फर्जी डिग्री: यूं ही तो कोई बियावान में दुकान नहीं सजाता
अजय रावत अजेय
बाहरी प्रदेशों से फर्जी मार्कशीट व सर्टिफिकेट की बुनियाद पर उत्तराखंड के तमाम सरकारी महकमों में नौकरी पाने के अनेक मामलों का तो लगातार खुलासा होता रहा है। चालक से लेकर शिक्षक व क्लास टू तक के ओहदों में बाहरी प्रदेशों से फर्जी डिग्री के सहारे अनेक कर्मी धड़ल्ले से नौकरी बजा रहे हैं, किन्तु शायद पहली मर्तबा ऐसे मामले का खुलासा हुआ है जिसमें उत्तराखंड स्थित किसी विवि की फर्जी मार्कशीट का उपयोग कर उप्र में मास्टरी की नौकरी पाने की चेष्टा की गई। इस प्रकरण से प्रदेश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले निजी विश्वविद्यालयों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
दूरस्थ क्षेत्र में स्थित है एमएएच गढ़वाल विवि
दरअसल महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विवि जनपद गढ़वाल के सर्वाधिक पलायन से प्रभावित दूरस्थ पोखड़ा विकास खण्ड में स्थापित किया गया है। पूर्व में इस विश्वविद्यालय को हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता था। ज़ाहिर सी बात है कि कोई भी निजी विश्विद्यालय खोलने के पीछे एडुकेशन कॉरपोरेट का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना ही होता है, बावजूद इसके विवि के स्वामियों द्वारा इस विवि को ऐसे इलाके में खोला गया जो एक तरफ पलायन से प्रभावित था वहीं इस स्थान तक अप्रोच भी काफी जटिल है। जटिल अप्रोच होने के कारण यह विवि बाहरी छात्रों की प्राथमिकता में कत्तई शामिल नहीं हो सकता था। ऐसा नहीं है कि इस विवि पर निवेश कर रहे कारोबारियों को इस बात का भान न रहा हो, लेकिन इसके बावजूद उनके द्वारा यहां विवि खोला गया। इनके इरादे पहले ही दिन से साफ नजर आ गए थे जब इस विवि का नाम हिमालयन गढ़वाल विवि रखा गया। निवेशक जानते थे कि हिमालयन नाम से स्वामी राम ट्रस्ट का एक प्रतिष्ठित विवि पहले से उत्तराखंड में संचालित हो रहा है, वहीं केंद्रीय गढ़वाल विवि भी देश भर में अलग पहचान रखता है।
विवि का नाम रखने में ही इन कारोबारियों द्वारा बड़ी चतुरता दिखाई गई।
सभी निजी विश्वविद्यालयों की ओर उठने लगी उंगली
फ़िलवक्त तक प्रदेश में करीब 22 निजी विश्वविद्यालय मौजूद हैं। जनपद गढ़वाल में कोटद्वार व पोखड़ा, हरिद्वार व रुड़की में 6, देहरादून में 12, किच्छा में एक व भीमताल में भी एक निजी विवि संचालित हो रहा है। हालांकि इनमे से अधिकांश प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों द्वारा स्थापित किये गए हैं, किन्तु एक निजी विवि में फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद विश्वविद्यालयों व हायर एडुकेशन के मामले उत्तराखंड की छवि राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
पंजीकृत छात्रों व फैकल्टी की सूचियों का भौतिक सत्यापन जरूरी
निजी विश्वविद्यालयों में एनरोलड सभी छात्रों का सत्यपन भी आवश्यक हो गया है। इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे विवि फर्जी प्रवेश करवाकर सिर्फ डिग्री बेचने के धंधे में लिप्त न हों। छात्रों की कक्षाओं में भौतिक उपस्थिति की भी औचक पड़ताल किया जाना होगा। संदिग्ध विश्वविद्यालयों की फैकल्टी का भी भौतिक निरीक्षण आवश्यक है। कहीं ऐसा न हो कि फर्जी फैकल्टी के जरिये यह विवि जहां फर्जीवाड़े को अंजाम दे रहे हों वहीं टैक्स चोरी में भी लिप्त न हों।
डीम्ड व निजी विश्वविद्यालयों में आरटीआई नियमों में सख्ती जरूरी
हालांकि सूचना आयुक्त योगेश भट्ट कहते हैं कि किसी छात्र की मार्कशीट व सर्टिफिकेट की जानकारी देने में विवि प्रशासन को हीलाहवाली नहीं करनी चाहिए, लेकिन अक्सर फर्जीवाड़े में शामिल विवि इन जानकारियों को गोपनीय व तृतीय पक्ष का बताकर आरटीआई के तहत भी जान
कारी देने से इनकार कर देते हैं। ऐसे में लगातार बढ़ रहे फर्जीवाड़े को देखते हुए देश भर के निजी व डीम्ड विवि व संस्थानों में आरटीआई एक्ट को सख्त व अनिवार्य किया जाना जरूरी है।