श्रीनगर क्षेत्र की गढ़वाली बोली को ही अधिकृत गढ़वाली भाषा बनाये जाने पर सहमति
■गढ़वाली भाषा पर दो दिवसीय कार्याशाला■
श्रीनगर
‘गढ़वाळि भाषामा उच्चारण भेद अर व्याकरण’ पर दो दिवसीय कार्याशाला के पहले दिन भाषा विशेषज्ञों ने श्रीनगर व आसपास के क्षेत्र में बोली जाने वाली गढ़वाली बोली को ही गढ़
वाली की अधिकृत भाषा बनाये जाने पर सहमति व्यक्त की।
श्रीनगर में दो दिवसीय कार्याशाला हे0न0ब0ग0के0विश्वविद्यालय के चौरास परिसर स्थित शैक्षणिक क्रियाकलाप केन्द्र में आयोजित की गयी। इस कार्यशाला का आयोजन उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच, दिल्ली ने एच0एन0बी0 ग0के0विश्वविद्यालय के भाषा प्रयोगशाला के साथ मिलकर किया। कार्याशाला का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने किया।
मुख्य अतिथि लोकगायक श्री नेगी ने कहा कि गढ़वाली भाषा को मानकीकृत भाषा बनाये जाने हेतु इस तरह की कार्याशालएं महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि सामूहिक प्रयासों से ही गढ़वाली भाषा का विकास हो सकता है। उन्होंने विभिन्न माध्यमों से लोग गढ़वाली भाषा के विकास मे ंलगे हैं लेकिन हमें अपनी भाषा को एक अधिकृत स्वरूप में लाना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में यह भी जरूरी है कि विभिन्न विषयों से सम्बन्धित गढ़वाली भाषा की शब्दावलियों को सामने लाया जाय व नये शब्दों को भी इसमें शामिल किया जाय। भाषा संकाय की डीन प्रो0 मंजुला शर्मा राणा ने गढ़वाली भाषा के लिए इस तरह के प्रयासों को एक उपलब्धि बताया और कहा कि उत्तराखण्ड आन्दोलन की तरह गढ़वाली भाषा के विकास के लिए भी एक जनआन्दोलन की जरूरत है। उन्होंने गढ़वाली भाषा के मानकीकरण और व्याकरण पर जोर देते हुए कहा कि मानकीकरण इस तरह होना चाहिए कि सभी जनपदों के भाषाई शब्दों का मूल्यांकन करते हुए इनका समावेश किया जाय ताकि किसी क्षेत्र को इसमें शिकायत का मौका न मिले। विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो0 महावीर सिंह नेगी ने कहा कि इस तरह की कार्याशालाओं ने भाषा के विकास को गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय लोकभाषा के लिए किये जाने वाले इस तरह के प्रयासों की सराहना करता है और इस तरह के प्रयासों को विश्वविद्यालय की तरह से सदैव सहयोग मिलता रहेगा।
कार्याशाला के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ0 विष्णु दत्त कुकरेती ने की। इस सत्र में भाषाविद् व साहित्यकार डॉ0 नन्दकिशोर हटवाल ने भाषा के मानकीकरण से लेकर गढ़वाली भाषा के ध्वनि व वर्ण पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस बात पर भाषाविद्ों में सहमति है कि श्रीनगर यानि कि श्रीनगरिया बोली को ही गढ़वाली की अधिकृत मानक भाषा बनाया जाय। उन्होंने कहा कि अब हमें भाषायी प्रारूप और इसके व्याकरण पर विस्तार से कार्य करना होगा। दूसरे सत्र की अध्यक्षता दिल्ली से आये साहित्यकार श्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल ने की। इस सत्र में प्रसिद्ध कवियत्री व साहित्यकार श्रीमती बीना बेंजवाल ने व्याकरण में संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण पर विस्तार से अपनी बात रखी। कार्याशाला के भोजन सत्र के बाद भी वक्ताओं ने गढ़वाली भाषा के विभिन्न स्वरूपों पर गम्भीर चर्चा की।
प्रथम दिवस के सांयकाल को एक कवि सम्मेेलन का आयोजन भी किया गया। कार्याशाला का संचालन धाद के संपादक गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने किया। कार्याशाला में उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी के साथ अन्य पदाधिकारी, विश्वविद्यालय में भाषायी संकाय से जुड़ी आरुषी उनियाल व अन्य के अतिरिक्त गढ़वाली साहित्यकार रमाकान्त बेंजवाल, मदन ढुकलान, वीरेन्द्र पंवार, शान्तिप्रकाश जिज्ञासू, आदि अनेक लोग शामिल हुए। कार्याशाला में गिरीश सुन्दरियाल की पुस्तक ‘गढवाल की लोकगाथाएं’ का लोकापर्ण भी किया गया।