अनिल बलूनी: ऊंची पंहुच, बड़ा नाम, तो अब करने होंगे ऐतिहासिक काम
अजय रावत अजेय
■सबसे कठिन मानी जा रही गढ़वाल की जंग को आसानी से फतह किया अनिल ने■
◆केंद्रीय कैबिनेट में तय माना जा रहा स्थान गठबंधन सरकार के चलते नहीं मिल पाया◆
●अब एक सांसद के रूप में बड़ी उम्मीदों को साकार करने में होगी बलूनी के हुनर की परीक्षा●
यूं तो अनिल बलूनी पूर्व से ही भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की एक महत्वपूर्ण धुरी रहे हैं, यही कारण था कि राज्यसभा का कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने अपनी इच्छानुसार अपनी जन्मभूमि पौड़ी यानी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ने का फैसला लिया तो पब्लिक डोमेन में यह बात स्वतः ही फैल चुकी थी कि यदि अनिल सांसद निर्वाचित होते हैं और केंद्र में पुनः राजग की सरकार गठित होती है तो उनका कैबिनेट में शामिल होना तय है। इस बीच चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अमित शाह ने कोटद्वार एवम राजनाथ सिंह ने गौचर में आयोजित जनसभाओं में स्पष्ट संकेत दे दिए थे कि बलूनी न केवल सांसद बल्कि बतौर एक मंत्री उम्मीदवार जनता के मध्य हैं। किन्तु केंद्र में भाजपा को अकेले दम पर 273 का मैजिक नम्बर हासिल न होने से बलूनी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं पा सके, अब देखना होगा बतौर सांसद वह किस हुनर के साथ जनता की उन अपेक्षाओं पर को पूरा करते हैं जो एक मंत्री के रूप में अपेक्षित थीं।
●सियासी पंडितों की गणित को खारिज कर बलूनी ने स्वयं को साबित किया●
कांग्रेस उम्मीदवार गणेश गोदियाल ने जब नामांकन के पश्चात पौड़ी के रामलीला मैदान में एक विशाल जनसभा को एकत्र किया तो अतिउत्साह में अनेक पत्रकारों व राजनैतिक विश्लेषकों ने यह राय बना डाली कि अनिल बलूनी के लिए 2024 की राह आसान नहीं होने वाली है। दरअसल सोशल मीडिया में भी ऐसा परसेप्शन बनाया गया कि कम से कम गढ़वाल लोकसभा सीट कांग्रेस की झोली में जाने वाली है। देहरादून से दिल्ली तक के पत्रकारों ने अपने स्थानीय सूत्रों से प्राप्त इनपुट को पुख़्ता मानते हुए मतदान के बाद यह चलाना शुरू कर दिया कि उत्तराखंड में जिन 2 या 3 सीटों पर इस मर्तबा बीजेपी शिकस्त खाने की स्थिति में है उनमें गढ़वाल पहली है। लेकिन इन सियासी पंडितों व पत्रकारों ने आम मतदाताओं के उस विश्वास को नजरअंदाज कर दिया जिनको पूर्ण विश्वास था कि केंद्र में पुनः भाजपा नीत सरकार की सत्तारूढ़ होगी और अनिल बलूनी उसमे अहम प्रतिनिधित्व करेंगे। बहरहाल बलूनी ने इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी शानदार जीत हासिल कर मोदी-शाह की टीम में खुद को साबित कर दिखा दिया, अलबत्ता गठबंधन की मजबूरियों के चलते सरकार में आधिकारिक रूप से उन्हें अपेक्षित स्थान मिलना सम्भव नहीं हो पाया।
■अपने सर्वांगीण विकास के विज़न को मूर्त रूप देना अब बलूनी के लिए नया टास्क■
