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गैरसैंण: यहां खुले हाइकोर्ट तो पिघले सरकारी उपेक्षा की बर्फ

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अजय रावत अजेय, सम्पादक
नैनीताल से हाइकोर्ट को शिफ्ट करने को लेकर माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सूबे के तमाम स्थानों से हाइकोर्ट की मांग को लेकर सरगर्मियां बढ़ गयी हैं। ऋषिकेश के आइडीपीएल में न्यायालय की एक बेंच खोलने का विकल्प भी सामने आ रहा है। किंतु पर्वतीय राज्य की राजधानी के बाद उच्च न्यायालय के भी देहरादून अथवा मैदान में शिफ्ट होना एक तरह से पहाड़ी राज्य की अवधारणा के साथ एक और कुठाराघात साबित होगा। त्रिवेंद्र सरकार द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बावजूद गैरसैंण अभी भी सरकार व सत्ता प्रतिष्ठानों के लिए गैर ही है। हाल फिलहाल गैरसैंण के स्थायी या ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने की कोई संभावना नजर नही आती। जब गैरसैंण में बजट अथवा ग्रीष्मकालीन सत्र चलाने में भी सरकार को दिक्कतें नजर आ रही हैं तो बेहतर होगा लगभग डेढ़ हज़ार करोड़ की लागत से बने विधानसभा भवन में ही उच्च न्यायालय को संचालित कर दिया जाए। गढ़वाल और कुमाऊं के मध्य में स्थित गैरसैंण के लिए यह फैसला किसी संजीवनी से कम नहीं होगा वहीं उत्तराखंड में खण्डित हो चुकी पर्वतीय राज्य की अवधारणा को भी लेशमात्र ही सही , मरहम भी मिलेगा।
दरअसल नैनीताल में सैलानियों के बढ़ते दबाव व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते अब वहां परमानेंट रूप से हाई कोर्ट का संचालन मुश्किल होने लगा है। इसे देखते हुए गत वर्ष हल्द्वानी के गौला पर इलाके में इस हेतु भूमि चयन भी किया गया था, किन्तु अब बताया जा रहा है कि उक्त भूमि का अधिकांश भाग वन भूमि है नतीजतन स्वयं माननीय उच्च न्यायालय द्वारा हल्द्वानी के विकल्प को खारिज़ कर दिया गया है। ऐसे में अब पूरे प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से हाई कोर्ट को खोलने को लेकर मांगे उठने लगी हैं।
ऋषिकेश में निष्प्रयोज्य पड़ी इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड की भूमि को लेकर स्वयं कोर्ट ने भी सम्भावना व्यक्त की है। ऋषिकेश सुविधाओं व अप्रोच के मानक में सबसे उत्तम विकल्प अवश्य हो सकता है, किन्तु यदि ऐसा होता है तो प्रदेश की कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका दून घाटी क्षेत्र में ही सिमट कर रह जायेगी, जो पहाड़ी राज्य की अवधारणा के बरख़िलाफ़ होगा। वहीं अन्य पहाड़ी नगरों में भूमि एवम इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते हाइकोर्ट की स्थापना में जहां अनावश्यक विलम्ब होगा, वहीं एक बड़े बजट की दरकार भी होगी। जो प्रदेश की मौजूदा माली हालात को देखते हुए सम्भव नहीं है।
ऐसे में गैरसैंण एक ऐसा विकल्प है जो भावनात्मक व आर्थिक मितव्ययता के पैमाने पर सबसे सटीक बैठता है। यह स्पष्ट है कि गैरसैंण में सैकड़ों करोड़ खर्च कर भराड़ीसैण नामक स्थान पर भव्य विधानसभा भवन का निर्माण किया जा चुका है। साथ ही इस स्थान में अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी अरबों रुपए सरकारी खजाने से खर्च हो चुके हैं। ऐसे में फिलहाल मौ

नूतन विशेषांक: व्यंग

जूद विस् भवन में ही कोर्ट का संचालन किया जा सकता है। यदि आवश्यकता पड़ी भविष्य में वहां भूमि की तलाश कर नया हाई कोर्ट भी बनाया जा सकता है। गैरसैंण की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह स्थान गढ़वाल-कुमाऊं का साझा केंद्र होने के साथ गौचर हवाई पट्टी व निर्माणाधीन रेल हेड से भी काफी निकट है। गैरसैंण में उच्च न्यायालय की स्थापना से एक बड़ा भावनात्मक सन्देश भी जाएगा, वहीं पृथक पहाड़ी राज्य की लड़ाई में जीवन अर्पित करने वाले शहीदों को एक वास्तविक श्रद्धांजलि भी दी जा सकेगी।

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