लोकसभा के चुनावी रण में भी पौड़ी शहर से परहेज किया बडे़ राजनेताओं ने
◆कोई भी राष्ट्रीय स्तरीय का एक भी नेता नहीं पहुंचा पौड़ी शहर◆
●अनिल बहुगुणा अनिल●
उत्तराखंड और कभी उत्तरप्रदेश और देश की राजनीतिक धुरी रहा मंडल मुख्यालय पौडी शहर इस बार भी लोकसभा चुनाव में बडे सियासतदां के भाषणों को सुनने से महरूम हो गया। कभी वक्त था कि पौड़ी शहर के रामलीला मैदान से देश के बडे- बडे राजनीतिज्ञ कभी हुंकार भरा करते थे। जिनमें तत्कालीन राजनेता इंदिरा गांधी, स्व. हेमवंती नंदन बहुगुणा, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, एचडी देवगौड़ा, अरूण नेहरू, तारकेश्वरी सिंहा, राजनारायण, नारायरण दत्त तिवारी, सुषमा स्वराज, उमा भारती, बीर बहादुर समेत अनेक ऐसे नाम है जिन्होंने पौड़ी की सरजमीं से अपनी राजनैतिक पार्टियों के पक्ष में अपने भाषणों केजरिए मतदान की अपील की थी। पौड़ी शहर गवाह रहा है अविभाजित उत्तर प्रदेश के ये नेता अपने भाषण देने की शैली से मतदाताओं को कैसे मंत्रमुग्ध कर देते थे।
ये शहर वहीं शहर है जिसमें वर्ष 1982 के लोकसभा उपचुनाव में तब भारतीय राजनीति के चाणक्य कह जाने वाले हेमवंती नंदन बहुगुणा ने यह नारा दिया था कि पहाड़ टूट सकता है पर झुक नहीं सकता। इस नारे ने पौड़ी के तमाम मतदाताओं को बहुगुणा के पक्ष में कर दिया था। पौडी शहर वहीं शहर ब्रितानी हुकूमत ने सबसे अधिक पसंद किया था। नग्न आंखों से हिमालय की बृहद पर्वत श्रृंखला को देखने वाला पौडी शहर अपने ही देश की राजनीति के शिखर पुरूषों को देखने के लिए अब तरस गया है।
इस शहर ने ही उत्तराखंड जैसे राज्य को जन्म दिया था। हालिया लोकसभा चुनाव में और राज्य गठन के बाद हुए तमाम चुनाव में वोटरो को लुभाने वाले राजनैतिक शिखर पुरूषों ने इस शहर से बेरूखी कर ली है।
ये बडे़ राजनेता अब गंभीर राजनैतिक सोच रखने वाले तबके के बजाय मतदाताओं के बड़े- बड़े झुंडों वाले शहर में पहुंचकर अपने चुनावी भाषण देने को ज्यादा तबज्जों देते हैं।
हालिया लोकसभा चुनाव में भी इसी तरह की रूचि देखने को मिल रही है। बड़े नेताओं की चुनावी जनसभा व रैलियां अब श्रीनगर,कोटद्वार, रामनगर, और ऋषिकेश तक सीमित रह गई है। हालांकि इसके पीछे उनका यह तर्क होता है वे इन जगहों से कई लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकते हैं। कमोवेश यहीं स्थिति लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव में भी लंबे समय से देखी जा रही है।
वहीं जिलाधिकारी पौड़ी गढ़वाल कार्यालय से 1986 में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए चंडी प्रसाद नैथानी का कहना है कि इसकी वजह पौड़ी से पलायन है,कहा कि साथ ही सुविधा भोगी बड़े राजनेताओं ने मौजूदा समय में पौड़ी शहर को नेगलेट कर दिया
है। इसके अलावा राजनेताओं का पहाड़ों का बहुत अधिक सरोकार न होना भी एक कारण है।