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आखिर सीएम धामी ने ली अपने जियोलॉजिस्ट की सुध

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मुख्यमंत्री ने मांगी उत्तराखंड खनिकर्म के भूवैज्ञानिकों से सलाह

■राज्य में निर्माणाधीन व प्रस्तावित भूगर्भीय व सतही निर्माण पर मांगी जीओलॉजिकल एडवाइस

■ राज्य के भूवैज्ञानिकों को किया जाता रहा नजरअंदाज 


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हिम तुंग वाणी

सिलक्यारा की घटना के बाद हिमालयी क्षेत्र में भूगर्भीय निर्माण को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। पूर्व में अनेक पर्यावरणविद हिमालय को जवान व विकासशील पर्वत बताते हुए बड़े निर्माणों पर उंगली उठा चुके हैं। किंतु सिलक्यारा की घटना के बाद सरकार व इसकी विभिन्न एजेंसिया हिमालय के मिजाज को पढ़ने के तर्क को स्वीकार करती नज़र आ रही हैं। इधर, उत्तराखंड में हो रहे ताबड़तोड़ निर्माण कार्यों में हमेशा ही सरकार व निर्माण कम्पनियों द्वारा उत्तराखंड के भूवैज्ञानिकों को नजरअंदाज किया जाता रहा है, किन्तु अब सीएम धामी ने अपने जियोलॉजिस्ट से इस बाबत सलाह मांगी है।

दरअसल, उत्तराखंड की धरती का मिजाज देश के अन्य हिस्सों से काफी अलग है। हिमालय में लगातार हलचल फिलवक्त तक जारी है। ज़ाहिर सी बात है उत्तराखंड में  सरकारी विभागों व अन्य क्षेत्रों में कार्य कर रहे भूवैज्ञानिक इस पहाड़ के मिजाज से अपेक्षाकृत अधिक वाकिफ होंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि उत्तराखंड के पहाड़ को लेकर उनका तजुर्बा बाहरी जियोलॉजिस्ट  के मुकाबले बीस ही होगा। किन्तु अधिकांश कार्य भारत सरकार की एजेंसियां अथवा उनके बेंडर्स द्वारा ही संपादित किये जा रहे हैं, लिहाजा व उत्तराखंड के जियोलॉजिस्ट से सलाह मशवरे को जरूरी नहीं समझते, नतीजतन निर्माण कार्यों के दौरान अनेक तरह की भूतल व भूगर्भीय विद्रूपताएं उत्तराखंड में देखने को मिल रही हैं।

इसी क्रम में उत्तराखंड के  अधिकांश भूवैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ में चल रहे तमाम निर्माण कार्यों में भूवैज्ञानिकों व तकनीशियनों की भूमिका को तकरीबन नजरअंदाज किया जाता रहा है । बड़े बड़े निर्माण केवल ब्यूरोक्रेट व इंजीनियर्स के भरोसे ही संपादित हो रहे हैं, जो हिमालय के भविष्य के लिए उचित नहीं है। उत्तराखंड में कार्यरत भूवैज्ञानिकों का कहना है कि हम दिल्ली या अन्य हिस्सों की तरह पहाड़ के भूगर्भ में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। किसी भी निर्माण से पूर्व स्थान विशेष की भूगर्भीय संरचना का व्यापक अध्धयन अनिवार्य है। उनका यह भी मानना है कि किसी भी निर्माण में इंजीनियर्स व टेक्नोक्रेट्स की कुशलता तभी रंग ला सकती है जब उस प्रोजेक्ट की बुनियाद पर जियोलॉजिस्ट द्वारा ईमानदारी से गहन अध्धयन किया जा चुका हो।

टनलिंग के बाबत सभी एक राय से कहते हैं कि ऐसे जोखिम भरे निर्माण में हर हाल में एस्केप और एडिट टनल का समान्तर निर्माण अवश्य किया जाना चाहिए।

बहरहाल, सीएम धामी ने वर्ड कांग्रेस ऑन डिज़ास्टर मैनजमेंट के बहाने ही सही अपने जियोलॉजिस्ट को याद किया है, जो एक अच्छी पहल है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि राज्य के अंदर निर्माणाधीन केंद्र, निजी व राज्य सरकार के तमाम प्रोजेक्ट में उत्तराखंड की धरती के मिजाज को करीब से महसूस करने वाले राज्य के भूवैज्ञानिकों की राय को निरंतर व अनिवार्य करे।

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