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पहल: आखिर सरकार को गढ़वाल के शौर्य के प्रतीक 52 गढ़ों की आयी याद

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पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होंगे 52 गढ़।

हिमतुंग वाणी।।

देर से ही सही, उत्तराखण्ड सरकार को गढ़वाल के 52 गढ़ों की याद तो आयी है। सरकार की मंसा अब इन खण्डर हुए गढ़ों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की है। इसके लिए सरकार इन गढ़ों का पर्यटन के नजरिये से विकसित करने और वहाँ पर्यटक सुविधाएं जुटाये जाने पर विचार कर रही है।
अपनी उक्त मंसा को मूर्त रूप देने के लिए सरकार ने गढ़वाल क्षेत्र के पर्यटन अधिकारियों से उनके क्षेत्र में स्थित गढ़ों और उनके इतिहास आदि का ब्यौरा तलब किया है। सरकार का विचार है कि गढ़ों की स्थिति को देखते हुए पहले ऐसे गढ़ों को विकसित किया जायेगा जो चर्चित होने के साथ ही पर्यटन की दृष्टि से सुगम और महत्वपूर्ण हैं।
पर्यटन मऩ्त्री सतपाल महाराज कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि गढ़वाल की पहचान यहाँ के 52 गढ़ों से है और इनका पर्यटन की दृष्टि से विकास किया जाना चाहिए। अब सरकार ने भी इस दिशा में सोचना शुरू कर दिया है। पर्यटन अधिकारियों से इन गढ़ों का ब्यौरा तलब किया जाना इस दिशा में उठाया गया एक कदम माना जा रहा है।
गढ़वाल में 52 गढ़़ प्रसिद्ध हैं। हालांकि इतिहासकारों का मानना है कि गढ़वाल में 52 ही नहीं इससे भी कई अधिक गढ़ हैं। लेकिन यह निर्विवाद है कि इन गढ़ों के नाम से ही ‘गढ़वाल’ का नामकरण हुआ है। सरकार चाहती है कि इन प्रसिद्ध गढ़ों में से पहले उन गढ़ों को संरक्षित व विकसित किया जाये जहाँ आज भी इन गढ़ों के अधिकाधिक अवशेष खण्डहर के रूप में मौजूद हैं और जहाँ पर्यटकों को सुगमता से इनके दर्शन कराये जा सकते हैं। सरकार की मंसा यह भी है कि इन पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित किया जाये और इनके नजदीक वे तमाम बुनियादी सुविधाएं विकसित की जायें जो पर्यटकों के लिए आवश्यक हैं। इससे न के केवल हमारी धरोहरों और विरासतों को बचाया जा सकेगा बल्कि इन्हें विकसित भी किया जा सकेगा।
यह बात भी सर्वविदित है कि गढ़वाल के राजा अजयपाल (1500-1548) ने ही गढ़वाल के इन तमाम गढ़ों को अपने अधीन कर एक समग्र गढ़राज्य की स्थापना की थी। इससे पहले ये सभी गढ़ स्वतन्त्र थे और यहाँ के गढ़पति या शासकों का ही अपने गढ़ों पर प्रशासनिक नियन्त्रण होता था। इन गढ़ों के एकीकरण में राजा अजयपाल को उप्पूगढ़ को छोड़कर अन्य गढ़ों को अपने अधीन करने में अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा था। बताया जाता है कि उप्पूगढ़ के शासक गढ़पति कफ्फू चौहान ने अजयपाल की सेना को नाकों चने चबा दिये थे। लेकिन अन्ततः कफ्फू चौहान की युद्ध में मृत्यू के बाद अजयपाल इस गढ़ को भी अपने अधीन करने में सफल हुए थे। कफ्फू चौहान के वीरता के किस्से आज भी गढ़वाल में याद किये जाते हैं।
गढ़वाल के प्रसिद्ध 52 गढ़ों का जिक्र गढ़गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी ने अपने गीत ‘वीर भड़ों को देश, बावन गढ़ों को देश’ में भी किया है। इन बावन गढ़ों में चांदपुर, देवलगढ़, चौंदकोट, लोदगढ़, चौंडा, नयालगढ़, भरदार, अजमीर, कांडा, गुजडू, नागपुर, लंगूरगढ़, बधाणगढ़, लोदगढ़, दशोली, लोहबागढ़, रवाण, कोल्ली, फल्याण, वागर, भरपूर, क्वीली, सिलगढ़, कुजणी, मोल्या, रैका, मुंगरा, नालागढ़, उप्पू, बिराल्टा, रामी, सांकरी, श्रीगुरू, राणी, तोप, रतनगढ़, कांडारा, धौनागढ़, एरासूर्, इंडिया, बडियार, वनगढ़, गढ़कोट, गड़तांग, संगेल, बदलपुर, सावली, जौंट, जौंलपुर, लोदनगढ़, डोडराकांरा, भुवना शामिल हैं। इनमें से चांदपुर गढ़ पहले ही पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और पर्यटकों का पसंदीदा पर्यटक स्थल भी है।

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