#उत्तराखण्ड

दुर्भाग्य :सियासी फुटबॉल बना अंकिता हत्याकांड का मुद्दा

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अजय रावत अजेय

लगता था कि इस मर्तबा आम चुनाव में वीभत्स अंकिता हत्याकांड पूरे उत्तराखंड में एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा, लेकिन चुनाव आते आते बदले सियासी समीकरणों के चलते यह प्रकरण राजनैतिक फुटबॉल बन कर रह गया। पूरा प्रदेश तो छोड़िए गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में भी इस कांड की आंच तकरीबन ठंडी पड़ चुकी है। इस हत्याकांड में व्यक्तिगत रूप से लड़ाई लड़ रहे पत्रकार आशुतोष नेगी को यूकेडी द्वारा गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाये जाने व अंकिता के परिजनों द्वारा खुले रूप से नेगी के प्रचार अभियान में हिस्सा लेने के बाद प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी इस मसले पर पशोपेश में आ गयी है। नतीजतन यह मुद्दा अब चुनाव प्रचार अभियान की प्राथमिकताओं की फेहरिस्त में ही हाशिये पर चला गया है।

■ गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता था मुद्दा■

इसमें कोई दो राय नहीं कि अंकिता भंडारी हत्याकांड का मुद्दा कम से कम गढ़वाल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में सत्तासीन भाजपा के लिए बड़ा सरदर्द बन सकता था। कांग्रेस द्वारा गणेश गोदियाल को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद भाजपा की दिक्कतों में इज़ाफ़ा तय था, क्योंकि गोदियाल इस जघन्य हत्याकांड को लेकर काफी मुखर रहे हैं। हालांकि अभी भी गणेश गोदियाल इस प्रकरण को लेकर अपनी हर जनसभा में अपनी बात रख रहे हैं किंतु यूकेडी प्रत्याशी आशुतोष द्वारा इसी मुद्दे के साथ मैदान में उतरने के बाद बदले समीकरणों से इस मुद्दे को लेकर मिलने वाला चुनावी क्रेडिट कांग्रेस और यूकेडी के मध्य बंटने के चांसेज बन गए हैं।

●मनीष खण्डूरी के भाजपा में एंट्री से भी बदली तस्वीर●

बेशक मनीष खंडूरी ने अंकिता के परिवार की व्यक्तिगत तौर पर भी काफी मदद की। उस दौरान मनीष के कांग्रेस नेता होने के कारण स्वाभाविक रूप से मनीष की अंकिता के प्रति दरियादिली कांग्रेस के खाते में अवश्य जुड़ती। किन्तु ऐन चुनाव से पहले मनीष पाला बदलते हुए भगवा सेना में जमा हो गए। मनीष द्वारा निजी तौर पर शिद्दत से अंकिता के परिवार की तत्कालीन मदद सियासी खाता बही के पैमाने के मुताबिक अब जीरो हो गयी है। भाजपा अब मनीष द्वारा की गई मदद को लेकर जुबान खोलने की हिम्मत नहीं कर सकती, वहीं यदि कांग्रेस मनीष द्वारा की गई व्यक्तिगत मदद का ज़िक्र करेगी तो इसमें बैक फायर की संभावनाएं भी हो सकती हैं।

■आशुतोष के यूकेडी प्रत्याशी बनना साबित हुआ टर्निंग पॉइंट■

इसमें कोई संदेह नहीं कि आशुतोष नेगी इस हत्याकांड के दूसरे रोज से ही लगातार अंकिता के परिवार के साथ खड़े रहे। यहाँ तक कि इस वारदात को लेकर चल रही कोर्ट की ट्रायल में भी आशुतोष हमेशा अंकिता के परिजनों के साथ खड़े नजर आए। ऐसे में अंकिता के परिजनों का आशुतोष के साथ खड़ा होना लाज़िमी है। आशुतोष भले ही यूकेडी के अधिकृत प्रत्याशी अवश्य हैं किंतु उनका असली चुनावी मुद्दा अंकिता भंडारी हत्याकांड ही है। उन्होंने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत ही अंकिता भंडारी के घर से की। आशुतोष व अंकिता के परिजनों के पहले निशाने पर भाजपा ही है, लेकिन पिछले दिनों आशुतोष नेगी द्वारा कांग्रेस व उसके बड़े नेता हरीश रावत पर अंकिता की माता को कांग्रेस प्रत्याशी बनाये जाने के विकल्प पर पैसे की मांग तक के अपरोक्ष आरोप लगाए गए।

बा-हर-हाल कटु सत्य यह है कि अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे जघन्य अपराध का मुद्दा सियासत के मैदान में फुटबॉल बन कर रह गया है वोटिंग का दिन आते आते इस मसले की गर्मी कम होती जा रही है। ज़ाहिर है अब इस जघन्य कांड के असल दोषी सिर्फ और सिर्फ अदालतों के जरिये ही सजा पा सकेंगे, सियासत व सियासतदान चुनाव के बाद इसे याद भी रख पाएंगे, इसमें भी संदेह है।

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