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सियासी सिरों के ऊपर मंडराने लगा है उमेश के मुखारबिंद से निकला जिन्न

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अजय रावत अजेय

निर्दल विधायक उमेश कुमार द्वारा गैरसैंण सत्र के दौरान विस् में सरकार गिराने की साजिश सम्बन्धी खुलासा किये जाने से जहां उमेश पक्ष व विपक्ष के नेताओं के निशाने पर आ गए हैं, वहीं इस खुलासे को लेकर सरकार की ओर से फिलहाल खामोशी है। कांग्रेस ने उमेश कुमार से सुबूत पेश करने व सरकार से मामले की जांच करने की मांग की है वहीं सत्ताधारी दल के कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री निशंक द्वारा स्पष्ट रूप से उमेश कुमार को साक्ष्य प्रस्तुत करने की चुनौती देते हुए विस् की गरिमा को लेकर सरकार व विस् अध्यक्ष को भी अपरोक्ष रूप से नसीहत भी दे डाली है।
विस् में उमेश कुमार के मुखारबिंद से निकला जिन्न अब सत्ताधारी भाजपा व उसी सरकार के लिए ही बेवजह की परेशानी खड़ी कर गया है, जिस सरकार को गिराने की साजिश रचने का खुलासा विधायक उमेश ने किया। उमेश के इस बयान के 5 दिन बाद भी उनके द्वारा ऐसा कोई पुख्ता सबूत पेश न किये जा पाने के बाद प्रथमदृष्टया यह प्रतीत होता है कि उमेश का यह बयान शायद सरकार या सरकार के मुखिया की गुड बुक में शामिल होने की एक एकसरसाइज मात्र थी।
यदि थोड़ा पीछे मुड़कर देखें तो उमेश न केवल हरीश रावत के लिए विलेन रहे बल्कि निशंक और त्रिवेंद्र से भी उनका रिश्ता 36 का रहा है। प्रदेश के 3 पूर्व मुख्यमंत्री और उमेश के मध्य कड़ुवाहट जग जाहिर है। निशंक के ताजा बयान से स्पष्ट है कि वह इस मामले को लेकर मुखर हैं और इस तरह के आरोपों को सियासी पैंतरेबाजी मानते हुए वह चाहते हैं कि सरकार और उसकी जांच एजेंसियां मामले की निष्पक्ष व त्वरित जांच करें।
उमेश द्वारा लगाए गए आरोप जिस तरह से सियासी माहौल को गर्म करने लगे हैं और विपक्ष सहित सत्ताधारी भाजपा के बड़े नेता भी उमेश के इस बयान में लगे आरोपों की जांच को लेकर मुखर हो रहे हैं, उससे सरकार, पुलिस व जांच एजेंसियों के समक्ष उहापोह की स्थिति है। जिस तरह से उमेश के बयान में गुप्ता बंधुओं की भूमिका व उन्हें वर्ष 2016 से 2020 तक सरकारी संरक्षण की बात कही गयी, वह अपरोक्ष रूप से पूर्व सीएम व वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत को कटघरे में खड़ा करने की चेष्टा भी मानी जा सकती है। वहीं पूर्व सीएम निशंक ने भी अपने कार्यकाल के दौरान उमेश कुमार पर कार्रवाई करवाई थी। ज़ाहिर है उमेश कुमार भाजपा के ही बड़े नेताओं को कटघरे में खड़ा करने के मन्तव्य से भी ऐसा बयान दे सकते हैं, ऐसी आशंका इसलिए भी बलवती होती है, क्योंकि 5 दिन बीतने के बाद भी वह अपने आरोपों के समर्थन में एक भी सुबूत पेश नहीं कर पाए हैं। जबकि उमेश कुमार हर तरह के सुबूत रखने को लेकर दो दशकों से जाने जाते रहे हैं।
बहरहाल, जिस तरह से भाजपा के अंदर से ही इन आरोपों की जांच की मांग उठने लगी है उससे धामी सरकार भी असहज होगी। इस मामले का पटाक्षेप करने के लिए अब सरकार को कोई न कोई कार्रवाई करनी होगी व साथ ही आधिकारिक बयान जारी कर संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा को बचाये रखने के लिए कदम उठाना होगा, अन्यथा यह मसला जितने लम्बे समय तक

सामाजिक व सांस्कृतिक चेतना की प्रतिनिधि पत्रिका अगस्त 2024

खिंचता रहेगा वह भाजपा व सरकार दोनों की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा।

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