नेगी दा: लोकसरोकारों की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरता एक लोकगायक

अजय रावत अजेय
“नौछमी नरैण” गीत से भले ही एक समय प्रख्यात लोककवि व लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने सत्ता प्रतिष्ठान की चूलें हिला के रख दीं थीं किन्तु वर्तमान में जिस तरह से पौड़ी के लाल नरु दा ने पहाड़ की अस्मिता और भविष्य की ख़ातिर कफ़न बांधकर आह्वान किया है उससे उन्होंने साबित कर दिया है कि वह असल लोककवि व गायक हैं जिनकी कविताएं व गीत सत्ता के गुणगान के लिए नहीं बल्कि लोक की संस्कृति व
अस्मिता के लिए होते हैं।
निःसंदेह नरेंद्र सिंह नेगी की कविताएं व गीत सम्पूर्ण उत्तराखंड के पहाड़ के जीवन दर्शन का प्रतिबिंब हैं। उनके गीतों की पहली प्राथमिकता पहाड़ की दुश्वारियां रही हैं, पहाड़ का जीवन व संस्कृति का चित्रण उनकी दूसरी प्राथमिकता रही जबकि गीतों के जरिये मनोरंजन उनकी सूची में अंतिम पायदान पर रहा है। यही कारण है कि उनका एक एक शब्द पहाड़ी समाज के लिए एक आह्वान बन जाता है।
इस समय राज्य का मूल पहाड़ी समाज मूल निवास व भू कानून को लेकर उद्देलित है। लम्बे समय से इस हेतु अनेक संगठन अपनी बात सरकार तक पंहुचाने के लिए एक महारैली करने का मन बना रहे थे। जब 24 दिसंबर को इस हेतु महारैली की तारीख मुक़र्रर हुई तो लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने एक लघु गीत के जरिये तमाम मूल निवासियों से इस रैली में भाग लेने का आह्वान कर दिया। नेगी की फैन फॉलोइंग से अच्छी तरह वाकिफ़ सरकारी तंत्र एकाएक एक्शन में आ गया। एक रस्मअदायगी भर का आदेश भी जारी हो गया साथ ही एसीएस राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में भू कानून को लेकर एक पांच सदस्यीय प्रवर समिति का गठन भी आनन फानन में कर दिया गया। ज़ाहिर है यदि नरेंद्र सिंह नेगी व अन्य लोक कवि व गीतकार, गायक इसी तरह से इस अलख को जगाये रखने में अपने स्वर जोड़ते रहे तो सरकार को किसी न किसी निर्णायक बिंदु तक पंहुचना ही पड़ेगा।
इस बीच रविवार को देहरादून में शांतिपूर्ण तरीके से महारैली का भी आयोजन हो गया किन्तु पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के चलते नरेंद्र सिंह नेगी इस रैली में हिस्सेदारी न कर सके, किन्तु उन्होंने बद्रीनाथ के निकट गरुड़गंगा नामक स्थान से ही एक नए गीत के साथ पुनः प्रभावशाली आह्वान कर संकेत दे दिया है कि पहाड़ी लोक सरोकार की इन मांगों के लिए वह कफ़न बांध चुके हैं। अपने आह्वान गीत में नेगी कहते हैं, “बगत दगड़ हिटा, न बुलयां फिर अबेर ह्वे गे..”(वक़्त के साथ चलो, बाद में फिर यह न कहना कि देर हो गयी)। उनका गीत कहता है कि सब एक जुट हो जाएं, जाग जाएं, अभी भी वक़्त है, अपनी लड़ाई जारी रखें, अपने हकों की खातिर संघर्ष की राह चुनने से भी पीछे न हटें।
उत्तराखंड आंदोलन की जननी रही पौड़ी नगरी की मिट्टी में जन्मे, पले-बढ़े नरेंद्र सिंह नेगी उम्र के सातवें दशक में हैं, शाररिक रूप से पूर्ण स्वस्थ भी नहीं है, किन्तु इन दिनों मूल निवास व भू कानून को लेकर जब भी वह आह्वान कर रहे हैं तो उनकी चेहरे की भाव भंगिमा, बॉडी लैंग्वेज, जोश व स्फूर्ति से लगता है कि वह पहाड़ के लोक की अस्मिता व भविष्य की खातिर इस लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभाने का प्रण कर चुके हैं।
Harshwanti Bisht
24th Dec 2023My respect and salute for Shri Narendra Singh Negiji. He inspired me also to participate in this rally.