लेकर सक्रिय नजर आ रही थीं, भौतिक रूप से ही नहीं सोशल मीडिया में भी उनकी सक्रियता से साफ था कि महिला आरक्षण की स्थिति में वह भी पौड़ी के चुनावी रण में कूदने से गुरेज नहीं करेंगीं। बागियों की फेहरिस्त में सबसे अहम नाम हिमानी नेगी का आता है, अहम इसलिए कि वह पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व बड़े कारोबारी केशर सिंह नेगी की पत्नी हैं। हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर वह पौड़ी नगर के मसलों को लेकर सड़कों पर कम ही नजर आईं, लेकिन उनके पति केशर सिंह नेगी , जो कि वर्तमान में भाजपा में शामिल होने के साथ मनीष खंडूरी कैम्प के महत्वपूर्ण स्तम्भ भी माने जाते हैं, के कद को देखते हुए हिमानी नेगी भाजपा को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। बेहद खर्चीली चुनावी राजनीति के दौर में आर्थिक संसाधन भी अहम हो चुके हैं, जगजाहिर है कि हिमानी नेगी के पति आर्थिक रूप से काफ़ी सशक्त हैं, लिहाज़ा वह छोटे से नगर पौड़ी की चुनावी गणित को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं।
इधर भाजपा प्रत्याशी सुषमा रावत के लिए सुकून की बात है कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री व पूर्व दर्जाधारी सरिता नेगी को उन्होंने अपने पाले में कर लिया है, जिसका उन्हें मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलना तय है। साथ ही सरिता के जनाधार को अपने पाले में करने में भी सुषमा को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। किंतु इतना तय है कि भाजपा को पौड़ी में चौतरफा ऐसे बागियों से निपटना होगा, जिनका कहीं न कहीं अपना जनाधार है। महज कुछ हजार वोटों वाली नगर पालिका पौड़ी के चुनाव में कुछ सौ मत भी तस्वीर बदलने को काफी हो सकते हैं।
उधर कांग्रेस की बात की जाए तो कम से कम बागियों के मोर्चे पर उसने भाजपा से एक बड़ी मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली है। हालांकि टिकट की प्रबल दावेदार व वरिष्ठ कांग्रेसी गोदाम्बरी रावत ने नाराज़ होकर पार्टी को अलविदा तो कह दिया किंतु व बतौर बागी चुनाव मैदान में नहीं उतरीं। वहीं सरिता नेगी ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन अवश्य थामा लेकिन वह भी बागी प्रत्याशी के रूप में मैदान में नहीं उतरी। ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी यशोदा देवी को अब सिर्फ भाजपा से ही मोर्चा लेना है, पार्टी के आंतरिक मोर्चे पर उनकी राह में कोई रोड़ा नहीं है।
कांग्रेस के परंपरागत गढ़ पौड़ी में यदि दलगत रूप से मतदान का ट्रेंड रहा तो बागियों से जूझ रही भाजपा के लिए यह जंग बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकती है। वहीं सत्ताधारी भाजपा लोगों को यह समझाने में सफल रही कि स्थानीय सरकार में भी भाजपा के काबिज होने से ट्रिपल इंजिन की पावर मिलेगी तो बागियों की चुनौती के बावजूद भाजपा को सफलता मिल सकती है। किंतु तीसरा पहलू सबसे अहम है कि यदि लोकल बॉडी इलेक्शन में मतदाताओं ने पार्टी पॉलिटिक्स से इतर जाने का फैसला लिया तो पौड़ी नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव का परिणाम चौंकाने वाला भी हो सकता है।