मॉनसून सत्र को लेकर बबाल, विपक्ष ने उठाये कई सवाल
देहरादून।
राज्य में मानसून सत्र की अवधि और डेट की घोषणा पर एक बार फिर से विवाद हो गया है। सत्र की अवधि बिजनेस के अनुसार तय करने का दावा सरकार कर रही है जबकि प्रतिपक्ष सरकार पर जनता के मुद्दों से बचने का आरोप लगा रही है। उत्तराखंड विधानसभा के तीन दि
न के सत्र अवधि को प्रतिपक्ष महज खानापूर्ति मान रही। प्रतिपक्ष का कहना है कि सत्र कम से कम 15 दिन चलना चाहिए। सरकार सत्र की अवधि को घटाकर सवालों से बचना चाहती है। प्रतिपक्ष का कहना है कि बजट पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए न कि महज़ खानापूर्ति।
प्रदेश में मानसून सत्र की तिथि घोषित होने के साथ ही सत्र की अवधि को लेकर घमासान मच गया है। इस बार तीन दिवसीय मानसून सत्र प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित हो रहा है। उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी ने कहा कि तीन दिनों में राज्य के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होना और विपक्ष द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होना संभव नहीं है।
भुवन कापड़ी का कहना है कि सरकार जनता के प्रति जवाब देने से बचने का काम कर रहीं है। मानसून सत्र को तीन दिवस तक चलना है जब विधानसभा नियमावली में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ कि सरकार को एक वर्ष में 60 दिनों तक सत्र चलाना चाहिए। जिससे महत्वपूर्ण विषयों में चर्चा हो सके और जनहित के मुद्दों पर चर्चा हो। उनका कहना है कि सरकारें पांच वर्ष में भी 60 दिन सत्र आहूत नहीं कर पा रही है। जिससे सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। सरकार बजट सत्र को भी तीन दिनों में ही समाप्त कर देती है। जबकि बजट सत्र अन्य राज्यों की तर्ज़ पर कम से कम तीन सप्ताह चलाना चाहिए क्योंकि बजट विभागवार पेश किया जाता है।
संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि हम जो भी सत्र करते हैं वो हम बिजनेस के हिसाब से करते हैं। सरकार के पास जो बिजनेस है उसी के हिसाब से सत्र की अवधि तय होती है। प्रेमचंद अग्रवाल ने कहा कि जहां तक बात विपक्ष की है तो विपक्ष के जो मुद्दे हैं वो उन मुद्दों को उठाए। हम विपक्ष के सभी मुद्दों का जवाब देने के लिए तैयार हैं। लेकिन विपक्ष से एक विनती है कि वो हल्ला और बेकार की बातों पर समय व्यर्थ करने से बचे।