देहरादून शहर की प्यास बुझाने को 2 हज़ार वृक्षों की ली जाएगी बलि, विरोध शुरू
देहरादून॥
अनियंत्रित गति से हो रहे देहरादून शहर के विस्तार के चलते बढ़ रही आबादी को पेयजल मुहैय्या कराना एक चुनौती बन गया है। भविष्य में इस समस्या के और गहराने के अंदेशे को मध्यनजर रखते हुए सरकार ऐतिहासिक खलंगा क्षेत्र में एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने का मन बना रही है। किंतु इस प्लांट की स्थापना के बदले करीब दो हज़ार पेड़ों की बलि होना तय है। बाकायदा इसके लिए चिन्हित 2 हज़ार पेड़ों कर मार्किंग भी कर दी गयी है। इस फैसले के विरोध में अब लोग लामबंद होने लगे हैं। रविवार को भी लगातार दूसरे दिन लोगों ने यहां पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांध अपना आक्रोश व्यक्त किया।
दरअसल देहरादून के उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी बनने के बाद से यहां आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ। न केवल पहाड़ से बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश व एनसीआर के वाशिंदों की भी देहरादून पहली पसंद के रूप में बन गया है। अनियंत्रित गति से देहरादून की ओर बढ़ती आबादी की आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में आवासीय कालोनियों के साथ मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट व सोसाइटीज़ का भी निर्माण हो रहा है, नतीज़तन पेयजल किल्लत लगातर विकराल रूप धारण करने लगी है।
अब सरकार ने भविष्य की जरूरतों को दृष्टिगत रखते हुए एक विशाल वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया है। बताया जा रहा है कि पूर्व में इस संयंत्र की स्थापना के लिए कुल्हाल-मानसिंह क्षेत्र में भूमि चिन्हित की गई थी, किन्तु अब इसे खलंगा में स्थापित करने की योजना है। सबसे चिंतनीय बात यह है कि खलंगा में इस सयंत्र की स्थापना की खातिर 2 हज़ार साल-सागौन के वृक्षों का पातन करना पड़ेगा।
खलंगा गोरखा वीरों की शौर्य गाथाओं का प्रतीक होने साथ ही एक विशाल हरित क्षेत्र भी है। दून घाटी के इको-सिस्टम को बैलेंस करने में इस क्षेत्र के जंगलों की विशेष भूमिका है। हालांकि अभी 2 हज़ार पेड़ों की बलि की बात कही जा रही है, लेकिन शायद सयंत्र की स्थापना तक यह आंकड़ा और बढ़ जाये।
इस प्रस्तावित प्लांट का विरोध कर रहे लोगों व संस्थाओं की दलील है कि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना बंजर जगह की जा सकती है। जो पेड़ जल स्रोत के आधार हैं उन्हें ही धराशाही कर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करना कहाँ की समझदारी है। इन संस्थाओं व संगठनों ने अंदेशा व्यक्त किया है कि इतनी बड़ी तादात में पेड़ों के कटने से दून घाटी की आबोहवा प्रतिकूल असर पड़ना तय है।
विरोध में उतरे नेचर बडीज़, सिटीजन फ़ॉर ग्रीन दून, बलभद्र
विकास समिति, एसएफआई, इकोग्रुप, यूबीटी केयर्स, टॉय फाउंडेशन, प्राउड पहाड़ी, सेव साइल, श्रद्धांजलि, एमएडी, पहाड़ी पेड़लर्स आदि संस्थाओं ने प्रस्तवित स्थल पर पंहुच कर चिन्हित पेड़ों पर रक्षा सूत्र भी बांधे।