बाल साहित्य सृजन के साथ नौनिहालों को तराशते मनोहर

अनिल बहुगुणा अनिल
प्रदेश की प्राइमरी तालीम ब्यवस्था में एक ऐसा भी गुरु है जो बच्चों पढ़ने की आदत डलवाने में सिद्दत से लगा है। प्रदेश के तालीम महकमें में ऐसे गुरु का मिलना अब बड़ा कठिन है। बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के लिए वे बच्चों के साहित्य पर लंबे समय से काम भी कर रहे है। शिक्षक मनोहर चमोली मनु का कहना है कि पढ़ना एक कौशल है। इसे अर्जित किया जाता है। इन दिनों देखने और सुनने के कौशल बढ़ाने के लिए कई माध्यम हैं। वहीं पढ़ने की आदत लगातार कम होती जा रही है। सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना विद्यार्थियों के साथ-साथ सभी के लिए कभी जरूरी भी था,लेकिन अब बच्चे सहित सभी लोग बच रहे हैं। शिक्षक मनु का कहना है कि यदि समाज में सार्थक पढ़ना कम होता है तो तर्क, तथ्य और सत्य से हम दूर होते जाते हैं। यह किसी भी स्वस्थ समाज के लिए घातक हो सकता है।
कभी पत्रकार रहे शिक्षक मनोहर चमोली मनु हिन्दी साहित्य में जाना-पहचाना नाम हैं। मनु कहते हैं कि कोई सालों किसी तैराक को तैरते हुए देखता रहे, तैरना नहीं सीख सकता। किसी चालक के बगल वाली सीट पर बैठकर देखते रहने से वाहन चलाना नहीं सीखा जा सकता। तैरने के लिए पानी में उतरना होगा। गाड़ी चलाने के लिए स्टेयरिंग को थामना होगा। पढ़ना भी पढ़ते रहने से आता है। पढ़ने के लिए पढ़ने की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
दो दशक से अधिक अध्यापन कार्य कर रहे मनोहर चमोली ने अब तक की सभी सेवाएं जनपद पौड़ी गढ़वाल में ही दी हैं। शिक्षक पेशे से पूर्व वह पत्रकार रहे हैं। शिक्षक बन जाने के बाद सेवा नियमावली के चलते सक्रिय पत्रकारिता को छोड़ चुके मनु ने लिखना नहीं छोड़ा। वह बताते हैं कि सन् दो हजार पाँच में अध्यापक बन जाने के बाद कलम नहीं छूटी। अलबत्ता दिशा बदल गई। विद्यालयी परिसर में लिखने के लिए कई शैक्षणिक पहलू अनायास ही मिल जाते हैं। अब बच्चों के लिए बाल साहित्य में मन रमने लगा है।
मनु बताते हैं,‘‘हर साल हर कक्षा में नए विद्यार्थी स्थान लेते हैं। यदि छठीं से बारहवीं तक की बात करें तो एक विद्यार्थी हम शिक्षकों के साथ सात साल रहता है। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया दोनों ओर चलती है। छठीं में आया विद्यार्थी बारहवीं तक हमारे सम्पर्क में प्रत्यक्ष रूप से रहता है। यदि गंभीरता से देखा जाए तो बालमन हमारे सामने किशोरावस्था से गुजरता हुए युवावस्था की दहलीज पार करता है। शिक्षण कर्म बहुत ही संवेदनशील और ज़िम्मेदारी भरा व्यवसाय है। शिक्षक ही है जो विद्यार्थियों में अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों के प्रति चेतना जगाने का काम करता है।
मनोहर चमोली मनु हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। वह प्रखर आलोचना के लिए भी जाने जाते हैं। शिक्षा विमर्श के साथ-साथ बाल साहित्य में वह समकालीन साहित्यकारों में अपने विशिष्ट लेखन के लिए जाने जाते हैं। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, प्रथम, रूम टू रीड, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, साहित्य विमर्श प्रकाशन, श्वेतवर्णा प्रकाशन, विनसर पब्लिकेशन साहित कई प्रसिद्ध प्रकाशकों से उनकी पुस्तकें आ चुकी हैं। मनु की चालीस से अधिक कहानियाँ मराठी में भी अनुदित हो चुकी हैं। उनकी पिक्चर बुक ‘अब तुम गए काम से’ का दुनिया की चौबीस से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उनके विज्ञान गल्प और कथाएं विज्ञान प्रगति जैसी पत्रिका में भी छपते रहे हैं। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग के राज्य परियोजना के तहत बच्चों में पढ़ने की संस्कृति बढ़ाने के लिए उनकी कई कहानियों के रीडिंग कॉर्ड भी प्रकाशित हुए हैं। पढ़े भारत के अन्तर्गत कई कहानियों का प्रकाशन प्रथम से हुआ है। इससे पूर्व उत्तराखण्ड के एससीईआरटी के तहत तैयार पाठ्य पुस्तक में भी उनकी लिखी कहानी फूलों वाले बाबा विद्यार्थी पढ़ते रहे हैं। देश भर की कई पाठ्य पुस्तकों मधुबन, मधुकिरण, पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक में उनकी कहानी विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में भी मनु की बारह से अधिक कहानियां शामिल हुई हैं।
नई शिक्षा नीति 2020 के बाद राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हो रही हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली और चौथी में भी मनु की कहानी शामिल किए जाने की लिखित सूचना मिल गई है। बताते चलें कि वह पूर्व में गंग ज्योति पत्रिका के सह संपादक, ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के संपादक भी रहे हैं। इससे पूर्व उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन से भी वे जुड़े रहे हैं। वर्तमान में मनु रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। वह कहते हैं कि उत्तराखण्ड राज्य की परिस्थितियां बेहद भिन्न हैं। राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नौनिहालों को पड़ोस में ही शिक्षा की सुविधा मिलनी चाहिए। मनोहर चमोली मनु कहते हैं कि लेखन कला एक कौशल है और यह ज़िम्मेदारी भी है। इसका निर्वाह किसी सम्मान-पुरस्कार की चाह के लिए नहीं है। वह बताते हैं कि राजकीय सेवा में वह स्वयं उन लोगों में से एक हैं जो आवेदन करने वाले पुरस्कार-सम्मान के खिलाफ हैं। किसी चाह के लिए लेखन करना एक धोखा है। वह ऐसा मानते हैं।