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राष्ट्रीय प्रेस संगठनों ने कोटद्वार के पत्रकार के खिलाफ फर्जी मुकदमे पर जताया आक्रोश

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दिल्ली।
तीन राष्ट्रीय मीडिया संगठनों प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और इंडिया वूमेन प्रेस कॉर्प्स ने उत्तराखंड के कोटद्वार में पत्रकार सुधांशु थपलियाल की फर्जी मामले में गलत गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की है। पुलिस द्वारा उनके साथ किया गया उत्पीड़न पूरी तरह से निंदनीय है। आज नई दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षरित एक संयुक्त बयान में तीनों संगठनों ने गहरी चिंता व्यक्त की कि राज्य भर में दर्जनों पत्रकारों को सच बोलने और लिखने के लिए धमकाया जा रहा है। यहां तक ​​कि संविधान में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सीमित किया जा रहा है। राज्य सरकार, प्रशासन और पुलिस बल की कार्रवाई मौलिक अधिकारों और प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। उत्तराखंड पत्रकार संघ ने राज्य भर के पत्रकारों के साथ सुधांशु थपलियाल के साथ गहरी एकजुटता व्यक्त की है। पीड़ित पत्रकार ने कहा कि उन्हें 29 जनवरी को महज चार लाइन की पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सड़क दुर्घटना में एक युवती की मौत को 13 दिन बीत चुके हैं, फिर भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने इस साधारण सवाल को भी मानहानि का मामला मान लिया। इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि हिरासत में लेने से पहले पुलिस ने उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया, उसे किसी वकील या परिचित से संपर्क करने से मना कर दिया और उसे अवैध रूप से रात भर हवालात में बंद रखा। राज्य के पत्रकारों ने पहले ही पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को एक ज्ञापन सौंपकर निष्पक्ष जांच और इस अवैध आधी रात की गिरफ्तारी में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। राज्य के पुलिस महानिदेशक ने पत्रकारों को एक सप्ताह के भीतर उच्च स्तरीय जांच का आश्वासन दिया है।
इस बीच उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। तीन मीडिया संगठनों पीसीआई, डीयूजे और आईडब्ल्यूपीसी के संयुक्त बयान में कहा गया है: हम, निम्नलिखित राष्ट्रीय मीडिया संगठनों के साथ, दृढ़ता से मानते हैं कि पौड़ी गढ़वाल के वर्तमान एसएसपी और कोटद्वार थाने के सभी पुलिसकर्मियों की निगरानी में कोई भी जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती है। इसलिए निर्दोष पत्रकार की इस मनमानी हिरासत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के मोबाइल कॉल रिकॉर्ड प्राप्त किए बिना यह निर्धारित करना असंभव है कि पत्रकार को किसके आदेश पर गिरफ्तार किया गया था। बयान में कड़ी निंदा करते हुए जोर दिया गया कि राज्य सरकार का मीडिया विरोधी रुख, पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल उत्तराखंड में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपायों की मांग करता है जिसमें सुधांशु थपलियाल के खिलाफ दर्ज झूठे मामलों को वापस लेना समय की मांग और अपरिहार्यता है।

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