अपनी ही सरकार की नाकाबिलियत जग जाहिर की त्रिवेन्द्र ने

★प्रदेश सरकार के बचाव में आये संत★
विमल नेगी

(वरिष्ठ पत्रकार)
देहरादून।
पार्टी और सरकार के अन्दर धड़ेबाजी होना आम बात है। लेकिन जब आप जानबूझकर और सोच समझ कर अपनी ही सरकार को टारगेट कर उसकी नाकाबिलियत जग जाहिर करेंगे तो इसे क्या समझाा जाय? हरिद्वार के भाजपा सांसद त्रिवेन्द सिंह रावत का लोकसभा में दिया वक्तव्य तो यही जाहिर कर रहा है। उन्होंने प्रदेश में खनन माफिया के बेलगाम होने और उस पर प्रदेश सरकार द्वारा प्रभावी अंकुश लगाये जाने में असफल होने के आरोप से अपनी ही सरकार को असहज कर दिया है।प्रदेश की धामी सरकार ने भी त्रिवेन्द्र के इस वक्तव्य को झूठा साबित करने में कोई देर नहीं लगायी। इस वयान से अपनी दागदार होती छवि को बचाने के प्रयास में मुख्यमन्त्री पुष्कर सिंह धामी न स्वयं आगे आये और न विभाग के निदेशक को आगे आने दिया। उन्होंने अपने खनन सचिव बी0 के0 सन्त को आगे कर उनसे त्रिवेन्द्र के संसद में दिये वक्तव्य को ही झूठा साबित करवा दिया।सांसद त्रिवेन्द्र रावत के इस बयान से पार्टी और सरकार दोनों का ही असहज होना स्वाभाविक है। उनका वक्तव्य पार्टी नेताओं और सरकार के लिए मुँह में गर्म दूध रखना जैसा हो गया। जिसके न तो समर्थन में और ना ही इसके विरोध में कुछ कहना उन्हें भारी पड़ रहा है। एक तरफ कुुआँ और दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति बन गयी है। इसलिए प्रदेश में पार्टी नेताओं या सरकार में बैठे पार्टी नुमाइन्दों से कुछ न कहला कर सरकार ने अपने खनन सचिव को आगे कर दिया। सविव ब्रजेश कुमार संत ने त्रिवेन्द्र रावत के संसद में दिये वक्तव्य को झुठला कर यह साबित करने का प्रयास किया कि प्रदेश में सब कुछ ठीक है और खनन प्रक्रिया में न कहीं माफिया हैं और ना ही जैसा त्रिवेन्द्र रावत संसद में कह रहे हैं वैसी स्थिति हैं। उन्होंने त्रिवेन्द्र के संसद में उठाये इस मुद्दे को सिरे से खारिज करते हुए यह साबित करने की कोशिश की कि खनन विभाग ने सरकार को लक्ष्य से अधिक मुनाफा दिया है और इससे साबित हो रहा है कि विभाग व सरकार सही दिशा में कार्य कर रही है।अब सवाल यह उठता है कि भाजपा के ही सांसद जो पूर्व में प्रदेश में मुख्यमन्त्री भी रहे हों वे अपनी ही सरकार के खिलाफ ऐसे वक्तव्य क्यों दे रहे हैं। वक्तव्य भी ऐसा कि जो अचानक उनके मुँह से न निकला हो। कभी ऐसा होता है कि धाराप्रवाह बोलते हुए ऐसे बयान मुँह से निकलने का बहाना हो सकता है लेकिन यहाँ तो लगता है कि सोची समझी रणनीति या यूं कहें राजनीति के तहत यह बयान दिया जा रहा है। वह इसलिए कि संसद में वे इस बयान को बाकायदा पढ़ कर दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में धामी सरकार को असहज तो होना ही है। यह तो सीधे उनकी सरकार की छवि पर गहरा प्रहार है। लेकिन मुख्यमन्त्री के अपनी सरकार की छवि को बचाने के लिए स्वयं आगे न आना मजबूर बन गयी। आखिर यह बयान उन्हीें की पार्टी के एक सांसद ने देश के उस सर्वोच्च सदन में दिया था जहाँ उन्हीें की पार्टी की सरकार है। ऐसे में पार्टी के ही दो नेताओं जो देश व प्रदेश में जिम्मेदार पदों पर बैठे हों, की आपसी टकराहट से व एक दूसरे को झूठा साबित करने से असमंजस की स्थिति तो बनती ही साथ ही देश व प्रदेश की जनता में सरकार व पार्टी की स्थिति के बारे में गलत सन्देश भी जाता। इसलिए सरकार ने त्रिवेन्द्र के बयान की काट के लिए खनन सचिव को आगे कर दिया है। संसद में यही वक्तव्य विपक्षी सांसद का होता तो अब तक प्रदेश में मुख्यमन्त्री के साथ ही अन्य अनेक नेता बयानवीर बने होते। अब आगे देखना यह है कि मुख्यमन्त्री धामी त्रिवेन्द्र के इस आरोप को आया गया कर देते हैं, या फिर वे भी कुछ ऐसा कहते हैं जिससे त्रिवेन्द्र भी असहज हो जाये। वैसे भारतीय जनता पार्टी के अन्दर तो सभी जानते हैं त्रिवेन्द्र ने यह मुद्दा संसद में क्यों उठाया। लेकिन आगे धामी की इस सम्बन्ध में प्रतिक्रिया देखना दिलचस्प होगा।