सुरंग के अंधेरे की तरह है मजदूरों की जिंदगी का सवाल
अजय रावत अजेय (हिम तुंग वाणी)
■वक़्त के साथ आ रही सूचनाओं से उठ रहे सवाल
■मजदूरों की तादात को लेकर ही विरोधाभाषी बयान
सरकयाणा टनल मामला लगातार जितना पेंचीदा हो रहा है उतने ही सवाल बचाव कार्य को लेकर उठने लगे हैं।
●उत्तराखंड में रेल विकास निगम से जुड़ी अनेक कम्पनियां अनेक सुरंगों का निर्माण बिना किसी व्यवधान के कर चुकी हैं, क्यों नहीं इन एजेंसियों व कम्पनियों की मदद ली गयी..?
● उत्तराखंड श्रम विभाग का कोई उच्चाधिकारी क्यों नहीं बयान जारी करता कि सुरंग में फंसे मजदूरों की वास्तविक संख्या कितनी है, जो इस आंकड़े को लेकर उठ रहे विरोधाभास दूर हो सकें..?
● नवयुग कम्पनी का पूर्व में भी श्रमिकों की सुरक्षा को लेकर रहा है लापरवाह रवैया, महाराष्ट्र में लंबित हैं लगभग 338 मुकदमें। कम्पनी के इतिहास की क्यों नहीं की गई पड़ताल..?
● राज्य के भूवैज्ञानिकों व केंद्रीय भूगर्भ संस्थानों के वैज्ञानिकों की अभी तक क्यों नहीं ली गयी है मदद..?
●आखिर किन भूवैज्ञानिकों ने दी थी सिरक्यणा टनल के निर्माण की मंजूरी..?
●कम्पनी ने आखिर क्यों एस्केप टनल हेतु लगाए गए ह्यूम पाइपों को कुछ दिन पूर्व हटाया, क्या यह कुछ पैसा बचाने की खातिर दर्जनों मजदूरों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ तो नहीं था..?
●टनल के अंदर लूज़ पार्ट का पहले क्यों नहीं किया गया परमानेंट ट्रीटमेंट..?
●क्या राज्य सरकार का निर्माण एजेंसी, बचाव एजेंसी व इस निर्माण व बचाव कार्य में लगे प्राधिकरणों पर कोई पकड़ नहीं है..? विरोधाभासी बयान इस बात की तस्दीक करते हैं कि इस मामले में प्रांतीय सरकार से कुछ न कुछ चूक हुई है और हो रही है।