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धराली आपदा के हताहतों की संख्या व सूची सार्वजनिक करे सरकार: सीपीआई(एम)

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देहरादून।

धराली से लौटने के बाद इन्द्रेश मैखुरी
राज्य सचिव और अतुल सती सचिव गढ़वाल भाकपा (माले) ने धराली में प्रथमिकता के आधार पर किये जाने वाले कार्यो के बारे में बताया। आयोजित प्रेसवार्ता में दोनों नेताओं में राज्य सरकार को कुछ सुझाव भी दिए है।
इंद्रेश मैखुरी और अतुल सती ने कहा कि सड़क आवाजाही इतने दिन बीतने पर भी सुचारू नहीं की जा सकी है। जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार सेना और सीमा की बातें करती नहीं थकती है, उसका चुनावी लाभ भी बटोरती है, उसके राज्य में पिछले बीस दिन से सीमा पर जाने वाले राष्ट्रीय अभी तक बाधित है।
सरकार ने अभी तक हताहतों की संख्या और नुकसान का ब्यौरा तक नहीं दिया है।
दोनों बामपंथी नेताओं ने कहा कि लापता अथवा मलबे में दबे लोगों की खोज प्राथमिकता में नहीं है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है।
मुआवजे और पुनर्वास पर राज्य सरकार की नीति अभी भी स्पष्ट नहीं है. आईएएस अफसरों की कमेटी द्वारा क्या किया गया,इसको लेकर भी कोई स्पष्टता अभी तक नहीं है.
स्थानीय लोगों में अपने भविष्य को लेकर आशंका और असंतोष है.
मुआवजे और पुनर्वास में न केवल धराली के आपदा प्रभावितों का ख्याल रखा जाना चाहिए बल्कि उत्तरकाशी से लेकर संपूर्ण गंगोत्री मार्ग में यात्रा पर निर्भर सभी लोगों को इसके दायरे में रखना चाहिए। इस आपदा में हताहत बिहारी और नेपाली मजदूरों के आश्रितों का भी मुआवजा व पुनर्वास में ख्याल रखा जाना चाहिए.
यह कहना कि धराली में 40-50 होटलों में से केवल पंजीकृत 9 होटलों का ही मुआवजा दिया जाएगा, निंदनीय है. यह आपदा के मारे लोगों में फूट डालने की कोशिश है. जिनका भी नुकसान हुआ है, उन्हें समुचित मुआवजा दिया जाना चाहिए.
वैकल्पिक सड़क मार्ग का सुझाव स्थानीय लोग लंबे अरसे से देते रहे हैं, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया जबकि वह आपदा के समय में उपयोगी होता.
आपदा प्रबंधन में लगे विभागों में आपसी तालमेल की कमी स्पष्ट दिखती है, यह पूर्व में रेणी में भी देखा गया है था,इससे भी राज्य सरकार सबक नहीं ले रही है।
मैखुरी और सती का कहना था कि जोशीमठ की तर्ज पर पुनर्वास जैसे जुमले उछालने के बजाए धराली के लिए अलग से नीति बनाई जाए.
जोशीमठ के प्रभावितों का दो साल बाद भी ना पुनर्वास हुआ और ना ही स्थिरीकरण के कार्य शूरू हुए। उन्होंने आशंका जताई कि ऑल वेदर रोड के नाम पर हजारों पेड़ों को काटने की योजना भविष्य में और विनाशकारी होगी. सुक्खी टॉप बायपास योजना बड़े भूस्खलन को सक्रीय करेगी.
धराली के प्रभावितों के प्रतिनिधियों को पुनर्वास मुआवजा निर्धारण की नीति आदि तय करने में शामिल किया जाए.
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी जिसे नजरंदाज किया गया, इसके लिए भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
इन दोनों नेताओं ने राय दी कि वरिष्ठ भू वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल द्वारा धराली आपदा के समूचे परिदृश्य पर शोध पत्र लिखा गया है, भविष्य की योजना बनाने में उस शोध पत्र एवं अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों की सलाह को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वाडिया इंस्टीट्यूट में बंद किए गए ग्लेशियलॉजी विभाग को पुनः शुरू किया जाए, ग्लेसियल लेक आउट बर्स्ट परिघटना के मद्देनजर यह जरुरी है। हिमालय में और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में विकास योजनाओं के सन्दर्भ में मौसमी बदलाव और, पर्यावरण, भूगोल भूगर्भ और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखा जाए साथ ही वरिष्ठ, निष्पक्ष वैज्ञानिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं को शामिल करते हुए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया जाए, जिसके द्वारा संपूर्ण उत्तराखंड में आपदा संभावित स्थलों का व्यापक सर्वेक्षण कराया जाए. भविष्य के दृष्टिगत वहां आपदा पूर्व सुरक्षा एवं बचाव के कदम उठाए जाएं. किसी भी तरह की योजनाओं के संदर्भ में इस कमेटी की राय को निर्णायक प्राथमिकता मिले।

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