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धामी ने बनाया फूलप्रूफ प्लान, खनन राजस्व हर हाल में होगा वसूल

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हिम् तुंग वाणी स्पेशल

 

■उधमसिंहनगर, नैनीताल, हरिद्वार व देहरादून में अब खनन राजस्व जमा न करने के रास्ते नहीं तलाश पाएंगे कारोबारी
■टेंडर जारी कर बांड में निर्धारित धनराशि हर हाल में सरकारी खजाने में होगी जमा

देहरादून। प्रदेश के चार मैदानी जनपदों में अब खनन पट्टाधारक निर्धारित राजस्व जमा करने में हीलाहवाली नहीं कर पाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इन जिलों में खनन से अपेक्षित राजस्व न मिलने के कारण होने वाली रेवेन्यू कलेक्शन में कमी को गंभीरता से लेते हुए इन जिलों में एकमुश्त टेंडर जारी कर लक्षित राजस्व को गारंटी के साथ एकत्र करने की युक्ति निकाल ली है। अब इन जिलों में लक्षित खनन राजस्व जमा करने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी उस व्यक्ति या फर्म की होगी जिसको उक्त टेंडर अवार्ड हुआ है। हालांकि, पट्टों पर पट्टाधारकों के लीज़ राइट प्रभावित नहीं होंगे।
दरअसल, प्रदेश के 13 जिलों में से मात्र 4 मैदानी जिलों पर ही खनन विभाग के जरिये अर्जित होने वाले राजस्व का 50 फीसद से अधिक कलेक्शन का दारोमदार होता है। लेकिन इन जिलों में खनन कार्य करने वाले कारोबारी/पट्टाधारक निर्धारित राजस्व जमा न करने के रास्ते निकाल लेते हैं, नतीजतन सरकार को तय लक्ष्य के अनुरूप रेवेन्यू हासिल नहीं हो पाता है।

■क्या करते हैं कारोबारी
इन जिलों में खनन कार्य में लगे कारोबारी भले ही बड़ी दरों पर पट्टा हासिल कर लेते हैं किंतु जब राजस्व जमा करने की बारी आती है तो इसमें कोताही बरतने लगते हैं। खनन विभाग द्वारा नोटिस जारी किए जाने के बाद पट्टाधारक मंडल आयुक्त के यहां रिलैक्सेशन हेतु फरियाद करते हैं। इसमें भी सफलता न मिलने पर पट्टाधारक माननीय न्यायालय की शरण लेकर राजस्व जमा करने से बचने का प्रयास करते है। ऐसे में अंततः खनन महकमा व सरकार को निर्धारित राजस्व से हाथ धोने को मजबूर होना पड़ता है।

खनन कारोबारियों को रेवेन्यू जमा करने में मिलने वाले इन लूपहोल्स को बंद करने की मंशा से धामी सरकार ने इन चार बड़े जिलों में खनन के लिए एक नया प्रावधान किया है। जिसके तहत इन जिलों में खनन कार्य से मिलने वाले राजस्व की उगाही के लिए निविदा जारी की गई है। अनुज्ञापी को हर हाल में निविदा में तय धनराशि जमा करनी होगी। पृथक-पृथक पट्टाधारकों से तय रॉयल्टी वसूलने के जिम्मा अब इस अनुज्ञापी फर्म की ही जवाबदारी होगी।

■303 करोड़ में छूटी बोली■
इस हेतु सरकार द्वारा 287 करोड़ का फ्लोर प्राइस निर्धारित किया गया था। जिसमें एक फर्म ने 303 करोड़ रुपये की बोली लगाते हुए दो अन्य प्रतिस्पर्धी कम्पनियों को पछाड़ कर इन चार जिलों में खनन गतिविधियों को अपने हाथ में ले लिया। अब इस फर्म का ही खजाने में 303 करोड़ जमा करने का उत्तरदायित्व होगा।

उम्मीद की जानी चाहिए कि अब सरकार को खनन राजस्व हासिल करने में होने वाली मशक्कत से निजात मिल जाएगी, वहीं सरकार के खजाने में निर्धारित रेवेन्यू भी गारेंटी के साथ आ जायेगा। यह नया प्रयोग कितना सफल होता है यह भविष्य के गर्त में है लेकिन फिलहाल सरकार को लक्षित राजस्व कलेक्शन की गारेंटी तो मिल ही गयी है, दूसरी ओर इस नए प्रावधान से इलीगल माइनिंग कम होगी या उसमें और इज़ाफ़ा होगा , यह देखने वाली बात होगी।

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