महारैली: उक्रांद हाईजैक करने, तो भाजपा थी क्रैक करने के फेर में
हिम् तुंग वाणी विशेष
रविवार की देहरादून महारैली मूल उत्तराखंडियों के ‘एक जुट एक मुठ’ संकल्प को साबित कर गयी। रैली के साइज और शामिल लोगों की ‘डाइवरसिटी’ को देख स्पष्ट होता है कि इस रैली में राज्य के हर क्षेत्र, हर वर्ग ने बराबर भागीदारी सुनिश्चित की। इतना ही नहीं रैली में संघ, भाजपा, कांग्रेस, उक्रांद, वामपंथी आदि सभी सियासी विचारधाराओं के लोग स्वतःफूर्त रूप से शामिल थे। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के आह्वान के बाद निश्चित रूप से रैली के प्रति उत्साह में बड़ा इज़ाफ़ा देखने को मिला।
किन्तु रैली के दौरान अनेक उक्रांद कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी पार्टी के झंडे के साथ शिरकत करना यह संकेत दे गया कि राजनैतिक रूप से हाशिये पर पंहुच चुका उक्रांद स्वतफूर्त रूप निकली इस महारैली में अपने सियासी लाभ ढूंढने की फिराक में था। वहीं सबसे बचकाना हरकत सत्ताधारी भाजपा की एक विंग द्वारा उसी तिथि को उसी वैन्यू पर एक समांतर रैली निकलना था। ज़ाहिर है भाजपा पहाड़ी जनमानस की भावना के प्रतीक इस जन सैलाब को चुनौती देना चाहती थी, स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा इस तथाकथित युवा रैली में शिरकत करने से इस आशंका को बल मिलना लाजिमी था।
जहां तक उक्रांद का सवाल है तो इसमें दो राय नहीं कि इस दल के पास फ़िलवक्त खोने के लिए कुछ नहीं है। नेताओं के अहम व महत्वाकांक्षाओं से खण्ड-खण्ड हो चुके उक्रांद के लिए तो यह महारैली ‘दूसरे की गरम् तेल की कढ़ाई में अपने पकोड़े तलने’ जैसा सुअवसर था। इसी का फायदा उठाते हुए रैली में शामिल अनेक उक्रांद कार्यकर्ताओं व नेताओं ने अपने हाथों में पार्टी के झंडे उठाकर इस रैली को हाईजैक करने की मूर्खतापूर्ण व नाकाम कोशिश की। उक्रांद फ़िलहाल सूबे की सियासत में पूरी तरह खारिज़ दल की तरह है, इसलिए उसकी ऐसी हरकतों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा सकता।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा नीत धामी सरकार बीते दिनों से , विशेषरुप से जब इस महारैली हेतु प्रख्यात गीतकार व गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने आह्वान किया, एकाएक एक्शन में आ गयी थी। पहले एक आदेश जारी कर सरकार ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों के पास मूल निवास प्रमाण पत्र हैं, उन्हें अब स्थाई निवास प्रमाण पत्र बनाने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके बाद सरकार ने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में एक प्रवर समिति गठित कर दावा किया कि सरकार पहाड़ के सरोकारों को लेकर काफी गंभीर है। स्वयं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार मूल निवसियों व पहाड़ के हितों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है। किन्तु ऐन 24 दिसम्बर, जब परेड ग्राउंड में एक विशुद्ध गैर राजनैतिक रैली का आयोजन होना था, उसी दिन परेड ग्राउंड में ही भाजपा की युवा विंग की एक चर्चित नेत्री को युवा रैली करने की अनुमति प्रदान कर दी गयी। जबकि भाजपा इस रैली को 25 दिसम्बर को स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर आयोजित कर सकती थी, जो अधिक प्रासंगिक भी प्रतीत होता।
भाजपा अथवा सत्ता के मैनेजरों को इस बात को मानना ही पड़ेगा कि मूल निवास व भू कानून के लिए महारैली में शामिल जन समूह में उनकी पार्टी के साथ संघ से जुड़े व इस विचारधारा से जुड़े हज़ारों लोग भी थे। आज उत्तराखंड में भाजपा सत्तासीन है यानी कि राज्य की जनभावनाओं की हिफाज़त करना उसका राजधर्म है। किंतु पार्टी में मौजूद कतिपय नेताओं ने इस तरह की समांतर रैली आयोजित कर जनभावनाओं की आवाज को चुनौती देने की कोशिश की। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह था इस तथाकथित युवा रैली में मुख्यमंत्री धामी को भी आमंत्रित कर दिया गया, जो बीते दिनों से लगातार मूल निवास व भू कानूनों को लेकर शासन स्तर पर एक्सरसाइज़ करते नजर आ रहे हैं। लब्बोलुआब यह कि मूल निवास रैली के समांतर युवा रैली निकालकर भाजपा की एक विंग के नेताओं ने सरकार की मंशा पर ही सवालिया निशान लगा दिए।
एक नितांत गैर राजनैतिक रैली, जिसमें न किसी सरकार की मुख़ालफ़त थी, न किसी पार्टी का विरोध, सिर्फ अपने नैसर्गिक अधिकारों की खातिर आवाज बुलंद करने का मन्तव्य था, उसे भाजपा के कुछ अतिउत्साही नेताओं ने सरकार के खिलाफ समझ कर एक समांतर रैली के जरिये चुनौती दी, उससे आमजनमानस में भाजपा के प्रति कोई अच्छा सन्देश नहीं गया, जबकि बीजेपी इस रैली के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार कर एडवांटेज ले सकती थी, वह भी तब जब सीएम धामी लगातार मूल निवास भू कानून को लेकर शासन स्तर पर एक के बाद एक फैसले लेते हुए नजर आ रहे थे।