तो फिर टाले जा सकते हैं लोकल बॉडीज के चुनाव…!
★अध्यादेश के जरिये राज्य सरकार बढ़ा सकती है प्रशासकों का कार्यकाल ★
अनिल बहुगुणा अनिल
राज्य में नगर निगमों और निकाय चुनावों को एक बार फिर से टालने की कोशिश की जा रही है हालांकि सरकार उच्च न्यायालय में हलफनामा दे चुकी है कि 6 जुलाई से पहले पहले सरकार नगर निकाय और नगर पंचायतों का चुनाव सम्पन्न करवा देगी। सरकार ने मतदाता सूची के संशोधन का कार्य भी शुरू कर दिया है। फिलवक्त लगता नहीं है कि राज्य में लोकल बॉडीज के चुनाव करवाने की मंशा राज्य सरकार का है।
वर्तमान में सूबे में 8 नगर निगमों सहित लगभग100 से अधिक नगर पंचायत और नगरपालिका हैं। सरकार ने अभी तक इन लोकल बॉडीज के चुनावों के लिए आरक्षण तय करने का प्रथम चरण ही पूरा किया है, अभी आरक्षण लागू करने के बाद आपत्तियों से मिलने वाले तर्क पर नये सिरे से अंतिम आरक्षण तय किया जाना भी बाक़ी है। इस कार्य में आदर्श आचार संहिता के ख़त्म होने के बाद लगभग दो माह का समय लगना लाज़मी है। ऐसे में ये नहीं लगता कि राज्य सरकार द्वारा न्यायालय में दिये गये हलफनामे के मुताबिक़ ही राज्य में लोकल बॉडीज के चुनाव सम्पन्न हो पाएंगे।
अब राज्य सरकार इन चुनावों को किसी भी तरह टालने के लिए कोई और बहना ढूढ़ने में लगी है। इस दौरान सरकार द्वारा ये भी तय किया गया था कि राज्य के छावनी इलाको को भी इस बार नगर निगमों या पालिकाओं में मर्ज किया जाना है। अगर इसी बार इस कार्य को किया जाना है तो वार्डो का गठन और परिसीमन में और अधिक समय लग सकता है, ऐसे में जुलाई माह तक स्थानीय निकायों के चुनाव को पूर्ण करवा लिया जायेगा लगता नहीं है।
हालांकि सरकार लोकल बॉडीज के इन चुनावों को हलफनामे के मुताबिक़ करवाने में अपने आप को काफ़ी मसरूफ दिखा कर बैठकों का सिलसिला चलाये हुये है। अब सरकार के पास दो ही रास्ते बचे है कि या तो वो हलफनामे के अनुसार जुलाई माह तक स्थानीय निकाय के चुनाव करवा लें या तो फिर पुरानी नजीरों का इस्तेमाल कर अध्यादेश के माध्यम से प्रशासकों के कार्यकाल को विस्तार दे दे। 4 जून को लोकसभा के नतीजों के बाद सरकार इस पर अंतिम फैसला कर सकती है।
यदि राज्य में सरकार के मुताबिक़ रिजल्ट आये तो सरकार जुलाई के कुछ माह बाद ही लोकल बॉडीज के चुनाव करवा सकती है और यदि कुछ सीटों पर ऊँच नीच हो गई तो राज्य सरकार फ़िलहाल ऐसा कोई आत्मघाती कदम उठाने से परहेज़ ही करेगी।
लोकल बॉडीज के चुनाव को टालने और न्यायालय में बहानेबाजी के लिए राज्य सरकार के पास कई बहाने है, मसलन आतिबृष्टि, सड़कों का बंद होना, चारधाम यात्रा का गतिमान होना आदि आदि, लेकिन यदि उच्च न्यायालय अड़ गया तो सरकार की किरकिरी हो सकती है। ऐसे में ऑर्डिनेंस ही राज्य सरकार को बचा सकता है। ये भी माना जा रहा है कि लोकल बॉडीज के चु
नाव में सरकार को नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है जिसको ठीक करने के लिए सरकार इन चुनावों को कैसे भी टालना चाहती है। कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि लोकसभा चुनाव के नतीज़ों के बाद राज्य सरकार में भी चेंज हो सकता है और नये मंत्रियों के साथ पुराने मंत्रियों के विभाग भी फेटें जा सकते है ऐसे में सरकार ये सब करने के बाद ही निकाय चुनावों में जाने की हिम्मत कर पायेगी।