अब विकेन्द्रीकृत पर्यटन व तीर्थाटन और पर्यटन को विभाजित किया जाना अनिवार्य
अजय रावत अजेय
■धामों तक कूच करती बेकाबू भीड़ से हुए हालात असहज■
●जन सैलाब को व्यवस्थित करने को मौजूदा मशीनरी नाकाफ़ी●
◆विशुद्ध पर्यटकों को नए डेस्टिनेशन की जानकारी देने को चले वर्ष भर अभियान◆
चारों धामों में उमड़ते श्रद्धालुओं की भीड़ के चलते पैदा हो रही अव्यवस्थाओं पर नियंत्रण हेतु अब सरकार ने फिलहाल 31 मई तक ऑफलाइन पंजीकरण व्यवस्था को स्थगित कर दिया है। स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आह्वान किया है कि पर्यटकों को नए दर्शनीय स्थलों के बाबत भी जानकारी दी जाए, जिससे सैलानियों की भीड़ विकेन्द्रीकृत हो सके। प्रदेश में वर्षों से चारधाम तीर्थाटन व पर्यटन को पृथक रूप से परिभाषित करने की मांगे उठती रही हैं। इन दिनों जहां चार धामों में तिल रखने को जगह नहीं वहीं प्रदेश के अनेक ऐसे पर्यटन स्थल हैं जहां कारोबारी एक एक पर्यटक के लिए तरस रहे हैं। भीड़ के चलते हुई आपाधापी से जहां बाहरी पर्यटक एक असहज अनुभव लेकर लौट रहे हैं, वहीं आर्थिक गतिविधियों को अपेक्षित लाभ हासिल नहीं हो पा रहा है।
एक साथ उमड़ी भीड़ से हो रहे अनेक नुकसान
जबरदस्त सैलाब के चलते हो रहे ट्रैफिक जाम की वजह से पर्यटक अथवा श्रद्धालु नियत समय पर अपने बुक किये गए होटल्स तक नहीं पंहुच पा रहे हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में बुकिंग कैंसिल हो रही हैं, वहीं अग्रिम बुकिंग्स पर भी असर पड़ रहा है। ट्रांसपोर्टरों को भी जाम के कारण बेहद नुकसान हो रहा है। चारधाम यात्रा में परिवहन की महत्वपूर्ण कम्पनी जीएमओयू का कहना है कि इस आपाधापी के चलते उनके बड़े की आधी बसें खड़ी हैं जिसके चलते कम्पनी को प्रतिदिन 20 लाख तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है। इसी तरह अन्य प्रकार के छोटे व कुटीर व्यवसाय पर भी इस आपाधापी का असर पड़ता दिखाई दे रहा है।
यात्रियों के साथ प्रशासन की भी हो रही फजीहत
हालांकि चार धाम महामार्ग परियोजना के तहत सड़कों का चौड़ीकरण तो हुआ है लेकिन अनेक स्थानों पर कतिपय कारणों से बोटल नेक अभी भी मौजूद हैं। जो ट्रैफिक जाम का सबब बन रहे हैं। श्रद्धालुओं में सब्र की कमी के चलते जाम की स्थिति और जटिल हो रही है। प्रदेश में मौजूद पुलिस व प्रशासनिक मशीनरी के साइज को देखते हुए हर मोड़ पर पुलिस की तैनाती असम्भव है। जिसके चलते बेवजह अव्यवस्था के हालात पैदा हो रहे हैं।
फ़िलहाल लंबी चैसिस बसों को किया जाए बैन
जब से आल वेदर रोड का प्रचार प्रसार हुआ है राज्य से बाहर की ट्रेवल कम्पनियाँ चारधाम यात्रा की बुकिंग लेने लगे हैं। वातावनुकूलित इन बसों की न केवल चैसिस लम्बी है बल्कि एसी प्लांट आदि के चलते इनकी ऊंचाई भी पहाड़ी मानकों से अधिक है। यही बसें तंग मोड़ों पर जाम का बड़ा कारण बन रही हैं। चारों धामों तक जब तक पूरी तरह सारे बोटल नेक को हटा नहीं दिया जाए तब तक केवल उत्तराखंड की संयुक्त रोटेशन वाली बसों को ही यात्रा परिवहन की अनुमति मील। बाहर की बसों को हरिद्वार, ऋषिकेश अथवा विकासनगर में ही पार्क करने का प्रावधान किया जाना चाहिए।
सैर सपाटे वाले सैलानियों को नए स्थलों को एक्स्प्लोर करने की सलाह
स्वयं मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि पर्यटकों को राज्य भर में मौजूद सैकड़ों सुरम्य स्थलों की जानकारी दी जाए। बीते 5 वर्ष में राज्य के अंदरूनी हिस्सों में भी बड़ी तादात में होम स्टे व रिसोर्ट खुले हैं। सरकारी योजनाओं के तहत ऋण लेकर बेरोजगार युवाओं द्वारा बनाये गए होम स्टे को अपेक्षित कारोबार नहीं मिल पा रहा है। यदि सरकार इस बाबत कोई ऐप अथवा पोर्टल बनाकर सभी पंजीकृत होम स्टे व रिसोर्ट को ऐसे एप्पलीकेशन से जोड़ दे तो पर्यटकों में नए डेस्टिनेशन एक्स्प्लोर करने की जिज्ञासा जागृत होगी। जरूरत इस बात की है कि इन नए डेस्टिनेशन की पब्लिसिटी के लिए वर्ष भर अभियान चलाया जाए।
कपाटोद्घाटन से जून तक चारधाम में कुछ शर्तें अनिवार्य हों
कम से कम कपाट खुलने से लेकर जून माह तक चारधाम यात्रा हेतु पंजीकरण में उम्र की कोई एक सीमा तय किया जाना जरूरी है। इन दो माह में ही सबसे अधिक भीड़ धामों की तरफ कूच करती दिखाई देती है। युवा व स्वस्थ श्रद्धालु सिंतबर से लेकर कपाट बंद होने तक आसानी से चारधाम के दर्शन कर सकते हैं। ग्रीष्मकाल में अधिक उम्र के श्रद्धालुओं को ही धामों के दर्शनों की अनुमति मिले तो जहां ऐसी आपाधापी से मुक्ति मिल सकती है वहीं सितम्बर के बाद भी धामो की रौनक बरकरार
रह सकती है। इससे श्रद्धालुओं को भी इत्मीनान से दर्शन मिलेंगे, वहीं शासन प्रशासन व पुलिस को भी अतिरिक्त पसीना नहीं बहाना पड़ेगा।