बेशक अनिल बलूनी अपने राज्यसभा कार्यकाल से ही विकेन्द्रीकृत विकास के विज़न के साथ काम करने के उदाहरण पेश कर चुके हैं। बद्रीनाथ व केदारनाथ धामों वाली गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में प्रायः यह देखने को मिलता है कि यहां से निर्वाचित सांसदों की प्रार्थमिकताएँ धामों से सम्बंधित बड़ी विकास योजनाओं तक ही सिमट कर रह जाती हैं किंतु बलूनी पूर्व से ही रामनगर से नरेंद्रनगर व कोटद्वार से बद्रीनाथ तक एक डिसेंट्रेलाइज़ डेवलपमेंट की कार्ययोजना से आगे बढ़ते नजर आए हैं। राज्य गठन से ही उपेक्षित पड़े गढ़वाल जिले व मण्डल के मुख्यालय पौड़ी में करीब 25 करोड़ की मदद से माउंटेन म्यूजियम व तारामंडल की स्थापना करने की उनकी पहल से उनकी सोच परिलक्षित हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बलूनी दिल्ली में अपने वजन का पूरा उपयोग करते हुए गढ़वाल संसदीय क्षेत्र को एक ऐतिहासिक कार्यकाल देने में सफल होंगे।
◆कोटद्वार व नरेंद्रनगर में मिला प्यार, अन्य सभी 12 में भी दुलार◆
कोटद्वार व नरेन्द्रनगर ऐसी विधानसभाएं रहीं जहां अनिल बलूनी को छप्पर फाड़ के वोट हासिल हुई, यहां वह अपने प्रतिद्वंदी गणेश गोदियाल से 20 हज़ार वोट से आगे रहे। पौड़ी व श्रीनगर को छोड़ अन्य विधानसभाओं में भी उनकी जीत का अंतर 10 हजार से ऊपर रहा। लिहाज़ा अब हर विधानसभा क्षेत्र को अनिल बलूनी से कुछ बड़ी योजनाओं का इंतज़ार होगा। कोटद्वार से बलूनी का पुराना नाता रहा है इसी लिए यहां के वोटरों ने उन पर खूब प्यार लुटाया, हालांकि उनके द्वारा कोटद्वार से आनंद विहार तक सीधी व सहज ट्रेन की सौगात अपने राज्यसभा कार्यकाल के दौरान ही दे दी गयी थी। किन्तु कोटद्वार शहर को बलूनी से बड़ी अपेक्षाएं हैं, एनएच 119(534) के अपग्रेडेशन के कार्य को तेजी से पूरा करना, केंद्रीय विद्यालय की स्थापना, रेल सेवाओं में विस्तार जैसी उम्मीदों को पूरा कर बलूनी को कोटद्वार की जनता के प्यार को और गहरा करना होगा। अपनी विस् अर्थात पौड़ी से उन्हें अपेक्षित बढ़त न मिली हो किन्तु नैसर्गिक लगाव के चलते उपेक्षित पड़ी इस विस् के सर्वांगीण विकास की बड़ी जिम्मेदारी भी बलूनी के कंधों पर है। लब्बोलुआब यह कि स्वयम बलूनी भी दावा कर चुके हैं कि उनका लोस सांसद कार्यकाल गढ़वाल लोकसभा के इतिहास में सबसे सुनहरा काल होने वाला है, वहीं अमित शाह द्वारा अनिल बलूनी की जीत के बदले गढ़वाल के विकास का जिम्मा अपने कंधों में लेने का वायदा करने व राजनाथ द्वारा जताए गए विश्वास के बाद अनिल बलूनी को अनथके हुए अभी से काम पर जुटना होगा।
◆परिस्थितियां उम्मीद के अनुकूल नहीं, किन्तु उम्मीदों का बड़ा बोझ◆
यह कटुसत्य है कि यह विशुद्ध भाजपा सरकार नहीं है, गठबंधन की मजबूरियों के चलते कार्य करने में अपेक्षित लिबर्टी मिलना असम्भव है। वहीं गढ़वाल की जनता का बलूनी की कार्यक्षमता व मजबूत पकड़ पर इतना भरोसा था कि एक कड़े मुकाबले वाली जंग में बलूनी द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वी को चारों खाने चित्त कर दिया गया। ज़ाहिर है बलूनी ऐसे विरले सांसद हैं जिनको लेकर उन
के संसदीय क्षेत्र में यह धारणा है कि वह केंद्र के अधीन आने वाली योजनाओं का रुख आसानी से अपने संसदीय क्षेत्र की तरफ मोड़ सकते हैं। ऐसे में अब अनिल बलूनी को उनके प्रति जनता में बने इस परसेप्शन को बचाये रखना भी एक चुनौती है।