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सिल्कयारा: “बिंडी बिरालों म मूसा नि मुरदा”….!

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हिम तुंग वाणी

गढ़वाली में कहावत है कि “बिंडी बिरालों म मूसा नि मुरदा” अर्थात यदि बिल्लियां ज्यादा हो जाएं तो चूहे मारना दुष्कर हो जाता है। जिस तरह से लगातार सिलक्यारा आपरेशन में कदम कदम पर अड़चने आ रही हैं, उससे लगता है कि इस आपरेशन में जिस तरह से तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ विशेषज्ञों को झोंक दिया गया है , वह कारगर साबित नहीं हो पा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि विभिन्न विशेषज्ञों व एजेंसियों की अलग अलग एक्सपर्टनेस के चलते हो रहे नित नए एक्सपेरिमेंट ही इस मिशन की कामयाबी में देरी का कारण तो नहीं बन रहे।

अंधेरी सुरंग में फंसी 41 जिंदगियों को बचाने के लिए जब राज्य व केंद्र सरकार की तरफ से गंभीरता पूर्वक प्रयास शुरू किए गए तो इन प्रयासों के तहत सरकार ने तमाम विकल्पों पर विचार करते हुए एक साथ अनेक एजेंसियों व एक्सपर्ट को इस मिशन में झोंक दिया।  सभी एजेंसीज़ व एक्सपर्ट ने अपने तजुर्बों की बुनियाद पर मिशन में अपनी भूमिका शुरू की, शुरू में लगा कि अब शायद सभी समेकित प्रयास रंग लाने वाले हैं और फंसे हुए श्रमिक जल्द ही खुले आसमान में होंगे लेकिन अब जब यह कहा जाने लगा है कि अंदर फंसे मजदूर स्वयं अंदर की ओर से मलबा हटाने का कार्य शुरू करेंगे, जिस बारे में मुख्यमंत्री ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उल्लेख किया। वहीं दूसरी ओर वर्टिकल ड्रिलिंग के प्लान पर भी कार्य शुरू करने की बात भी शनिवार को आधिकारिक तौर पर कही जाने लगी है। 

14 दिन से अंधेरी सुरंग में बिना रेगुलर डाइट के बिना सोए रात गुजारने वाले मजदूरों से स्वयं मैनुअली मलबा हटाने की बात सहसा गले नहीं उतरती। ऐसे में एक बात स्पष्ट होती है कि कोई एक अकेली एजेंसी दावे के साथ यह कह पाने में असमर्थ है कि वह फंसे हुए मजदूरों को सकुशल बाहर निकाल लेगी। अलग अलग एजेंसीज़ , अलग अलग प्लान व उन्हें एक्सएक्यूट करने की टाइमिंग को लेकर अलग अलग बातों से जो मेसेज पब्लिक डोमेन में जा रहा है वह देश की बेचैनी को और बढ़ा रहा है, वहीं फंसे हुए मजदूरों के परिजनों हर गुजरता पल व इसके साथ बदलते प्लान किसी टॉर्चर से  कम नहीं हैं।


शनिवार को मौके पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते धामी

आज मुख्यमंत्री धामी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि टूटी हुई ऑगर मशीन को काटकर बाहर निकालने के लिए हैदराबाद से प्लाज़्मा कटर मंगाया जा रहा , जो यदि शाम कल सुबह तक मौके पर पंहुच गया तो फिर जल्द ही बचे हुए मलबे को मैनुअली निकालने का कार्य शुरू होगा। किन्तु अब एक एक पल भारी पड़ने लगा है , सरकार के सर्वोच्च प्रयास भी अपेक्षित समय में रंग नहीं ला पा रहे हैं। 41 जिंदगियों और उनके भविष्य को हर हाल में बचाना सरकार और विशेषरूप से उत्तराखंड सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। 

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