#पौड़ी

सोशल इंजीनियरिंग से अनजान चुनाव आयोग, डांगी रहेगा नेतृत्वविहीन

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अजय रावत अजेय, संपादक

जहां एक ओर पूरे पहाड़ में पंचायत चुनाव का शोर है तो वहीं आर्थिक रूप से सम्पन्न स्वर्णकारों के गांव डांगी में इस समर के दौरान भी सन्नाटा छाया हुआ है। कारण यह कि जिस वर्ग की महिला के लिए इस गांव की ग्राम प्रधान सीट सुरक्षित रखी गयी है उस पैमाने पर इस गांव की कोई बहू-बेटी फिट नहीं बैठ रही है। इतना ही नहीं पूर्व में इस गांव की आंगन बाड़ी कार्यकत्री व सहायिका का पद भी इसी जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया था, नतीज़तन यह दोनों पद भी अभी तक रिक्त चल रहे हैं।
जनपद गढ़वाल की तहसील पौड़ी के अंतर्गत कल्जीखाल विकास खण्ड की मनियारस्यूँ पट्टी में स्थित डांगी गांव औपनिवेशिक काल से ही आर्थिक रूप से समृद्ध स्वर्णकार वर्ग के लोगों का गांव रहा है। यहां के स्वर्णकार चौहान व लिंगवाल उपनाम वाली जातियों से जाने जाते हैं। हालांकि राजस्व अभिलेखों में इस गांव की बहुसंख्यक आबादी का स्टेटस सोनार अथवा स्वर्णकार जाति के रूप में उल्लिखित है किंतु बीते एक दशक से जिला प्रशासन द्वारा यहां निवासरत इस वर्ग के बाशिंदों को अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को बेहद जटिल कर दिया है , फलस्वरूप अब गांव के इस वर्ग के ग्रामीणों को ओबीसी प्रमाण पत्र मिलना टेढ़ी खीर हो गया है।
दरअसल, यह मसला सिर्फ प्रशासनिक चश्मे से नहीं देखा जा सकता। सोशल इंजीनियरिंग के ताने बाने पर नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट हो जाता है कि आखिर गांव में बेटियां न सही तो बहुएं भी इस श्रेणी की अहर्ता पूरी क्यों नहीं कर पा रही हैं। ओबीसी अथवा अन्य किसी जाति की अहर्ता के लिए अब मायके की जाति को आधार बना दिया गया है जिसके चलते गांव में स्वर्णकार बहुओं के ओबीसी प्रमाण पत्र बनना तकरीबन असंभव हो गया है। उसका कारण यह है कि इस वर्ग के ग्रामीणों का सीधे तौर पर पहाड़ के राजपूत वर्ग से रोटी बेटी का नाता है। इस वर्ग के परिवारों की अधिकांश बहुएं आधिकारिक राजपूत वर्ग की हैं। यही असल कारण है कि गांव में ओबीसी प्रमाण पत्र से लैस बहुओं का टोटा बना हुआ है।
सोशल इंजीनियरिंग के इस ताने बाने से अनजान चुनाव आयोग अथवा प्रशासनिक मशीनरी द्वारा मात्र आबादी के आंकड़ों की बुनियाद पर आरक्षण का निर्धारण किया जाता है, जबकि रोटी-बेटी के रिश्ते-नातों की इन जटिलताओं का आबादी के आंकड़ों से कोई सीधा सम्बंध नहीं है।

पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने की चेतावनी
ग्राम प्रधान का निर्वाचन न होने से निराश ग्रामीण अब पंचायत चुनाव में क्षेत्र व जिला पंचायत के लिए होने वाले मतदान के बहिष्कार का मन बनाने लगे हैं। पूर्व प्रधान भगवान सिंह व सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन डांगी व पूर्व शिक्षक धीरेंद्र सिंह का कहना है कि जब हमारे गांव के प्रधान का चुनाव ही सम्भव नहीं हो पा रहा है तो हम क्यों अन्य पदों को लेकर माथापच्ची करें, ऐसे में मतदान का बहिष्कार ही एकमात्र विकल्प शेष रह जाता है।

शासन तक भेजा जाएगा मामला: डीएम
ग्रामीणों के ऐलान के बाद जिलाधिकारी गढ़वाल स्वाति एस भदौरिया का कहना है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए सम्पूर्ण तथ्यों के साथ इसे शासन तक प्रेषित किया जाएगा, तत्पश्चात शासन से मिलने वाले दिशा निर्देशों के अनुरूप कदम उठाया जाएगा।

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