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अदालतों के फैसलों से पशोपेश में सरकार, सिस्टम में होम वर्क की कमी आ रही नजर

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हिमतुंग वाणी

पिछले एक अरसे से हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अनेक ऐसे फैसले व आदेश हुए हैं कि उत्तराखंड की सरकार को परेशानियों के साथ फजीहत तक झेलनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने हालिया आदेश में अस्थायी कर्मियों को नियमित करने व समान कार्य के लिए समान वेतन देने को कहा है। करीब एक माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री पर की गई टिप्पणी भी इस बात की तस्दीक करती है कि प्रदेश का सिस्टम किसी निर्णय को लेने से पूर्व जरूरी होमवर्क करने की जहमत नहीं उठाना चाहते, नतीजतन सरकार और मुख्यमंत्री को असहज परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।

अदालतों के आदेशों से सरकार का लगातार असहज होने का सिलसिला जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी कर्मियों को नियमित करने व उन्हें समान कार्य का समान वेतन देने का जो आदेश दिया है, उसे स्वीकार करना सरकार के लिए गर्म दूध हो गया है। भले ही सरकार इस निर्णय के विरुद्ध पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला कर चुकी है किंतु इससे अस्थायी कार्मिकों का आन्दोलित होना तय है। वहीं यदि सरकार इस फैसले को स्वीकार करती है तो सूबे के शाही खजाने पर प्रतिवर्ष 6 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ना तय है। इसके अतिरिक्त नियमितीकरण की कट डेट के मुताबिक कर्मियों के हिस्से आने वाले एरियर का भुगतान भी करोड़ों में पंहुचेगा। नॉन प्लान के भारी भरकम बजट के चलते प्रदेश की माली हालत पहले से पतली है यदि यह अतिरिक्त बोझ और पड़ता है तो वित्तीय असुंतलन के हालात पैदा हो सकते हैं। बाहरहाल सरकार के समक्ष गर्म दूध वाले हालात हो गए हैं।
वहीं नैनीताल उच्च न्यायालय में दाखिल एक पीआईएल ने भी सरकार के समक्ष परेशानी खड़ी कर दी है। दरअसल, वर्ष 2016-17 में नैनीताल जनपद में तत्कालीन जिलाधिकारी व वर्तमान में सचिव मुख्यमंत्री दीपक रावत द्वारा जिले के अनेक स्टोन क्रशर का 110 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ करने को लेकर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए माननीय न्यायालय द्वारा 2016-17 ही नहीं अद्यतन तक के सम्पूर्ण प्रदेश के उन सभी मामलों को तलब कर दिया है जिनके तहत जुर्माना माफी की गई है। ज़ाहिर है इस आदेश के बाद सिस्टम की बड़ी ऊर्जा कोर्ट के कोपभाजन से बचने की कवायद में लग रही होगी।
मुख्यमंत्री पर टिप्पणी के साथ ही पिछले कुछ पखवाड़ों में जिस तरह से हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड की सरकार को असहज होना पड़ा है उससे सूबे की सरकार में कहीं न कहीं अपरिपक्वता झलक रही है अथवा सिस्टम व ब्यूरोक्रेसी के स्किल पर भी सवालिया निशान लग रहा है।

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