सिरक्याणा: तारीख पर तारीख, आखिर कब आएगी वो घड़ी..?
■144 घंटे से अंधेरी सुरंग में कैद हैं 40 जिंदगियां
■बीतते वक़्त के साथ बढ़ रही हैं चिंता की लकीरें
■समय को लेकर बचाव एजेंसियों व संवाद एजेंसियों के दावे अलग अलग
■क्यों नहीं साझा बयान जारी कर असल हालात से अवगत कराया जाता
जीवन को लेकर अनिश्चितता के बीच किसी अं
धेरी सुरंग में डेढ़ सौ घंटे गुजारना जीते जी मौत से कम नहीं। ज़ाहिर सी बात है समय बीतने के साथ ही टनल में फंसे मजदूरों की बेचैनी भी बढ़ रही होगी। वहीं उनके परिजनों की सांसें भी लगातार अटकने लगी हैं। परिजनों व आम लोगों में अनिश्चय की स्थिति का मुख्य कारण आपरेशन की जमीनी प्रगति व पूरा होने की समय सीमा को लेकर जारी बयानों में अंतर भी है। अब सवाल यह है कि आखिर वह पल कब आएगा जब सुरंग में कैद जिंदगियां खुले आसमान के नीचे लौटेंगी और साथ ही उत्तराखंड की इज्जत भी बच पाएगी।
घटना के बाद शुरुआती दिनों में बचाव एजेंसियों के आत्मविश्वास भरे बयानों से लग रहा था कि जल्द ही फंसे हुए मजदूरों की जिंदगियों को आसानी से बचा लिया जाएगा। लेकिन इस बीच तारीख पर तारीख का सिलसिला शुरू होने के बाद कहीं न कहीं आशंका के बादल मंडराना लाजिमी है।
इन आशंकाओं को तब अधिक बल मिल रहा है जब कार्य दाई संस्था के अतिरिक्त बचाव कार्य में लगी एजेंसियों , आपदा प्रबंधन विभाग, पुलिस व प्रशासन के बयानों में एकरूपता नज़र नहीं आ रही है। यही कारण है कि तमाम मीडिया कर्मी भी अलग अलग तरह की बातें कर रहे हैं नतीजतन फंसे हुए मजदूरों के परिजनों के साथ आम लोगों में अनिश्चय की स्थिति बन रही है। इस समय आवश्यकता यह थी कि प्रदेश सरकार के किसी बड़े अफसर को इस बाबत सूचना प्रसारित करने हेतु मौके पर तैनात किया जाता और अलग अलग बयानों के बजाय सिर्फ एक ऑथनटिक बयान जारी होता।
हालांकि, अभी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विश्वास दिला रहे हैं कि सभी फंसे हुए मजदूरों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा किन्तु समयावधि को लेकर वह भी एकमत नज़र नहीं आ रहे हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर वह घड़ी कब आएगी जब 40 मासूम जिंदगियों के इस प्रदेश की इज्जत भी बच सकेगी। बहरहाल यह उत्तराखंड व उत्तराखंड सरकार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है, जिसका संदेश राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जाएगा।