प्राथमिकता: समान नागरिक संहिता अथवा मूल-निवास, भू कानून
अजय रावत अजेय, संपादक
■मुख्यमंत्री धामी ने यूसीसी के साथ मूल निवास व भू कानून का भी किया ज़िक्र
■सीएम का वादा: डोमेसाइल और लैंड एक्ट पर भी बनेंगी हाई पॉवर कमेटी
■ पर्वतीय समाज को यूनिफॉर्म सिविल कोड से ज्यादा मूल निवास से है इत्तेफ़ाक़
उत्तराखंड राज्य समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में गंभीरता से आगे बढ़ रहा है। उत्तराखंड द्वारा तैयार किया जा रहा यूनिफॉर्म सिविल कोड ड्राफ़्ट शायद भविष्य में अन्य राज्यों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी एक मॉडल साबित हो सकता है। आगामी जनवरी में यह ड्राफ्ट सरकार को मिल सकता है। किंतु इस बीच प्रदेश में मूल निवास व भू कानून को लेकर आये उबाल के बाद यह सवाल उठने लगा है कि पहाड़ी हितों के संरक्षण के नाम पर गठित उत्तराखंड में यूसीसी प्राथमिकता में होनी चाहिए अथवा मूल निवास व सख़्त भू कानून..
पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई वाली उत्तराखंड सरकार प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर काफ़ी गंभीर है। सरकार द्वारा सेवानिवृत्त जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में इस हेतु एक ड्राफ़्ट तैयार करने के लिए कमिटी का गठन भी किया है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात कमेटी द्वारा उत्तराखंड यूसीसी ड्राफ्ट सरकार को सौंपा जाएगा, तत्पश्चात विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाकर इस ड्राफ्ट को विधेयक के तौर पर सदन के पटल पर रखा जायेगा। निःसंदेह यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले में धामी सरकार पूरे देश में एडवांटेज लेती नजर आ रही है। इस बिल के पास होते ही सीएम धामी , मोदी-शाह द्वारा दिये गए एक महत्त्वपूर्ण टास्क को पूरा करते नज़र आएंगे।
वहीं, जब यूसीसी के बाबत धामी अब तक की प्रगति के बारे में जानकारी दे रहे थे तो उन्होंने जोड़ा कि प्रदेश में मूल निवास व भू कानून को लेकर भी हाई लेबल कमेटियां गठित की जा रही हैं। ज़ाहिर है, मौजूदा समय में सरकार मूल निवास और भू कानून को लेकर पहाड़ी जनमानस में पनप रहे आक्रोश को गंभीरता से ले रही है। धामी सरकार भी भली भांति रूप से इस बात से विज्ञ है कि सूबे की आबादी का 80 फ़ीसद से बड़े तबके के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड से ज्यादा अहम मूल निवास व सख़्त भू कानून का मसला है। हाल में प्रख्यात लोकगायक व गीतकार नरेंद्र सिंह नेगी के आह्वान के बाद जो स्थितियां बनी हैं, उसके बाद सरकार पहाड़ी जनमानस को मूल निवास और भू कानून के बाबत कोई ठोस मेसेज देना चाहती है। 20 दिसंबर को आनन फानन में जारी एक आदेश भी इसी मेसेज की एक कड़ी की तरह था, हालांकि आदेश का मूल निवासियों के हितों की रक्षा में कोई खास औचित्य नहीं है।
ठेठ सुदूर सीमांत पहाड़ से आने वाले मुख्यमंत्री धामी भी जानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भले ही समान नागरिक संहिता सर्वोच्च प्राथमिकता हो सकती है किंतु आम पहाड़ी के लिए वर्तमान समय में मूल निवास व सख़्त भू कानून सबसे बड़ी प्रायोरिटी है। सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता ही नहीं बल्कि समूह ग तक की सेवाओं में मूल निवसियों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण, संसाधनों पर हक में प्राथमिकता एवम भूमि की बेतहाशा खरीद फरोख्त पर रोक इस दौर में पहाड़ी समाज की सबसे बड़ी मांग है। उम्मीद की जा सकती है कि प्रदेश के मूल निवसियों की प्राथमिकता को तवज़्ज़ो देते हुए सरकार यूसीसी की भांति मूल निवास व भू कानून मसले पर गंभीरता से प्रयास करे।