#उत्तराखण्ड

केदार के दर पर भाजपा को खोने को सब कुछ तो कांग्रेस को पाने के लिए बहुत कुछ

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अजय रावत अजेय
अब जैसा कि उत्तराखंड के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण उपचुनाव की तारीख का ऐलान हो चुका है तो जाहिर सी बात है कि सत्ताधारी भाजपा व विपक्षी कांग्रेस पूरी ताकत से बाबा केदार का आशीर्वाद लेने तपस्या करने तैयार होंगे। हालांकि विधानसभा के नम्बर गेम पर इस उपचुनाव के परिणाम का कोई खास असर नहीं पड़ेगा फिर भी यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि हिंदुत्व की झंडाबरदार पार्टी भाजपा हिंदुत्व के दो ऐपिसेंटर अयोध्या व बद्रीनाथ में मुंह की खा चुकी है। अब केदारनाथ वह सीट है जहां न केवल भाजपा बल्कि स्वयम नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस सीट पर यदि अयोध्या व बद्रीनाथ की पुनरावृत्ति होती है तो भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिल्लत झेलनी पड़ेगी, वहीं सीएम पुष्कर धामी के लिए तो यह अपने सियासी जीवन का सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट भी साबित हो सकता है।
राजनैतिक चश्मे से देखा जाए तो केदारनाथ उपचुनाव भाजपा को करो या मरो की दहलीज तक ले आया है। केदारनाथ पहले से भाजपा के कब्जे वाली सीट रही है, वहीं केदार बाबा के दर से ही प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी बीते एक दशक से देश दुनिया को अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता का संदेश देते आये हैं। यदि यहां भी भाजपा की गति अयोध्या अथवा बद्रीनाथ की तरह होती है तो यह भाजपा के लिए बज्रपात की तरह होगा। इस सीट पर फिलहाल भाजपा के लिए सबसे बड़ा संकट प्रत्याशी चयन का है। महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष आशा नौटियाल, दिवंगत विधायक शैला रानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत, लोकप्रिय नेता कुलदीप रावत व कर्नल अजय कोठियाल कमल के फूल के साथ बाबा केदार के दर में जाने को आतुर हैं। किंतु यदि यह सभी एक साथ पार्टी के लिए कार्य करते हुए चुनावी मैदान में न उतरे तो भाजपा को अप्रत्याशित परिणाम का झटका भी झेलना पड़ सकता है। वहीं सियासी गलियारों में इन चारों से इतर किसी बिग गन को मैदान में उतारने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की लगातार सक्रियता व केदारनाथ क्षेत्र के प्रस्तावित आसन्न भ्रमण कार्यक्रम से भी ऐसे कयासों को बल मिल रहा है। यदि तीरथ को मैदान में उतारा जाता है तो जाहिर है एक पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व सांसद को विधायक चुनाव लड़ाने से सूबे में सत्तासीन सरकार के समीकरणों पर भी असर पड़ना तय है। लब्बोलुआब यह कि उपचुनाव में बाबा केदार का आशीर्वाद लेने की इस कयावद में भाजपा को अनेक संकटों से जूझना पड़ेगा।
वहीं कांग्रेस के लिए भी केदारनाथ का उपचुनाव काफी अहम है। राज्य स्तर पर नजर डालें तो बद्रीनाथ व मंगलोर के उपचुनाव में कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए एक सीट बसपा से छीनी तो वहीं हिंदुओ के महातीर्थ बद्रीनाथ के आशीर्वाद को पुनः अपने सिर पर लेने में सफलता पाई। ऐसे में पार्टी चाहेगी की केदारनाथ की सीट को भाजपा से छीन कर वह उत्तराखंड सहित राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा सिम्बोलिक मेसेज देना चाहेगी कि हिंदुत्व के पवित्र केंद्र में ही मतदाताओं ने भाजपा को नकार कांग्रेस को अपना आशीर्वाद दिया है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को पिछले दिनों हरियाणा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी, पार्टी चाहेगी कि वह नरेन्द्र मोदी के सेंटिमेंटल मेसेज के लॉन्चिंग पैड केदारनाथ पर कब्ज़ा कर राष्ट्रीय स्तर पर इसे भाजपा के खिलाफ हथियार के तौर पर प्रयोग करेगी। हालांकि कांग्रेस की राज्य इकाई अनेक अंतर्द्वंदों से जूझ रही है। जहां गणेश गोदियाल मनोज रावत को इस जंग की कमान देना चाहते हैं वहीं डॉ हरक सिंह रावत भी इस जंग में कांग्रेसी सेना की अगुवाई करने की हसरत पाले हुए हैं। बीते दिवस ही कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा द्वारा इस उपचुनाव की ऑब्जर्वर कमेटी की रिसफलिंग व विस्तार करते हुए गणेश गोदियाल को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाते हुए बद्रीनाथ विधायक बुटोला को भी इसमें शामिल किया गया। यदि प्रत्यशी चयन में इस कमेटी की चली तो अब बहुत संभव है कि पूर्व विधायक मनोज रावत ही केदारनाथ के रण में कांग्रेस दल की अगुवाई करेंगे। लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी मुसीबत भाजपा नहीं बल्कि प्रदेश में बड़े नेताओं के बीच चल रही तनातनी है। यदि कांग्रेस ने इन द्वंदों से पार न पाया तो भाजपा एक बार फिर बाबा केदार का आशीर्वाद लेने में कांग्रेस से आगे निकल जायेगी।
बाहरहाल केदारबाबा के दर पर इस उपचुनाव में कांग्रेस के लिए पाने के लिए बहुत कुछ है तो वहीं भाजपा के लिए सब कुछ…

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