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भारत और नेपाल के मध्य बढ़ रही खाई, साझी विरासत को बचाये रखने की चुनौती

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★भारत-नेपाल अटूट संबंधों की साझी विरासत★
★भारत को गंभीरता से लेना होगा नेपाल से संबंधों को★

रतन सिंह असवाल, प्रबंध संपादक

पौड़ी नगर में आभूषण का एकमात्र विश्वसनीय केंद्र

भारत और नेपाल केवल दो पड़ोसी देश नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, धर्म और समाज के अदृश्य धागों से जुडी हुई साझी विरासत है। हाल के कुछ सालों में नेपाल अपने पड़ोसी भारत से छिटकने की कोशिश में लगा है। ऐसा क्यों हो रहा है इस पर भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश को गंभीरता से बिचार करने की जरूरत है। हिमालय की गोद में बसे नेपाल और गंगा के मैदानों में विस्तृत भारत का रिश्ता सरकारों तक ही सीमित न रह कर दिलों की गहराइयों तक है। रोटी-बेटी का संबंध हो, खुली सीमा से निर्बाध आवागमन हो या आध्यात्मिक ताने-बाने की मजबूती, इन दोनों देशों की आत्मा एक दूसरे में प्रतिबिंबित होती है।
किन्तु वर्तमान में यह संबंध कूटनीतिक उतार चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है इस से दोनों देशों की जनता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सीमा विवाद, राजनैतिक असहमति, आर्थिक एवं व्यापारिक अवरोध और बाहरी प्रभावों ने रिश्तों में खटास घोलने और छिन्नभिन्न करने का कार्य किया है। ये ही समय है जब दोनों देशों की सरकारें राजनीति से ऊपर उठकर जनता के हितों को प्राथमिकता दें और संबंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए ठोस कदम उठाएँ।
नेपाल के नागरिकों के लिए अधिकांश देशों की यात्रा के लिए पासपोर्ट और वीज़ा आवश्यक होता है, लेकिन भारत के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है। नेपाल और भारत के बीच खुली सीमा के कारण नेपाली और भारतीय नागरिक एक दूसरे के देशों में बिना वीज़ा पासपोर्ट के न सिर्फ़ आ जा सकते हैं अपितु रह भी सकते है, शिक्षा ग्रहण कर सकते है , काम और व्यापार कर सकते हैं। यह विशेष सुविधा 1950 की भारत-नेपाल मैत्री संधि के आधार पर है।
बात अगर चीन और अमेरिका की करें तो यह सुविधा इन देशों में नेपाली नागरिकों के लिए उपलब्ध नही है । इन दोनों देशों में नेपाली नागरिक बिना वीज़ा प्रवेश नही कर सकते । बिना वर्क परमिट के काम या व्यापार नहीं कर सकते हैं । हालाँकि विगत कुछ वर्षों में चीन ने नेपाल के नागरिकों को कुछ व्यापारिक और पर्यटक वीज़ा में रियायतें दी हैं, फिर भी यह भारत जैसा संबंध नहीं है
नेपाल के अन्य पड़ोसियों के साथ भी व्यापार और कूटनीति के स्तर पर संबंध हैं, लेकिन वे भारत के साथ साझा संबंधों की गहराई तक नहीं पहुँचते। नेपाल बांग्लादेश से समुद्री मार्ग की सुविधा लेता है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप में बहुत समानतायें होने के कारण रोटी-बेटी जैसा संबंध नहीं हैं बात अगर नेपाल और पाकिस्तान की करें तो इनके बीच कोई सीधा भू-सीमा संपर्क नहीं।संबंध मुख्यतः कूटनीतिक स्तर तक सीमित हैं। चीन और नेपाल के बीच हाल के वर्षों में आर्थिक सहयोग बढ़ा है, लेकिन, नेपाल में आम जनता संस्कृति और परंपरा के स्तर पर चीन से जुड़ाव महसूस नहीं करती। धार्मिक दृष्टि से भी नेपाल और चीन के संबंध भारत की तुलना में कम गहरे हैं।
