साम्प्रदायिक सद्भाव की जीती जागती मिसाल रही है पौड़ी की रामलीला
★आज भी सभी समुदाय के लोग आते है रामलीला मंचन को देखने★
★अब शामिल नहीं होते दूसरे सम्प्रदाय के लोग मंचन में, लेकिन मंचन देखने आते है अभी भी★
*अनिल बहुगुणा*
पौड़ी की रामलीला के 124 साल के लंबे इतिहास के सफर मेें राम भक्तं हिन्दू का योगदान तो रहा ही है लेकिन पौड़ी की रामलीला का इतिहास उन मुस्लिम व इसाई किरदारों के जिक्र के बगैर अधूरा है जिन्होंने लंबे समय तक यहां की रामलीला में अपना योगदान देने के साथ ही रामलीला के किरदारों को मंचन में बखूबी भी निभाया।
पौड़ी की रामलीला के स्वर्णिम इतिहास को जब भी याद किया जाता है तो उन किरदारों को आज भी याद किया जाता है जो गैर हिन्दू होते हुए भी रामलीला के इस मंचन में दिल से जुड़े रहते थे। हालांकि पिछले 11 सालों में देश के साथ पहाड़ों में भी सामाजिक समरसता में कमी आई है। पौड़ी की रामलीला में सनातन धर्मावलब्यिों से इतर हिन्दुओं के साथ इसाई और मुस्लिम भी रामलीला देखने के साथ ही रामलीला के किरदारों की भूमिका निभाया करते थे।
यह तर्क पौड़ी की रामलीला के इतिहास के दौरान खारिज हो जाता है कि हिन्दू धार्मिक प्रवृत्ति के कारण रामलीलाएं जिन्दा है। पौड़ी की रामलीला के इतिहास में मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ ईसाई समुदाय के उन लोेगों को आज भी याद किया जाता है जो लबे समय तक रामलीला के मंचन से जुड़े रहे। 124 वर्ष पुरानी पौड़ी की रामलीला में एक समय पर विक्टर साहब सुषैन बै़द्य के किरदार में रामलीला के मंच पर अभिनय करते दिखाई देते थे, तो मोहम्मद सदीक कुंभकरण के किरदार में अपने खर्राटों से दर्शकों हंसा कर लोटपोट कर देते थे। उत्तरखण्ड की पौड़ी रामलीला के बुनियाद के पत्थर रहे, बडे याकूूब साहब, महोम्मद सल्लार, मुद्दी कुरौशी, हुसैन बख्स, मोहम्मद सद्दीक, हबीब हुसैन, सी ए डेविड, विक्टर साहब, डब्लू सी चौफिन का नाम बड़े ही अदब से आज भी लिया जाता है।