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सीएम ने डाला आग में पानी, पर क्या फिर कोई तो नहीं कुरेदेगा राख..?

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■मंत्री सुबोध व एमएलए दुर्गेश्वर के बीच धामी को करनी पड़ी दखलंदाजी

■दुर्गेश्वर लाल का बयान तस्दीक करता कि उन्होंने सिर्फ सीएम का लिहाज़ किया

■आखिर किसका थप्पड़ खाने की बात कर रहे दुर्गेश्वर..?

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अजय रावत अजेय
टोंस व गोविंद पशु अभयारण्य में तैनात डीएफओ दंपति के तबादले को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना जब पुरोला सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र के विधायक दुर्गेश्वर लाल देहरादून पंहुचे तो दबंग छवि वाले वन मंत्री से भिड़ बैठे। आक्रामक छवि वाले सुबोध उनियाल भी कहाँ चुप बैठने वाले थे, उन्होंने भी अपनी चिर परिचित शैली में दुर्गेश्वर लाल को नियम कानून की नसीहत दे डाली।
दरअसल बात आगे बढ़ी और इस हद तक पंहुच गयी कि स्वयं मुख्यमंत्री धामी को दखलंदाजी करने को मजबूर होना पड़ा। सीएम के इन्टरफेयर के बाद मामला सतही तौर पर सुलझता हुआ दिखाई दिया। इसके बाद दुर्गेश्वर कहते हैं कि यह परिवार का मामला है घर के अंदर सुलझ गया है। लेकिन दुर्गेश्वर यह भी जोड़ते हैं कि अपने क्षेत्र की जनता की ख़ातिर वह थप्पड़ खाने को भी तैयार हैं। आखिर विधायक दुर्गेश्वर किसके थप्पड़ खाने की बात कर रहे हैं। क्या उनके दिल में दबंग मंत्री को लेकर टीस अभी तक कायम है।
सीएम धामी ने भी जब इस मामले को ठंडा करने के लिए वन मंत्री सुबोध उनियाल और पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल को सुलह समझौते को लेकर बुलाया तो इस मुलाकात के बाद सुलह का जो फॉर्मूला निकला वह तकरीबन वही था जो मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा सुझाया गया था। मुख्यमंत्री धामी ने भी दोनों डीएफओ के तबादले को लेकर पहले जांच करने की बात कही, यही बात वन मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा भी एमएलए दुर्गेश्वर लाल को कही गयी थी। किन्तु जब यह बात मुख्यमंत्री द्वारा कही गयी तो दुर्गेश्वर लाल को हामी भरने को स्वाभाविक रूप से तैयार होना पड़ा।
मुख्यमंत्री धामी द्वारा समय रहते सरकार के अंदर सुलगती इस आग को ठंडा करने के लिए जो गंभीरता दिखाई गई उसके फलस्वरूप फिलहाल यह मामला ठंडा पड़ता नजर आ रहा है किंतु जिस तरह से फौरी तौर पर इस विवाद का पटाक्षेप हुआ है उससे साफ लगता है कि मामले में वरिष्ठ नेता व वन मंत्री सुबोध उनियाल के मुताबिक ही अंतिम फैसला हुआ है। हैवी वेट मिनिस्टर सुबोध उनियाल के सामने नए नवेले विधायक दुर्गेश्वर लाल की तमाम दलीलें फ़िलहाल नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई। इससे पूर्व भीमताल के विधायक राम सिंह कैड़ा और मंत्री सुबोध उनियाल के बीच हुए एक तथाकथित विवाद को भी जैसे तैसे दफ़्न कर दिया गया था।
फ़िलहाल तो सीएम धामी ने जैसे तैसे इन भड़कती चिंगारियों में पानी डालकर शांत कर दिया हो लेकिन इस राख के नीचे दबे शोलों को कब और कौन हवा दे दे कहा नहीं जा सकता। सियासत के खेल में जो दिखता है वह होता नहीं है और जो होता है वह नजर नहीं आता।

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