रोटी बेटी के रिश्तों ,सांस्कृतिक एवं धार्मिक समानताओं के आलोक में नेपाल के लिए भारत से घनिष्ठ संबंधों का कोई और विकल्प हो ही नही सकता है । इतिहास, भूगोल ,समाज और आपसी समानता इन दोनों देशों को एक दूसरे का पूरक बनाती है ।
भारत नेपाल संबंध एवं साझेपन की जड़ों में आपसी निर्भरता और खुली सीमा का बड़ा योगदान माना जाता है । भारत और नेपाल के बीच 1850 किमी लंबी खुली सीमा है, जहाँ से नागरिकों, व्यापारियों और श्रमिकों का निर्बाध आवागमन होता है। नेपाल के लाखों नागरिक भारत में रोजगार, शिक्षा और व्यापार से जुड़े हैं, जबकि भारत के व्यापारी नेपाल में उद्योग और निवेश करते हैं। रोटी-बेटी के अटूट रिश्तों ने नेपाल और भारत को आज भी जोड़कर रखा हुआ है । सीमावर्ती क्षेत्रों में पारिवारिक विवाह संबंध आम हैं, जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच भावनात्मक जुड़ाव गहरा हुआ है। नेपाल में बसे भारतीय मूल के लोग और भारत में बसे नेपाली नागरिक इस रिश्ते की नींव हैं।
हिंदू और बौद्ध धर्म की गहरी जड़ें दोनों देशों में समान रूप से फैली हुई हैं।
हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक उतार-चढ़ाव देखने को मिला है । बात सीमा विवाद करें तो कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्र को लेकर मतभेद उभर कर सामने आए हैं ।राजनीतिक असहमति इसका कारण हो सकती है ? राजनीतिक और कूटनीतिज्ञ लोग इसके लिए नेपाल में बदलती सरकारों और भारतीय नीतिनियंताओ में आपसी तालमेल की कमी बताते हैं।
विगत दो दशकों से चीन का नेपाल में बढ़ता प्रभाव देखा जा सकता है। यहाँ तक कि नेपाली करेंसी जो कि पहले भारत मुद्रित करता था अब चीन से छप कर नेपाल जा रही है। चीन का नेपाल में निवेश और परियोजनाओं की बढ़ती संख्या भारत नेपाल संबंधों में अस्थिरता के मुख्य कारणों में गिना जाता है लेकिन यह उतना प्रासंगिक नही जितना गिनाया जाता है । इसी अस्थिरता के कारण दोनों देशों के छोटे और मझोले व्यापारियों को नुक़सान हुआ है वहीं दूसरी तरफ़ दैनिक प्रयोग की वस्तुएँ आम जनता को ऊँचे दामों में ख़रीदने को मजबूर होना पड़ा है ।
संबंधों को सुदृढ़ करने के क्रम में सीमाई विवाद भारत और नेपाल कूटनीतिक संवाद से हल करना होगा। आर्थिक और व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में दोनों देशों को व्यापारिक निर्भरता को अवसर के रूप में देखना चाहिए। भारत को नेपाल के बुनियादी ढाँचे और पर्यटन में निवेश बढ़ाना चाहिए। सबसे अहम जनता के बीच संपर्क को बढ़ावा देना है । इस कड़ी में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए एवं संस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों से आपसी समझ बढ़ाई जानी चाहिए। सीमावर्ती क्षेत्रों में व्यापार और रोजगार के अवसरों को सरल बनाकर आपसी कड़वाहट को मीठा बनाया जा सकता है।
भारत और नेपाल का रिश्ता सिर्फ कूटनीतिक या राजनैतिक नहीं, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। नेपाल के लिए भारत से घनिष्ठ संबंधों का कोई विकल्प नहीं हो सकता, क्योंकि इतिहास, भूगोल और समाज ने दोनों देशों को एक-दूसरे का पूरक बना दिया है। आवश्यकता है गंगा गण्डकी के पवित्र जल जैसे राजनीतिक और कूटनीतिक संबधों की ।

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