बनभूलपुरा हिंसा: कहीं यूसीसी लागू होने की खीज़ तो नहीं…..!
हिम् तुंग वाणी
इसे इत्तेफाक ही कहा जायेगा कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने के महज 24 घण्टे के अंदर राज्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नगर हल्द्वानी धधक उठा। अवैध अतिक्रमण की जद में आई मजार को ध्वस्त करने के दौरान जिस तरह से एक समुदाय विशेष का गुस्सा बेकाबू हो उठा, उसके संकेत कहीं दूसरी तरफ भी इशारा करते हैं। इससे पूर्व कुछ माह पूर्व भी राज्य में दर्जनों अवैध मजारों को ध्वस्त करने की कार्रवाई की गई, किन्तु इतना आक्रोश गुरुवार को हल्द्वानी में ही देखा गया। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि एक समुदाय विशेष के कुछ लोगों को यूसीसी के प्रावधान अपने समुदाय के खिलाफ समझने की मानसिकता रही है।
भले हल्द्वानी में हुई जबरदस्त हिंसा का बुनियादी सबब अवैध रूप से बनी एक मजार को ध्वस्त करने की कार्रवाई का विरोध रहा हो, किन्तु जिस प्रकार से एक समुदाय विशेष जबरदस्त हिंसा व आगजनी पर उतर आया, उससे साफ जाहिर होता है कि कहीं कोई और खीज़ दंगाइयों के दिल में घर कर गयी है, जिसे उन्होंने मजार ध्वस्तीकरण के विरोध के बाद उतारने का रास्ता अख्तियार किया है।
उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने का ऐतिहासिक फैसला लेकर यहां की धामी सरकार ने अन्य राज्यों के लिए भी नजीर पेश की है। सम्प्रदाय विशेष के अनेक मजहबी नेताओं को गलतफहमी है कि इस कानून के निशाने पर उनका ही समुदाय है। संकीर्ण मानसिकता वाले ऐसे तत्वों को लगता है कि उत्तराखंड द्वारा इस कानून को पास किये जाने पर इसका राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू हो
ने रास्ता खुलने लगा है। इस कानून के पास होने के महज 24 घण्टे के अंदर मात्र एक अवैध मजार ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के विरोध में बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी व तोड़फोड़ की घटना आसानी से गले नहीं उतरती। वहीं समुदाय विशेष के उपद्रवियों द्वारा चुन चुन कर बहुसंख्यक समुदाय के घरों व प्रतिष्ठानों को निशाने पर लिए जाने से साफ होता है कि उपद्रवी दंगे के लिए किसी मौके की तलाश में थे। यह पूरी तरह से पूर्व नियोजित व संगठित उपद्रव की घटना प्रतीत होती है, जिसके पीछे सिर्फ एक अवैध मजार के ध्वस्तीकरण का विरोध नहीं हो सकता।