मातृ शक्ति के जुनून से बने सूबे की ब्यूरोक्रेसी की कमान पहली बार महिला के हाथ

हिम तुंग वाणी।।
भले ही उन्होंने मध्यप्रदेश की माटी में एक कायस्थ परिवार में जन्म लिया हो, किन्तु उनका व्यवहार, सादगी,जीवन शैली व व्यक्तित्व एक पहाड़ी महिला का प्रतिबिंब प्रतीत होता है। एक पहाड़ी आईपीएस की अर्धांगिनी होने के चलते उनकी जीवन शैली में पहाड़ीपन और गहराई से पैंठ बना गया। इंदिरा अम्मा भोजनालय में कार्यकर्ती महिलाओं के साथ चपाती बेलती साधारण सी दिखने वाली एक महिला की तस्वीरें असल लोकसेवक के सर्वोच्च आदर्शों के प्रतिमान को स्थापित करती हैं। बहुत बड़े पद पर आसीन होने के बावजूद एक लोकसेवक का लोक के मध्य कितना सहज व्यवहार होना चाहिए, यह भी इस सीनियर महिला आईएएस अधिकारी ने साबित किया है।
बात हो रही है, उत्तराखंड की पहली महिला चीफ सेक्रेटरी बनी आईएएस राधा रतूड़ी के बारे में। 1988 की यूपीएससी परीक्षा में टॉपर रहीं राधा रतूड़ी मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में कुशल प्रशासनिक करियर के बाद उन्हें उत्तराखंड राज्य की ब्यूरोक्रेसी की कमान मिली है। हालांकि राधा रतूड़ी इससे पूर्व इंडियन पुलिस सर्विस व इंडियन इन्फोर्मेशन सर्विस की परीक्षाओं में सफल हो चुकी थीं। हैदराबाद में आईपीएस ट्रेनिंग के दौरान उनकी मुलाकात उत्तराखंड के अनिल रतूड़ी से हुई और यह मुलाकात अटूट बन्धन में तब्दील हो गयी।
राधा रतूड़ी के रूप में उत्तराखंड की पहली महिला चीफ सेक्रेटरी के रूप में ताजपोशी के भावनात्मक मायने भी हैं। पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए आंदोलन की असल ताकत मातृशक्ति ही थी। पहाड़ की अनेक मां बहनों ने पृथक राज्य की खातिर अपनी इज्जत और अस्मिता का बलिदान भी दिया, वहीं मातृशक्ति ने इस राज्य के लिए पुलिस की गोलियां भी झेलीं। आखिर 24 बरस बाद इस राज्य की प्रशासनिक अमले की कमान एक ऐसी महिला के हाथों में आ गयी है जो इस प्रदेश की बहू भी हैं।
वहीं, एक अन्य पहलू भी अहम है जो राधा रतूड़ी के लोक प्रशासन व जन संचार व संवाद की कुशलता बुनियाद है। दरअसल वर्तमान दौर में सिविल सर्विसेज में सफल होने वाले अभ्यर्थियों में इंजीनियर, डॉक्टर व एमबीए जैसे योग्यताधारी की तादात सबसे ज्यादा होती है, इसके विपरीत राधा रतूड़ी मास कम्युनिकेशन से पोस्ट ग्रेजुएट होने के चलते लोक सरोकारों को सहजता से समझती हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि राधा रतूड़ी प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को न केवल लोक सरोकारों के संरक्षण हेतु प्रेरित करेगी, बल्कि उस दूरस्थ पहाड़ की संजीदगी से सुध लेने को भी

निर्देशित करेंगी , जहां आज भी मातृशक्ति रोजमर्रा की अनेक चुनौतियों से जूझते हुए जीवन बसर कर रही है।