गफ़लत: दारू के ठेकेदार के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट बड़ा या एक्साइज कमिश्नर..!
हिमतुंग वाणी
सूबे की सरकार व सिस्टम के अजब गजब किस्से आये दिन चर्चाओं में रहना आम हो चला है। हालिया प्रकरण देहरादून का है जहां एक शराब के ठेके को डीएम सबिन बंसल ने अनियमितताओं की शिकायत के चलते 15 दिन के लिए ससपेंड तो कर दिया लेकिन एक्साइज महकमें के बॉस हरि चंद्र सेमवाल में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के आदेश को स्टे करते हुए ठेके को खोलने का हुक्म दे दिया। हालांकि डीएम अभी भी दुकान को खोलने के मूड में बिल्कुल नहीं दिखाई दे रहे हैं।
अब यह सवाल प्रशासनिक दृष्टि से बड़ा पेंचीदा हो गया है कि शराब की दुकान को लेकर जिलाधिकारी का फरमान ज्यादा वजनदार माना जाता है अथवा आबकारी कमिश्नर का.. मामला भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो अफसरों के आदेशों के टकराव का है तो जाहिर सी बात है कि यह रार प्रदेश की मशीनरी पर भी सवालिया निशान छोड़ रही है। ऐसी रार से भले ही किसी एक अफसर का ईगो शांत हो जाये किन्तु आखिरकार इसका असर सरकार की छवि पर ही पड़ेगा। राज्य की दशा व दिशा तय करने के महत्वपूर्ण टूल यानी प्रशासनिक सेवा के बड़े ओहदेदारों के मध्य यह पटवारी स्तर का विवाद राज्य की जगहंसाई करने के लिए पर्याप्त है।
दरअसल एक तरफ मुख्यमंत्री धामी लगातार सरकार के चेहरे को चमकाने के लिए अनेक प्रयास करते नजर आ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ सिस्टम व मशीनरी के अंदरूनी विवादों के इस तरह सार्वजनिक होने से मुख्यमंत्री के की तमाम कोशिशों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। हालांकि यह विवाद छोटा नजर आ रहा हो किन्तु इतने बड़े अफसरों के मध्य इस तरह की रार न तो प्रदेश हित में है और न ही सरकार के। बाहरहाल असली पशोपेश में तो मयखाने का मालिक ही होगा कि वह कमिश्नर को बड़ा समझे या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को….