धामी की रणनीति से खिला कमल, तो हीरे की चमक से और निखरा कमल का रंग
अजय रावत अजेय
केदारनाथ में भले ही कड़े मुकाबले के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन इसके बावजूद ऐसा माना जा रहा था कि सत्ताधारी भाजपा जैसे तैसे इस सीट को बचा लेगी। किंतु जिस प्रकार से भाजपा ने एक बड़े व सम्मानजनक मार्जिन से यह चुनाव फतह किया है उसमें त्रिभुवन चौहान के हिस्से गए करीब 9 हजार से अधिक मतों की बड़ी पूंजी का भी असर साफ है। देखा जाए सत्ता विरोधी वोट को समेटने में त्रिभुवन कांग्रेस से आगे रहे, क्योंकि कांग्रेस कैडर वोट के साथ मैदान में थी जबकि त्रिभुवन ने जीरो से अपनी गिनती शुरू की।
केदारनाथ उपचुनाव न केवल भाजपा बल्कि इसके सुप्रीम लीडर नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा से भी जोड़ा जा रहा था, ज़ाहिर है ऐसे में मुख्यमंत्री धामी के कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी आ चुकी थी। किंतु धामी ने ऐसे जटिल समय में आक्रामक बल्लेबाजी करते हुए न केवल अपनी पसंदीदा दावेदार आशा नौटियाल को टिकट दिलाया बल्कि स्वयम चुनाव की कमान संभालते हुए पर्याप्त समय केदारनाथ चुनाव को दिया। उनके खिलाफ तथाकथित तौर पर जिस तरह से क्षेत्रवाद व केदारनाथ के प्रति उदासीनता के आरोप लग रहे थे उन्होंने जनता के मध्य जाकर उनका जमकर प्रतिवाद भी किया।
मुख्यमंत्री की इस रणनीति व सक्रियता से इतना तो तय था कि भाजपा इस सीट को बचा लेगी किंतु जीत सम्मानजनक होगी, इसको लेकर शंकाएं जस की तस थीं।
इधर निर्दलीय उम्मीदवार त्रिभुवन सिंह को लेकर भी मतदाताओं के मध्य चर्चा अवश्य थी, प्रचार अभियान के अंतिम दौर में बॉबी पंवार की एंट्री ने निश्चित रूप से त्रिभुवन को तकरीबन कांग्रेस के करीब खड़ा कर दिया। हालांकि कांग्रेस और त्रिभुवन के दरमियान 8 हजार मतों का अंतर रहा किंतु कांग्रेस जैसी कैडर वाले दल के मुकाबले निर्दल त्रिभुवन का प्रदर्शन ज्यादा बेहतर कहा जा सकता है। त्रिभुवन को मिले करीब10 हजार वोट में एक बड़ा हिस्सा वह है जो सत्ता विरोध के चलते उनकी झोली में गया है, ज़ाहिर है कि इस बड़े हिस्से को स्वाभाविक रूप से प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ झुकना था किंतु इसे कांग्रेस की नाकामी ही कहा जायेगा कि अधिकांश फ्लोटिंग मतदाताओं को सत्तासीन दल के विकल्प के रूप में कांग्रेस के बजाय त्रिभुवन सिंह में उम्मीदें नजर आईं।
भाजपा ने 5 हजार से अधिक मतों से विजय अवश्य प्राप्त की है किंतु त्रिभुवन सिंह को मिले लगभग 10 हजार मतों के निहितार्थ भाजपा के लिए भी भविष्य में एक चुनौती की तरह सामने आ सकते हैं। अधिकांश राजनैतिक पंडितों के अनुमानों में त्रिभुवन सिंह को 3 से 4 हजार पर ठहरते बताया जा रहा था, यदि वास्तव में वह 3 हजार के आसपास सिमट जाते तो उनके अन्य 7 हजार मत केदारनाथ चुनाव के नतीजे को उलट पुलट भी कर सकते थे। साफ़ है कि भाजपा की जीत के बड़ी विजय में तब्दील होने के पीछे त्रिभुवन सिंह को मिले 9 से 10 हजार मतों की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उधर, कांग्रेस की हार से यह तय हो गया है कि मतदाताओं का जो वर्ग सत्ताधारी भाजपा से असंतुष्ट है उसे कांग्रेस से अब रत्ती भर भी उम्मीद नहीं रही, वहीं उत्तराखंड क्रांति दल के एपिसोड का भी समापन नजदीक आता नजर आ रहा है।