#उत्तराखण्ड

आखिर कैसे रुकेगा पहाड़ियों की अकाल मौतों का सिलसिला….!

Share Now

अजय रावत अजेय

सोमवार को मरचूला के निकट बस दुर्घटना में बड़ी संख्या में लोगों के अकाल मौत के ग्रास में समाने की घटना कोई अचरज नहीं है। पहाड़ में तकरीबन हर वर्ष एक ऐसी लोमहर्षक बस हादसा होना आम है जिसमें एक साथ दर्जनों यात्री मौत के मुंह में समा जाते हैं। हर बार होने वाली मजिस्ट्रेटी जांच व एक दो अफसरों का निलंबन रस्मअदायगी भर को अथवा जनाक्रोश की ज्वाला को कम करने मात्र का प्रयास होता है। चंद दिनों बाद शासन, प्रशासन, पुलिस व आम जन सभी ऐसे हादसों को भूल जाते हैं, या यूं कहिए कि इतने लापरवाह हो जाते हैं कि गोया फिर किसी बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार कर रहे हों। लेकिन आज तक ऐसे हादसों के बाद कभी कोई ऐसा नीतिगत परिवर्तन नजर नहीं आता कि जिससे ऐसी भीषण दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

● सीमांत क्षेत्रों में अक्सर होती हैं बड़ी दुर्घटनाएं●
यदि बीते कुछ वर्षों में हुई भीषण बस दुर्घटनाओं की फेहरिस्त पर नज़र दौड़ाई जाए तो या तो गढ़वाल व कुमाऊं के बॉर्डर पर स्थित धुमाकोट तहसील अथवा उत्तराखंड हिमांचल की सीमा में जौनसार के त्यूणी ही नहीं हिमांचल के उत्तराखंड से लगे इलाकों में ऐसी बड़ी दुर्घटनाए घटित हुई हैं। सोमवार को भी गढ़वाल कुमाऊं की सीमा पर अल्मोड़ा जनपद के सल्ट ब्लॉक में ऐसा ही भीषण हादसा हुआ है। साफ जाहिर है सीमांत इलाकों में सरकारी मशीनरी पूरी तरह से उदासीन हो जाती है। सड़क सुरक्षा संबंधी जितने भी अभियान चलते हैं वह जिला मुख्यालय निकट अथवा मुख्य राष्ट्रीय राजमार्गों तक सीमित हो कर रह जाते हैं। यदि धुमाकोट तहसील से रामनगर जाने वाले बस रूट्स की बात करें तो यहां चार उप संभागीय परिवहन अधिकारियों का कार्य क्षेत्र आता है। कोटद्वार, पौड़ी, रामनगर व रानीखेत एआरटीओ के मध्य यदि आपसी सामंजस्य न हो तो यहां यातायात नियमों के उल्लंघन को रोकना सम्भव नहीं है। ऐसे में परिवहन विभाग को ऐसी योजना बनानी होगी कि क्षेत्र के सभी सम्बंधित एआरटीओ आपसी सामंजस्य बनाकर जन परिवहन को सुरक्षित बनाएं अन्यथा कार्रवाई सिर्फ दिखावे के निलंबन तक सीमित रह जायेगी और भीषण हादसों का सिलसिला चलता ही रहेगा।

● परिवहन निगम की सेवाओं को विस्तारित करना जरूरी●
पहाड़ में परिवहन कारोबार पूर्व के मुकाबले अब उतना मुनाफे का व्यवसाय नहीं रह गया है जिसके कारण पहाड़ के वाहन स्वामी जैसे तैसे बसों का संचालन कर रहे हैं। नतीजतन पहाड़ की निजी कम्पनियों से सम्बद्ध बसों की हालत बहुत नाजुक है। न तो इन बसों के टायर सुरक्षित होते हैं न ही स्प्रिंग लीफ़स का भरोसा होता है। वहीं अनुभवी बस चालकों के टोटा होने के कारण बस में सवार लोगों की जान अकुशल चालकों के हाथों में चली जाती है। राज्य परिवहन निगम ही अब पहाड़ में सुरक्षित यातायात का एकमात्र विकल्प रह गया है। किंतु परिवहन निगम का भी पूरा ध्यान मैदानी मार्गों तक ही सीमित है। राज्य के अंदरूनी व सीमांत क्षेत्रों में यदि राज्य परिवहन निगम की सेवाएं शुरू कर दी जाएं तो दुर्घटनाओं के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।

●बस बॉडी फेब्रिकेशन के मानकों को सख़्त किया जाना जरूरी●

उत्तराखंड में बस हादसों में बड़ी संख्या में जान जाने के पीछे बस बॉडी फेब्रिकेशन के मानक भी जिम्मेदार हैं। दरअसल उत्तराखंड में निजी क्षेत्र की प्रमुख कम्पनियां मसलन जीएमओयू, केएमओयू, टीजीएमओयू, गढ़वाल मोटर यूजर्स (जिसकी बसों का 2018 व 2024 में भयंकर हादसा हो चुका है) यातायात, आरकेटीसी आदि कम्पनियों से सम्बन्द्ध अधिकांश मोटर स्वामी काउल चेसी खरीद अपने हिसाब से बस बॉडी फैब्रिकेट करते हैं। कोटद्वार, ऋषिकेश, रामनगर, हल्द्वानी, देहरादून व विकासनगर में इन बसों की बॉडी बनाने का कार्य किया जाता है। हालांकि यह बसें दिखने में आकर्षक नजर आती हैं लेकिन इस बात की कोई गारेंटी नहीं होती है कि किसी दुर्घटना के बाद इस बस बॉडी में लगा मटीरियल यात्रियों की सुरक्षा में कितना कारगर साबित होगा।
कुछ वर्ष पूर्व परिवहन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बस मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी से ही निर्मित बॉडी को पास किये जाने का भी एक प्रस्ताव दिया गया था किंतु शायद इसपर बात आगे नहीं बढ़ पाई ।
बस दुर्घटना होने की स्थिति में बस की बॉडी के पार्ट्स से यात्री अधिक चोटिल न हो इसके बस बॉडी मैन्युफैक्चरिंग के मानकों को सख़्त किया जाना जरूरी है ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *