पुराणों पर शोध के लिए किसी लाइब्रेरी व लैबोरेटरी से कम नहीं मालिनी ट्रैक
ट्रैक ऑफ द इयर पर सफलतापूर्वक ट्रैकिंग संपन्न
हिमतुंग वाणी (अजय रावत अजेय)
कोटद्वार। ट्रैक ऑफ द इयर घोषित कण्वाश्रम-मलनियां ट्रैकिंग रूट पर गए बीस सदस्यसीय ट्रैकिंग दल द्वारा इस रूट पर बिखरी पुराणों में दर्ज धरोहरों व खंडहरों से साक्षात्कार किया। दल न भारतनामे सम्राट भरत की जन्मभूमि व ऋषि कण्व की कर्मक्षेत्र रहे मालिनी. नदी के तटों को नापते हुए मालिनी नदी के उदगम मालनिया तक पुराणों में उल्लिखित तथ्यों को टटोला। दल के सदस्यों का कहना है कि करीब 22 किमी लंबे इस ट्रैक पर एक्सप्लोर करने को असीमित संभावनाएं हैं।
दरअसल, गढ़वाल जिले के जिलाधिकारी डॉ आशीष चौहान द्वारा जिले के तमाम हिस्सों में फैले इतिहास व प्रागैतिहासिक स्थलों को देश दुनिया के समक्ष लाने के अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के तहत इस वर्ष कण्वाश्रम-मालनियां ट्रैक को ट्रैक ऑफ द इयर घोषित किया गया था। राजा भरत की जन्मस्थली व महर्षि कण्व की कर्मस्थली रहे कण्वाश्रम से मालनियां तक ट्रैकिंग हेतु बीस सदस्यीय दल आठ नवबंर को ट्रैकिंग हेतु निकला था। जो सफलतापूर्वक ट्रैक कर नौ नवंबर को वापस लौट आया। दल का नेतृत्व कर्नल आषीश इष्टवाल कर रहे थे, दल में शामिल उत्तराखंड के इतिहास के जानकार पत्रकार मनोज इष्टवाल ने बताया कि दल कण्वाश्रम से चलकर लालपुल, सहस्त्रधारा, आमटोली, खैरगढ़ होते हुए मथाणा पहुंचा। इसके पश्चात चौंडल व मैती काटल होते हुए दल किमसेरा गांव पहुंचा। दूसरे दिन की यात्रा में दल गौतमी, जुड्डा, सौड़, मांडवी, बिजनूर होते हुए मालिनी नदी के उदग्म स्थल मालनिया पहुंचा। यहीं पर चंडा शिखर स्थित है।
दल में शामिल ट्रैकर
दल में कर्नल इष्टवाल के साथ मनोज इष्टवाल, कर्नल टीसी शर्मा, सुधीर कुट्टी, वरिष्ठ पत्रकार गणेश काला, एडवोकेट अमित सजवाण, प्रणिता कंडवाल, दिग्विजय नेगी, मोहित.., अजय अधिकारी, ऋतुराज, शिवानी, सुरेंद्र, प्रशांत, राजन नेगी, विनय सिंह, श्रेय सुदरियाल आदि शामिल थे।
ट्रैक की विशेषतांए
इस ट्रैक को प्रत्येक पड़ाव पुराणों में लिखित इतिहास का गवाह है। वैदिक कण्वाश्रम के साथ अप्सरा मेनका द्वारा विश्वमित्र की तपस्या भंग किए जाने वाला राजदरबार स्थान, इस ट्रैक पर स्थित है। यहां कण्व ऋषि के साथ गौतमी, विश्वमित्र, शकुंतला, ऋषि दुर्बासा, ऋषि मरीचि, ऋषि च्यवन, ऋषि चरक, ऋषि कश्यप, ऋषि भृगु से संबंधित अनेक पड़ाव मौजूद हैं। इसी रूट पर सिंहपाणी जगह पर कुमार भरत द्वारा सिंह के दांत गिनने की किवदंती भी प्रचलित है। इसी प्रकार दर्जनों ऐसे स्थान भी हैं जो पुराणों की कथावों की मौन गवाही दे रहे हैं। वहीं यह ट्रैक इस विषय पर शोध कार्य कर लिए शोधार्थियो के लिए एक ओपन लाइब्रेरी व लैबोरेटरी से कम नहीं है।