बिनसर अभयारण्य की लोमहर्षक घटना ने खोली वन विभाग की कलई
■घटना में जिंदा जले 4 वन कर्मी■
●दावाग्नि से निपटने को अभी तक विभाग नहीं बना पाया कोई पुख्ता टेक्निकल टेक्नीक●
हिमतुंग वाणी
इस वर्ष शायद ही उत्तराखंड का कोई ऐसा जंगल शेष रहा हो जो वनाग्नि की चपेट में न आया हो। दशकों से उत्तराखंड के जंगलों में हर वर्ष ग्रीष्मकाल के 4 महीनों में आग की घटनाएं होती रही हैं, लेकिन वह विभाग अभी तक दावानल को सुरक्षित तरीके से नियंत्रित करने की कोई टेक्निक इज़ाद नहीं कर पाया है, इसी का नतीजा है कि गत दिवस अल्मोड़ा जिले के बिनसर अभयारण्य में बोलेरो वाहन में सवार 4 वन कर्मी जिंदा झुलस गए। अब समय आ गया है कि वन विभाग आग बुझाने के देशी व परंपरागत तरीकों को अलविदा कह फायर कंट्रोल की नई तकनीकियों के बाबत त्वरित व गंभीर रूप से तैयारी करे।
■क्या थी घटना■
अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य में जब आग की सूचना मिली तो वन बीट अधिकारी त्रिलोक सिंह मेहता के नेतृत्व में विभाग के कर्मियों का एक दल मौके की ओर व रवाना हुआ, इस बीच उनका वाहन सड़क के दोनों ओर फैली भयानक आग की लपटों में घिर गया। घटना में वन बीट अधिकारी मेहता, श्रमिक दीवान राम , करण आर्या व पीआरडी जवान पूरन की जिंदा जलने से मौके पर मौत हो गयी। जबकि फायर वॉचर कृष्ण कुमार, पीआरडी जवान कुंदन सिंह , वाहन चालक भगवत सिंह व श्रमिक कैलाश भट्ट बुरी तरह झुलस गए।
●अल्प मजदूरी वाले दिहाड़ी कर्मियों के भरोसे है वन विभाग●
इस घटना में मारे गए 4 लोगों में केवल वन बीट अधिकारी ही विभाग के स्थायी कर्मी थे अन्य सभी दिहाड़ी पर विभाग के साथ कार्य करने को अनुबंधित थे। यहां तक कि अनेक डिवीज़न में इन दिहाड़ी मजदूरों के मानदेय हेतु महीनों से बजट तक नहीं आ पाया है। विडंबना देखिए अल्प व देर से मिलने वाली मजदूरी वाले यही दिहाड़ी कर्मी पूरे प्रदेश में दावानल की जानलेवा लपटों से जूझ रहे हैं। अल्मोड़ा की घटना से साफ हो गया है कि आखिर वन विभाग जंगलों की सुरक्षा के लिए किस तरह दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी को आग के जोखिम में झोंक रहा है।
■लगभग निहत्थे होते है इन यह दिहाड़ी कर्मी■
दावानल की लपटों के बीच यह मजदूर बिना किसी फायर कंट्रोल डिवाइस के कूद पड़ते हैं। हाथ में पिरूल हटाने की एक खुरपी व हरी टहनियों से बने झाड़ू के सहारे ही यह कर्मी विकराल लपटों से लोहा लेते हैं। यहां तक कि इन्हें फायर प्रूफ यूनिफार्म, जूते, हेलमेट आदि भी मुहैया नहीं कराए जाते। कम से विभाग ऐसे कर्मियों के लिए फायर प्रूफ ड्रेस, हेलमेट और ऐसा बैक पैक तो मुहैय्या करा ही सकता है जिसमे वाटर बोतल व एक मिनी ऑक्सिजन सिलिंडर आपात काल मे उनके काम आ सके।
●फारेस्ट फायर कंट्रोल हेतु आर एंड डी हो विभाग की प्राथमिकता●
यह तय है कि हर वर्ष आग लगना तय है ऐसे में पहाड़ की टोपोलॉजी, मौसम और हवाओं के मिजाज, वनस्पतियों की ज्वलनशीलता आदि को मध्य नजर रखते हुए विभाग के अफसरों की एक ऐसी विंग बनाई जाय जो फायर कंट्रोल हेतु एक सतत रिसर्च एंड डेवलोपमेन्ट करती रहे। हर साल इनका इम्लीमेंटेशन किया जाए और समीक्षा कर सतत रूप से इस तकनीकी की और प्र
भावी बनाया जाए जिससे वन संपदा की सुरक्षा के साथ फायर कर्मियों के जोखिम को भी कम किया जा सके।